Managing Editor, Down To Earth. He has been associated with the fortnightly since 1997 and has written extensively on rural affairs and development matters
अमृत काल बनाम न्यू इंडिया: आर्थिक संकट के बीच आध्यात्मिक राजनीतिक एजेंडा का दौर
गहरे आर्थिक संकट के वक्त हम अवास्तविक राजनीतिक एजेंडा क…
क्या जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते पलायन को वैश्विक मान्यता मिल पाएगी?
जलवायु परिवर्तन के कारण एक से दूसरे देश में पलायन को सुव…
ग्राउंड रिपोर्ट: हर पेड़ की कटाई के साथ ही गरीब हो जाते हैं बस्तर के आदिवासी
आधुनिक विकास के जख्म देखने हों तो बस्तर के आदिवासी बहुल …
एक दशक से भारत में गरीबी में आती कमी की रफ्तार हुई धीमी
अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत में गरीबी के स्तर का आकलन किय…
A year without a crop
A failed monsoon is alarming for Jharkhand, a state where severe drought has become more frequent in the last 2 decades
आंकड़ों से किसे और क्यों लगता है डर
मौजूदा समय में इस संगठन के बहुत से सर्वेक्षणों को कूड़े…
मुफ्त की रेवड़ियों पर मुफ्त की सलाह
मोदी के बयान के दो निहितार्थ हो सकते हैं। पहला, वह मान चु…
मॉनसून 2022: जून में कृषि क्षेत्र में कम हुए करीब 80 लाख मजदूर
धीमे मॉनसून और बुआई का रकबा 15 फीसदी कम होने से ग्रामीण क्…
युवाओं का व्यापक असंतोष क्या वैश्वीकरण का घड़ा फूटने का संकेत है?
दुनिया की युवा आबादी एक ऐसी मुक्त बाजार वाली दुनिया में …
ग्रामसभा को चाहिए असली ‘विकास’
पंचायती राज के तीस साल पूरे होने पर ग्राम सभाओं का उत्था…