देश के 15 जिलों की जमीनी पड़ताल, गांव-गांव पहुंचा कोरोना

कोविड-19 की दूसरी लहर शहरों के पार करके ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच गई और बड़ी संख्या में ग्रामीणों व आदिवासियों को संक्रमित कर दिया। देश के 15 सबसे अधिक प्रभावित जिलों से डाउन टू अर्थ की जमीनी पड़ताल

On: Friday 23 July 2021
 
अप्रैल के महीने में ही महामारी का रुख शहरों से हटकर गांवों की ओर मुड़ गया था। यही वह महीना था जब ग्रामीण जिलों में पहली बार 3.1 मिलियन नए मामले दर्ज किए गए (फोटो: रॉयटर्स)

4 मई को ओडिशा सरकार तब सकते में आ गई जब बोंडा जनजाति के तीन लोगों के कोविड पॉजिटिव होने का पता चला। दुर्गम जंगलों में दूर बिखरी बस्तियों में रहने वाले इस आदिवासी समुदाय को वायरस संक्रमित करेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था। बोंडाओं को 2011 की जनगणना द्वारा भारत के 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों में से एक के रूप में चिन्हित किया गया है और अनुमान के मुताबिक वे प्रारम्भिक मानव प्रवास के दौरान अफ्रीका से लगभग 60,000 वर्ष पहले आए थे। वे पारंपरिक रूप से एकांतजीवी रहे हैं और उनका निवास राज्य के सबसे दक्षिणी जिले मलकानगिरि की वनाच्छादित पहाड़ियों पर रहा है। स्थानीय हाटों (साप्ताहिक ग्रामीण बाजारों) में अपनी उपज बेचने या घरेलू आवश्यक वस्तुओं से बदलने के अलावा उनका बाहरी दुनिया से संबंध न के बराबर रहता है। अधिकारियों को संदेह है कि जिले के मुदुलीपाड़ा गांव के बोंडा पड़ोसी आंध्र प्रदेश के एक नजदीकी बाजार में इस बीमारी से संक्रमित हुए। वे इस बाजार में इसलिए गए थे क्योंकि उनके अपने इलाके के सभी हाट लॉकडाउन के कारण बंद थे। ओडिशा सरकार ने आंध्र प्रदेश एवं मलकानगिरी की सीमाओं को सील कर दिया है और स्थानीय प्रशासन ने बोंडा बस्तियों को आइसोलेट कर दिया है। हालांकि संक्रमित व्यक्तियों को जिले के कोविड विशेष अस्पतालों में भर्ती कराया गया, लेकिन अगले ही सप्ताह में संक्रमित बोंडाओं की संख्या बढ़कर 12 हो गई।

पिछले साल जब स्वदेशी समुदायों के कोविड-19 से प्रभावित होने की खबरें आ रही थीं, तभी राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने ओडिशा सरकार से बोंडा जनजाति के लिए विशेष रणनीति अपनाने के लिए कहा था। आयोग ने कहा था कि कोविड उनके “अस्तित्व” के लिए खतरा हो सकता है। इस जनजाति की जनसंख्या या तो स्थिर है या फिर घट रही है। कोविड-19 संक्रमण का बोंडाओं की पहाड़ियों तक पहुंच जाना इस दूसरी लहर का सबसे चिंताजनक चरण है, खासकर तब जब भारत पहले से ही इस महामारी का वैश्विक हॉटस्पॉट बन चुका है। इस चरण में वायरस शहरी क्षेत्रों से बाहर निकलकर उन इलाकों को अपनी चपेट में ले रहा है जो विश्व की सबसे बड़ी ग्रामीण आबादी (आधे अरब से अधिक) का निवासस्थान हैं। हालिया इतिहास की बात करें तो मई 2021 देश के लिए सबसे दुखद महीना रहा है। 1 से 26 मई के बीच, भारत में 8.2 मिलियन नए कोविड-19 के मामले दर्ज किए गए।

यह संख्या जनवरी 2020 में केरल से पहला मामला सामने आने के बाद एक महीने में सबसे अधिक है। इन 26 दिनों में 1,03,382 लोगों ने बीमारी के कारण दम तोड़ दिया। यह संख्या अप्रैल में कोरोना के कारण हुई मौतों के दोगुने से भी अधिक है। डाउन टू अर्थ के विश्लेषण से पता चलता है कि 26 दिनों के दौरान विश्व में कोविड का हर दूसरा मामला और तीसरी मौत भारत में ही दर्ज की गई। हालांकि इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया कि मई महीने में हर दूसरा संक्रमण और मौत ग्रामीण जिलों से ही थी। यानी उस महीने दुनिया में दर्ज होने वाला हर चौथा मामला ग्रामीण भारत का था।

दरअसल अप्रैल के महीने में ही महामारी का रुख शहरों से हटकर गांवों की ओर मुड़ गया था। यही वह महीना था जब ग्रामीण जिलों में पहली बार 3.1 मिलियन नए मामले दर्ज किए गए। इसके पिछले महीने में 0.4 मिलियन नए मामले दर्ज हुए। यह शहरी जिलों से प्राप्त आंकड़ों से थोड़ा (0.6 मिलियन) कम था। कोविड-19 के कारण होने वाली मौतों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। मार्च में यह संख्या 5,600 थी जो अप्रैल के महीने तक 24,000 तक पहुंच चुकी थी। संक्रमण बढ़ता गया और मई के महीने में ग्रामीण इलाके शहरी इलाकों से आगे निकल गए। ग्रामीण जिलों में 53 प्रतिशत नए मामले दर्ज किए गए और साथ ही साथ 52 प्रतिशत कोविड-19 मौतें भी इन्हीं जिलों में हुईं। यह मार्च 2020 से अप्रैल 2021 तक के समग्र रुझान से अलग है, जब शहरी जिलों में नए मामलों का 52 प्रतिशत और मौतों का 54 प्रतिशत हिस्सा था।

महामारी का शहरी से ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण दूसरी लहर के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में विशेष रूप से स्पष्ट है। महाराष्ट्र के ग्रामीण जिलों में पहली बार मई में अपने शहरी समकक्षों की तुलना में अधिक मामले (कुल नए मामलों का 61 प्रतिशत) दर्ज किए गए। अप्रैल में राज्य के ग्रामीण इलाकों की हिस्सेदारी 42 फीसदी थी। कर्नाटक में ग्रामीण जिलों की हिस्सेदारी मई में 49 प्रतिशत रही, जो अप्रैल में 32 प्रतिशत थी। इसी प्रकार से उत्तर प्रदेश के ग्रामीण जिलोंं में मई में नए मामलों का 68 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 48 प्रतिशत हिस्सा था। हालांकि, सरकारी डैश बोर्ड पर दैनिक मामलों की गिनती 8 मई से लगातार कम हो रही है। यह आखिरी तारीख थी जब देश में एक दिन में 4,00,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। क्या इसका मतलब सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 21 मई तक जारी साप्ताहिक जिलेवार पॉजिटिविटी दर रिपोर्ट बताती है कि भारत के आधे से अधिक हिस्से में अभी भी पर्याप्त परीक्षण नहीं हो रहे हैं। कुल किये गए टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए लोगों का प्रतिशत पॉजिटिविटी दर के नाम से जाना जाता है।

उच्च पॉजिटिविटी दर का मतलब है कि या तो किसी समुदाय में संक्रमित लोगों की संख्या (पॉजिटिव टेस्ट ) बहुत अधिक है या कुल टेस्ट की संख्या बहुत कम है। दोनों ही मामलों में यह उच्च संक्रमण का परिचायक है और साथ ही साथ इससे यह भी पता चलता है कि उस समुदाय में कई ऐसे संक्रमित लोग भी हैं जिनके टेस्ट नहीं हो पाए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश है कि प्रतिबंधों में ढील देने से पहले कम से कम दो सप्ताह तक दैनिक पॉजिटिविटी दर 5 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 741 जिलों में से 382 में पॉजिटिविटी दर 10 प्रतिशत से अधिक रही। बुरी खबर यह है कि इसमें से 77 प्रतिशत जिले ग्रामीण थे। उच्चतम पॉजिटिविटी दर वाले 15 जिलों में से तेरह जिले भी ग्रामीण हैं।

उच्चतम पॉजिटिविटी दर वाले पांच जिलों में से चार अरुणाचल प्रदेश में हैं। ये वैसे क्षेत्र हैं जहां अब कोविड का प्रकोप बढ़ने की आशंका है। डाउन टू अर्थ (डीटीई) के पत्रकारों ने उच्च पॉजिटिविटी दर वाले 15 जिलों की यात्रा की। यह समझने के लिए कि महामारी ग्रामीण भारत को कैसे प्रभावित कर रही है और वायरस से निपटने के लिए ग्रामीण स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा कितना तैयार है। 

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