एक दशक से भारत में गरीबी में आती कमी की रफ्तार हुई धीमी

अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत में गरीबी के स्तर का आकलन किया गया है, जो दर्शाता है कि भारत में व्याप्त गरीबी वैश्विक स्तर पर भी इसके स्तर को बढ़ा रही है।

By Richard Mahapatra

On: Friday 16 September 2022
 

वैश्विक स्तर पर आज से एक नई गरीबी रेखा को अपनाया गया है। इसके साथ ही विश्व बैंक ने अपने गरीबी और असमानता के आंकड़ों को भी अपडेट किया है। लेकिन इस अपडेट में दशकों से छूटी हुई एक और चीज है जिसे जोड़ा गया है और वो हैं भारत के गरीबी से जुड़े आंकड़ें। इन आंकड़ों से न केवल वैश्विक रूप से गरीबी के स्तर पर असर पड़ता है, बल्कि भारतीयों को पता चला है कि हम कितने गरीब हैं, जिसकी जानकारी पिछले एक दशक के दौरान नहीं मिल पा रही थी।

2.15 डॉलर प्रतिदिन की इस नई गरीबी रेखा के आधार पर देखें तो 2019 में करीब 10 फीसदी भारतीय गरीब थे। गरीबी का यह आंकड़ा 2011 में 22.5 फीसदी था। ग्रामीण भारत, शहरों की तुलना में कहीं ज्यादा गरीब है। आंकड़ों के मुताबिक जहां ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी दर 11.9 फीसदी है वहीं शहरी क्षेत्रों में 6.4 फीसदी लोग इस गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रहे हैं।

इस बारे में विश्व बैंक के पॉलिसी रिसर्च वर्किंग पेपर के लेखक सुतीर्थ सिन्हा रॉय और रॉय वैन डेर वीड, जिन्होंने भारत में गरीबी के स्तर का अनुमान लगाया है, के अनुमानों से पता चलता है कि "भारत में पिछले एक दशक के दौरान गरीबी के स्तर में गिरावट आई है, लेकिन यह गिरावट उतनी नहीं है जितनी सोची गई थी।"

विश्व बैंक की वेबसाइट पर प्रकाशित अनुमान से पता चलता है कि 2011 की तुलना में 2019 में अत्यधिक गरीबी की मार झेल रहे लोगों का आंकड़ा 12.3 फीसदी कम है। वहीं इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के स्तर में ज्यादा कमी आई है। लेकिन साथ ही भारत के राष्ट्रीय खातों के खपत संबंधी आंकड़ों से यह भी पता चला है कि देश में गरीबी का स्तर अन्य एजेंसियों द्वारा लगाए पिछले अनुमानों की तुलना में काफी ज्यादा है। हालांकि इन आंकड़ों से यह भी पता चला है कि “2011 से  भारत में उपभोग संबंधी असमानता कम हुई है।“

गौरतलब है कि भारत ने 2011 के बाद से नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के उपभोग व्यय सर्वेक्षणों के आधार पर देश में गरीबी के आंकड़े घोषित नहीं किए हैं। 2017-18 में एनएसएसओ द्वारा एक खपत व्यय सर्वेक्षण जारी किया जाना था, लेकिन सरकार ने इसका प्रकाशन रोक दिया था। जो दर्शाता है कि देश में गरीबी बढ़ गई है।

ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि भारत के गरीबी के आधिकारिक आंकड़ों के बिना एजेंसियां अंतराष्ट्रीय स्तर पर गरीबी का सटीक अनुमान कैसे लगा पाएंगी, जबकि भारत दुनिया में ऐसा देश है जहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या किसी और देश की तुलना में सबसे ज्यादा है। ऐसे में गरीबी उन्मूलन के लिए तय किए गए सतत विकास के लक्ष्य 1 का क्या होगा, जिसे 2030 तक हासिल किया जाना था, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

विश्व बैंक ने अपनी इस नई रिपोर्ट में निजी डेटा कंपनी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के उपभोग सर्वेक्षणों संबंधी आंकड़ों का उपयोग किया है, जिन्हें कंस्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) कहा जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सीएमआईई जनवरी 2014 से हर चौथे महीने 28 राज्यों में 174, 000 घरों के सैम्पल्स के साथ ये सर्वेक्षण कर रहा है। इन सर्वेक्षणों के आधार पर गरीबी का जो नवीनतम आंकड़ा जारी किया गया है, वो 2019 का है, जोकि महामारी शुरू होने से पहले का साल था।

रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण भारत में 2011 से 2019 के बीच गरीबी के स्तर में कहीं ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के स्तर में 14.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी वहीं शहरी क्षेत्रों के लिए यह आंकड़ा 7.9 फीसदी था।

बैंक द्वारा किए विश्लेषण में 2016 के दौरान शहरी गरीबी में अचानक वृद्धि देखी गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2 फीसदी ज्यादा थी। इसके लिए नोटबंदी को जिम्मेवार ठहराया गया है।

2011 के बाद से गरीबी में आई कमी की प्रवृत्ति पर विश्लेषण का कहना है कि 2015 से 2019 के दौरान गरीबी में कमी की यह दर पिछले अनुमानों की तुलना में काफी कम होने का अनुमान है। यह अनुमान राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी में रिपोर्ट किए गए निजी अंतिम उपभोग व्यय में वृद्धि पर आधारित थे।

जहां 2004 से 2011 के बीच गरीबी के स्तर में कमी के दर सालाना 2.5 फीसदी थी वो 2011 से 18 के बीच घटकर 1.3 फीसदी रह गई थी। आंकड़ों के मुताबिक गरीबी में सबसे तेजी से कमी 2017 और 2018 के बीच दर्ज की गई थी उसके बाद से गरीबी में आने वाली कमी की यह दर ठप हो गई थी।

भारत में गरीबी के नए आंकड़ों को वैश्विक प्रणाली में अपडेट करने के साथ ही गरीबों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। विश्व बैंक ने कहा है कि, “2018 में वैश्विक गरीबी हेडकाउंट 8.7 से बढ़कर 8.9 फीसदी तक पहुंच गया है।“  

2017 में क्रय शक्ति समानताएं (पीपीपी) जिन्हें नई गरीबी रेखा के आधार पर अपडेट किया गया है, वो स्वयं वैश्विक गरीबी को कम करते हैं। यह आंकड़े वैश्विक गरीबी को बढ़ाने वाले भारत के नए अनुमानों से कहीं ज्यादा हैं। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में गरीबी दर और गरीबों की संख्या में भी वृद्धि होगी।

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