देश के 15 जिलों की जमीनी पड़ताल-5 : पहली लहर से अछूते जिलों में पहुुंचा कोरोना

कोविड-19 की दूसरी लहर ने उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के किन जिलों को प्रभावित किया, पढ़ें-

On: Monday 02 August 2021
 
कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान उत्तराखंड के पौड़ी शहर में लॉकडाउन लगा दिया गया।

 

डाउन टू अर्थ ने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देश के सबसे अधिक प्रभावित 15 जिलों की जमीनी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट को अलग-अलग कड़ियों में प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे 15 जिले के गांव दूसरी लहर की चपेट में आए। दूसरी लहर में आपने पढ़ा अरुणाचल प्रदेश के सबसे प्रभावित जिले का हाल। तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, हिमाचल के लाहौल स्पीति की जमीनी पड़ताल।  चौथी कड़ी में आपने पढ़ा, दूसरी लहर के दौरान गुजरात में कैसे रहे हालात । आज पढ़ें उत्तराखंड से अरविंद मुदगिल व दीपांकर ढोंढियाल और मध्य प्रदेश से राकेश कुमार मालवीय की रिपोर्ट - 

महामारी की पहली लहर से काफी हद तक अछूते रहे उत्तराखंड के पौड़ी जिले में दूसरी लहर के दौरान मामले लगातार बढ़ते रहे। जिला प्रशासन ने कोरोनावायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए 24 माइक्रो-कन्टेनमेंट क्षेत्र बनाए और 478 सामान्य बेड, 407  ऑक्सीजन बेड और 73 गहन देखभाल इकाइयों सहित समर्पित कोविड देखभाल केंद्र और निजी सुविधाएं स्थापित की, लेकिन इस हिमालयी क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचना सचमुच एक कठिन काम था।

जिला निगरानी अधिकारी आशीष गुसाईं मानते हैं कि पौड़ी गढ़वाल के बीहड़ रास्तों से होकर दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचना प्रशासन और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए एक चुनौती था। एक आखिरी  उपाय के रूप में, प्रखंड विकास अधिकारियों (बीडीओ) को ग्राम प्रधान के अंदर  एक कोविड  नियंत्रण समिति (ग्राम स्तरीय कोविड नियंत्रण समिति) बनाने के लिए कहा गया।

ग्रामीण क्षेत्रों में महामारी से निपटने के लिए आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और महिला और युवा मंगल दल के सदस्य, जो कि  जमीनी स्तर पर महिला और युवा स्वयंसेवक हैं, को इस समिति का गठन करने की जिम्मेदारी दी गई।

कलजीखाल ब्लॉक के बीडीओ सत्य प्रकाश भारद्वाज का कहना है कि प्रखंड के सभी गांवों को 20 मेडिकल किट दी गई और लगभग हर गांव में कोविड नियंत्रण समिति बनाई गई। राज्य सरकार ने सभी ग्राम प्रधानों को उनके गांवों में महामारी से निपटने के लिए 20,000 रुपए प्रदान किए और हर ब्लॉक में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एक डॉक्टर की प्रतिनियुक्ति की गई है।

कोट प्रखंड के ग्राम पेडुल की ग्राम प्रधान मीनाक्षी देवी ने कहा कि 23 मई को उन्हें सरकार की ओर से एक पत्र मिला था, जिसमें 14 पॉजिटिव मामलों वाले उनके गांव को माइक्रो कंटेनमेंट जोन घोषित किए जाने के बाद उन्हें समिति बनाने के लिए कहा गया था। वह कहती हैं, “मुझे नहीं पता कि प्रशासन की मदद के बिना इस समिति का गठन कैसे किया जाए।”

पहली लहर के दौरान वायरस को दूर रखने में पंचायतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिला प्रशासन के साथ, उन्होंने प्रत्येक गांव, स्कूलों में, पंचायत भवनों में या गांव के बाहरी इलाके में अस्थायी झोपड़ियां बनाकर संगरोध केंद्र स्थापित किए थे। राष्ट्रव्यापी तालाबंदी लागू होने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से लौटने वाले लोगों को इन अलगाव केंद्रों में अनिवार्य रूप से 14-दिवसीय संगरोध अवधि से गुजरना पड़ा, जहां उनके स्वास्थ्य की नियमित निगरानी की जाती थी।

दूसरी लहर के दौरान इन नियमों  का पालन नहीं किया गया। लोग बिना किसी प्रतिबंध के 72 घंटे से भी कम पुरानी आरटीपीसीआर रिपोर्ट के बल पर गांवों में प्रवेश कर गए। कलजीखाल ब्लॉक के गांव डांगी के सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन डांगी का कहना है कि शादी समारोह, लोगों की कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की अनिच्छा और देरी से मिले टेस्ट के नतीजों ने संक्रमण फैलाने में अहम भूमिका निभाई। पिछले साल के विपरीत, ग्राम प्रधान अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए अनिच्छुक थे, क्योंकि उनके नाम फ्रंटलाइन वर्कर्स  के रूप में शामिल नहीं हुए थे और न ही उन्हें उनके प्रयासों के लिए पुरस्कृत किया गया था। डांगी ने कहा कि प्रधानों को न तो टीकाकरण और न ही स्वास्थ्य बीमा प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराया गया।

मध्य प्रदेश  

मध्य प्रदेश के कटनी जिले में अप्रैल 2021 में दूसरी लहर के मामले बढ़ने पर भी विशेषज्ञ डॉक्टरों के 25 पद, चिकित्सा अधिकारियों के दो पद और ट्रॉमा विशेषज्ञ के 13 पद खाली थे। इसके अलावा “पीएम केयर्स फंड” के माध्यम से आपूर्ति किए गए वेंटिलेटर चालू नहीं किए जा सके, चिकित्सा जांच के लिए पर्याप्त मशीनें नहीं थीं और ऑक्सीजन प्लांट भी अर्धनिर्मित था। 

18 सरकारी छात्रावासों और 31 मैरिज गार्डनों  में 1,200 बेड स्थापित करने की योजना को खत्म कर दिया गया और जिला अस्पताल में केवल 20 बेड का कोविड देखभाल केंद्र भर रह गया। इससे भी बदतर बात थी कि ग्रामीण क्षेत्रों के डॉक्टरों को शहरों में तैनात किया गया था, जिसके बाद स्थानीय विधायक प्रणय पांडे ने 5 मई को मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखकर इन डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में वापस भेजने की मांग की थी। तब तक जिले की 407 ग्राम पंचायतों में से 124 में कोविड-19 फैल चुका था।

सरकार ने कोविड-19 संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन को कड़ा किया है जिससे किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। बिजौरी गांव के एक किसान राजेश कुशवाहा का कहना है कि जो लोग अनाज उगाते हैं, वे पहले ही अपनी उपज काट कर बेच चुके हैं।

उनके जैसे छोटे किसान, जो सब्जी उगाते हैं और उसे आसपास के शहरों में  बेचते हैं, पुलिस के डर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। वह कहते हैं, “मैं अब अपनी सब्जियां स्थानीय लोगों को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हूं।” दूधवाले भी इसी तरह की परेशानी से दो-चार हो रहे हैं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान-भोपाल के निदेशक सरमन सिंह कहते हैं,“हमने अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं को शहरों के आसपास केंद्रित रखा है और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और मानव संसाधनों के अभाव में महामारी का प्रबंधन बेहद मुश्किल साबित हुआ है।” यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि कोविड-19 के मामलों और मौतों की वास्तविक संख्या और भी अधिक हो सकती है।

 

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