क्या होता है इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (ई-वेस्ट)? देश-दुनिया में कितनी बड़ी है इसकी समस्या?

भारत ने 2018 में अपने कुल ई-वेस्ट का केवल 3 फीसदी ही कलेक्ट किया था जबकि 2019 में वो केवल 10 फीसदी था

By Lalit Maurya
Published: Saturday 03 April 2021

आज जिस तरह से देश दुनिया में इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों का चाव बढ़ता जा रहा है, वो गैजेट जहर बनकर हमारे वातावरण में वापस आ रहे हैं जो न केवल पर्यावरण बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। आइए जानते हैं क्या होता है यह इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (ई-वेस्ट) और यह देश दुनिया के लिए कितना बड़ा खतरा है:

क्या होता है इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (ई-वेस्ट)?

हम अपने घरों और उद्योगों में जिन इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों को इस्तेमाल के बाद फेंक देते है, वहीं बेकार फेंका हुआ कचरा इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (ई-वेस्ट) कहलाता है। इनसे समस्या तब उत्पन्न होती है जब इस कचरे का उचित तरीके से कलेक्शन नहीं किया जाता। साथ ही इनके गैर-वैज्ञानिक तरीके से निपटान किए जाने की वजह से पानी, मिट्टी और हवा जहरीले होते जा रहे हैं। जो स्वास्थ्य के लिए भी समस्या बनते जा रहे हैं।

हर वर्ष दुनिया में कितना उत्पन्न होता है इलेक्ट्रॉनिक कचरा?

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में करीब 5.36 करोड़ मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न हुआ था जोकि 2030 में बढ़कर 7.4 करोड़ मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगा। 2019 में अकेले एशिया में सबसे ज्यादा 2.49 करोड़ टन कचरा उत्पन्न हुआ था। इसके बाद अमेरिका में 1.31 करोड़ टन, यूरोप में 1.2 करोड़ टन, अफ्रीका में  29 लाख टन और ओशिनिया में 7 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट उत्पन्न हुआ था। अनुमान है कि केवल 16 वर्षों में यह ई-वेस्ट लगभग दोगुना हो जाएगा।

भारत में कितनी बड़ी है इस कचरे की समस्या?

सीपीसीबी द्वारा दिसंबर, 2020 में जारी रिपोर्ट से पता चला है कि 2019-20 में भारत ने 10,14,961.2 टन ई-कचरा पैदा किया था। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 और 18-19 के लिए ई-कचरा कलेक्शन का लक्ष्य क्रमश: 35,422 टन और 154,242 टन था। लेकिन वास्तविक कलेक्शन 2017-18 में जहां 25,325 टन था, वहीं 2018-19 में यह केवल 78,281 टन रहा। इसका मतलब है कि भारत ने 2018 में केवल 3 फीसदी कचरा कलेक्ट किया था जबकि 2019 में वो केवल 10 फीसदी था। इसका मतलब है कि इस कचरे की एक बहुत बड़ी मात्रा कलेक्ट ही नहीं होती है रीसायकल करना तो बड़ी दूर की बात है और यही समस्या की असली जड़ है।

किसकी है जिम्मेवारी?

ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट बनाने वाले निर्माताओं को ही अंतत: ई-वेस्ट का कलेक्शन करना होता है। देश में करीब 1630 ऐसे निर्माताओं को ईपीआर (एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पॉंसिबिलिटी) ऑथराइजेशन भी दिया गया है, जिनकी क्षमता 7 लाख टन से अधिक ई-वेस्ट प्रोसेसिंग की है।

लेकिन, ई-वेस्ट कलेक्शन से संबंधित डेटा कुछ और ही कहानी बताते हैं। जिसका सीधा सा मतलब है कि ईपीआर ऑथराइजेशन प्राप्त निर्माता अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे है। गौरतलब है कि सीपीसीबी ने ऐसे 292 निर्माताओं को गलत तरीके से कलेक्शन सेंटर चलाने की वजह से चेतावनी भी दी थी।  

क्या सर्कुलर इकॉनमी में है इसका समाधान?

यदि वैश्विक स्तर पर 2019 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उस वर्ष केवल 17.4 फीसदी ई-वेस्ट को एकत्र और रिसाइकल किया गया था, जबकि 82.6 फीसदी हिस्से को ऐसे ही फेंक दिया गया था। जिसका मतलब है कि इस कचरे में मौजूद सोना, चांदी, तांबा, प्लेटिनम और अन्य कीमती सामग्री को ऐसे ही बर्बाद कर दिया गया।

यदि इसकी कुल कीमत की बात करें तो वो करीब 413,277 करोड़ रुपए (5,700 करोड़ डॉलर) के बराबर थी, जोकि कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है। आमतौर पर इस कचरे को फेंक दिया जाता है पर यदि इसका ठीक तरीके से नियंत्रण और प्रबंधन किया जाए तो यह आर्थिक विकास में मदद कर सकता है। यह बात भारत के लिए भी लागु होती है।

कचरे से जुडी अन्य जानकारी के लिए पढ़े इस श्रंखला का अगला भाग

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