देश के 15 जिलों की जमीनी पड़ताल-7: दूसरी लहर में क्या था उत्तर प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ का हाल

कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभाावित जिलों की जमीनी पड़ताल

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में बीमार होने के बावजूद लोग जांच कराने को आगे नहीं आए। फोटो: पुरुषोत्तम

डाउन टू अर्थ ने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देश के सबसे अधिक प्रभावित 15 जिलों की जमीनी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट को अलग-अलग कड़ियों में प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे 15 जिले के गांव दूसरी लहर की चपेट में आए। दूसरी लहर में आपने पढ़ा अरुणाचल प्रदेश के सबसे प्रभावित जिले का हाल। तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, हिमाचल के लाहौल स्पीति की जमीनी पड़ताल।  चौथी कड़ी में आपने पढ़ा, दूसरी लहर के दौरान गुजरात में कैसे रहे हालात । इसके बाद आपने उत्तराखंड से अरविंद मुदगिल व दीपांकर ढोंढियाल और मध्य प्रदेश से राकेश कुमार मालवीय की रिपोर्ट पढ़ी। इसके बाद आपने पढ़ा, दूसरी लहर के दौरान बिहार और झारखंड में कैसे थे हालात । आगे पढ़ें, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के सबसे अधिक प्रभावित जिलों की हालत-

 

उत्तर प्रदेश 

उत्तर प्रदेश सरकार ने दो महीने से अधिक लंबे कोविड -19 लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील देना शुरू कर दिया है और मथुरा के निवासी और प्रशासन दोनों ही घबराए हुए हैं। जिले की मुख्य चिकित्सा अधिकारी रचना गुप्ता का कहना है, “हम अभी जोखिम नहीं ले सकते। जिले के दो निजी मेडिकल कॉलेज इस महीने भी कोविड-19 अस्पतालों के रूप में कार्य करते रहेंगे। तीसरी लहर को देखते हुए हम जिला महिला अस्पताल और जिला संयुक्त अस्पताल वृंदावन की क्षमता बढ़ा रहे हैं, जहां ऑक्सीजन की पाइपलाइन पहले ही लगाई जा चुकी है।”

उत्तर प्रदेश के देश में कोविड -19 हॉटस्पॉट के रूप में उभरने से बहुत पहले मथुरा में कोविड के मामले सामने आने लगे थे। लेकिन मथुरा की संक्रमण दर में गिरावट काफी धीमी रही है। जबकि राज्य भर के शहरों में संक्रमण की दर धीमी हो गई थी, 17 मई को मथुरा में पॉजिटिविटी दर अभी भी काफी अधिक थी। 23 मई को जिले में 1,000 सक्रिय मामले थे। ऐसे कुछ मामले भी सामने आए हैं, जहां यह बीमारी दक्षिण अफ्रीकी वायरस के कारण हुई थी, जिसे अधिक संक्रामक या व्यापक रूप से फैलने के लिए अतिसंवेदनशील माना जाता है। 

कुछ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कोविड-19 के खिलाफ मथुरा की इस जटिल और लंबी लड़ाई के लिए कई कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं। यह शहर हिंदुओं के लिए पवित्र माना जाने के कारण यहां हमेशा आगंतुकों की भीड़ रहती है। होली का त्योहार, हरिद्वार में हफ्ते भर चलने वाला कुम्भ आयोजन और राज्य में हो रहे पंचायत चुनाव कुछ मुख्य कारण हैं।

उत्तर प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा निदेशालय से अतिरिक्त निदेशक (एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम) के रूप में सेवानिवृत्त आरके गुप्ता ने बताया कि कुछ लोग लोकलाज के भय से बीमारी के बारे में नहीं बताते, वहीं कई अन्य ऐसे भी हैं जिन्हें इस रोग के लक्षणों के बारे में सही जानकारी नहीं है। गुप्ता कहते हैं कि महामारी को खत्म मानने की भूल नहीं की जा सकती। हमें निगरानी रखने की आवश्यकता है।

जैसे-जैसे लोग ठीक हो रहे हैं, उनकी परेशानी का स्वरूप भी बदल रहा है। राल गांव के खुशीपुरा माजरा निवासी अनिल चौधरी ने बताया कि गांव में इस समय गेहूं लदान की गतिविधियां चल रही हैं। वह बताते हैं, “हमारे किसान पहले हरियाणा के पलवल जिले के होडल में गेहूं बेचते थे, जहां सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत मिलती है। इस बार भी वे मई के मध्य से हमारी उपज का इंतजार कर रहे हैं लेकिन तालाबंदी के कारण लगे अंतर-राज्यीय यात्रा प्रतिबंधों की वजह से न तो हम उन्हें फसल पहुंचा पा रहे हैं और न ही वे अनाज उठाने के लिए जिले में प्रवेश कर सकते हैं।” चौधरी का कहना है कि उन्होंने और उनके गांव के कई अन्य किसानों ने अब अनाज की सरकारी खरीद के लिए पंजीकरण कराया है क्योंकि उनके पास भंडारण के लिए कोई जगह नहीं है। वे कहते हैं, “सरकारी खरीद के लिए भी, मुझे अपना 5,300 किलो गेहूं 50 किमी दूर क्रय केंद्र तक पहुंचाना होगा। मुझे यकीन नहीं है कि मैं ऐसा कर पाऊंगा। कोविड-19 के बाद, मैं अब शारीरिक और आर्थिक रूप से टूट गया हूं।”

राजस्थान

रेगिस्तान चाहे गर्म हो या ठंडा, यह कहना मुश्किल होता है कि कौन अधिक चुनौतीपूर्ण है। कठोर परिस्थितियों में जीवित रहना या स्वास्थ्य, शिक्षा और शासन जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच बनाना। ऐसे क्षेत्रों में महामारी से बचाव की तैयारी करना और उसका मुकाबला करना शायद सबसे कम महत्व की बात होती है। और राजस्थान के थार रेगिस्तान में यही हो रहा है जोकि भारत-प्रशांत के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में से एक होने के बावजूद घनी आबादी वाला है।

यहां के परिवार बारिश और उपज के मौसम के आधार पर गांव और ढाणियों (खेत की बस्तियां) के बीच प्रवास करते हैं। इस कारण चिकित्सकीय सुविधाएं, खासकर आपातकाल में,काफी मुश्किल से उपलब्ध होती हैं। कभी कभी लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का फायदा लेने के लिए 50 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता है। अगर विशेषज्ञ चिकित्सक की जरूरत हो तो उसके लिए 150 किमी की दूरी तय करके जिला मुख्यालय जाना होगा। उचित चिकित्सा सुविधाएं केवल ब्लॉक स्तर पर उपलब्ध हैं, लेकिन अब वे भी अत्यधिक बोझ तले दबी हैं।

बज्जू प्रखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के डॉक्टर उमाशंकर यादव कहते हैं, “यहां की स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है।” यादव कहते हैं “हमारे पास बज्जू और आसपास के बांगड़सर, भालूरी, मिठादिया और चरणवाला के गांवों से मरीज आते हैं। किसी भी दिन, सीएचसी पर आने वाले कम से कम 50 लोगों में कोविड-19 के सक्रिय लक्षण दिखाई देते हैं। लेकिन उन्हें बीमारी या इसकी संक्रामकता के बारे में बहुत कम जानकारी है।”

पिछले साल तक, बज्जू प्रखंड प्रवासियों की वापसी के लिए सिर्फ एक रिसेप्टर था। इस साल, अप्रैल और मई के बीच लगभग 8,000 की आबादी वाले 204 से अधिक गांवों में लोग कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं। जागरूकता और परीक्षण किट की कमी के कारण सैकड़ों अन्य का परीक्षण नहीं किया जा सका। बज्जू सीएचसी को एक बैच में कुल 100 परीक्षण किट प्राप्त होते हैं और अगली खेप का कोई भरोसा नहीं रहता। ये एक ही दिन में खत्म हो जाते हैं। तत्काल सूचना चैनलों तक पहुंच नहीं होने के कारण समस्या और बढ़ जाती है।

पड़ोसी कोलायत ब्लॉक में, जिसमें 209 गांव शामिल हैं वहन केवल तीन सीएचसीएस हैं। इनमें से केवल दो में कोविड-19 के इलाज सुविधा है और प्रत्येक की क्षमता 10 बेड की है। मई के अंतिम सप्ताह में ये सारे बेड भरे हुए थे। मिठाड़िया गांव की सरपंच, सावित्री बिश्नोई कहती हैं, “हमारे गांव में कम से कम 16 लोग कोविड पॉजिटिव मिले हैं। एक मरीज की वायरस से मौत हो गई। वह एक ट्रक ड्राइवर था और वह लक्षण महसूस करने के बाड़ घर लौट था। हम सतर्कता बरत रहे हैं।” लेकिन अब आशा कार्यकर्ताएं भी संक्रमित घरों में जाने से हिचकिचा रही हैं। मिठाड़िया में संक्रमण की वास्तविक स्थिति अज्ञात है।

छत्तीसगढ़

धमतरी छत्तीसगढ़ के मध्य में स्थित है। इसके गांवों की एक बड़ी संख्या वनाच्छादित है, जहां लोग दूर-दूर बसी बस्तियों में रहते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी जब देश में संक्रमण के पहले मामले का पता चलने के पांच महीने बाद जिले में 25 मई, 2020 को कोविड -19 संक्रमण के मामले सामने आने लगे। प्रशासन ने सतर्क बरतते हुए अधिक चिकित्सा कर्मचारियों की भर्ती की है, कोविड -19 रोगियों के लिए बिस्तर बढ़ाए हैं और ऑक्सीजन बेड भी सुरक्षित किए हैं। इसके बावजूद, जब देश दूसरी लहर की चपेट में आया तब धमतरी में अकेले अप्रैल 2021 में 10,180 पॉजिटिव मामले दर्ज किए। यह पिछले साल सितंबर में दर्ज मामलों की संख्या का पांच गुना था। 

ऐसा इसलिए है क्योंकि जिला अभी भी कुछ बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहा है, जिले के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी डीके तुरे बताते हैं। लोगों को कोविड-उपयुक्त व्यवहार के बारे में जागरूक करना, नियंत्रण कक्षों में समय पर जानकारी देने का महत्व समझाना और उन्हें टीकाकरण के लिए राजी करना कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं।

जिले के कई इलाकों में जाने पर पता चलता है कि लोग अपनी बीमारी के बारे में रिपोर्ट करने या खुद की जांच कराने के लिए क्यों अनिच्छुक हैं। डोनार गांव के रहने वाले 22 वर्षीय महेंद्र तारक ने मई की शुरुआत में डाउन टू अर्थ को बताया था, “मेरे माता-पिता और मुझे सर्दी, बुखार और सूखी खांसी है। हमारे पड़ोसियों की भी यही समस्या है। लेकिन हममें से कोई भी परीक्षण के लिए जाने को तैयार नहीं है। अस्पतालों में लंबी कतारें हैं। इसलिए हम एक गांव के डॉक्टर से दवाएं लेना पसंद करते हैं।” तारक धमतरी के एक केंद्र सरकार के स्कूल में संविदा शिक्षक के रूप में काम करते थे। वह अब एक छोटा सा व्यवसाय चलाते हैं क्योंकि पिछले साल लॉकडाउन के बाद उनकी नौकरी का नवीनीकरण नहीं हुआ था। उस महीने के अंत में, गांव के लिए आयोजित किए गए टेस्ट में कम से कम 25 निवासियों को कोविड-पॉजिटिव पाया गया। कुछ ही दिनों में यह संख्या बढ़कर 84 हो गई है। 

नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि नगरी और मगरलोड जैसे गांव, जो जंगलों के अंदर स्थित हैं, वहां हालात और भी खराब हो सकते हैं। इन क्षेत्रों से बुखार और मौतों के मामले पहले से ही सामने आ रहे हैं लेकिन लोगों के टेस्ट न कराने के कारण उनकी अफिशल रिपोर्टिंग नहीं हो पाती ।

कल पढ़ें, कुछ और राज्यों के प्रभावित जिलों की पड़ताल

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