कृषि भूमि कीमत सूचकांक : कम उपज और कर्ज से जूझते किसानों के लिए बन सकता है सहारा

पायलट योजना के तहत अभी छह राज्यों को इसमें शामिल किया गया है। इनमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। सितंबर, 2022 तक इसमें और राज्य शामिल किए जाएंगे।

By Vivek Mishra

On: Thursday 02 June 2022
 
Photo : भारतीय कृषि भूमि मूल्य सूचकांक को लेकर प्रेस कांफ्रेंस, फोटो : विवेक मिश्रा

किसानों के पास ऐसा कोई जरिया नहीं है जिससे वह ठीक से यह जानें कि उनकी कृषि योग्य जमीन की उचित कीमत क्या है? कभी किसान कृषि भूमि के अधिग्रहण पर हर्जाने को लेकर कानूनी विवाद में फंस जाता है तो  कभी किसान अपने जमीन की वास्तविक कीमत नहीं हासिल कर पाता। कृषि जमीन से जुड़ी ऐसी ही समस्याओं के हल के लिए एक सूचकांक का रास्ता खोजा जा रहा है। 

देश में पहली बार भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद के मिसरा सेंटर फॉर फाइनेंसियल मार्केट्स एंड इकोनॉमी सेंटर के जरिए ऐसा भारतीय कृषि भूमि मूल्य सूचकांक (आईएसएलपीआई) बनाने की कोशिश की गई है जो कृषि जमीनों की वास्तविक और उचित लाभकारी कीमत बताएगा। यह वेबसाइट सेंटर के जरिए ही होस्ट की जाएगी। 

पायलट योजना के तहत अभी छह राज्यों को इसमें शामिल किया गया है। इनमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। सितंबर, 2022 तक इसमें और राज्य शामिल किए जाएंगे। 

आईआईएम अहमदाबाद के रियल इस्टेट फाइनेंस के एसोसिएट प्रोफेसर प्रशांत दास ने आईएसएलपीआई को जरूरत को लेकर बताया कि ज्यादातर किसान अपनी कृषि भूमि से जो रिटर्न हासिल कर रहे हैं वह नाकाफी है। मसलन किसानों को खेती में उपज से महज 0.5 से 2 फीसदी का रिटर्न हासिल हो पा रहा है। ऐसे में कृषि भूमि की बिक्री के रास्ते उन्हें अच्छी कीमत हासिल करने में यह सूचकांक काफी मददगार साबित हो सकता है। 

दास ने बताया कि देश में 80 फीसदी कृषि परिवार खुद के कामकाज पर निर्भर हैं जबकि 70 फीसदी फसलों का उत्पादन करते हैं। खेती की जमीनों के अच्छे सौदे का भी उनके पास कोई साधन और उम्मीद नहीं है। ऐसे में रीयल इस्टेट की तर्ज पर कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त लाभकारी रास्ते पर चल सकती है। 

यह सूचकांक डिजिटल डिवाईड झेलने वाले लघु और सीमांत किसानों की मदद किस तरह से कर पाएगा? इस सवाल को लेकर दास ने कहा कि यह उनके सामने एक चुनौती है जो आगे हल की जाएगी। 

सूचकांक किस तरह से जमीन की कीमत निर्धारण करेगा। इसके लिए अभी चार प्रमुख फैक्टर्स लिए गए हैं। इनमें सिंचाई, नजदीकी कस्बे से दूरी, नजदीकी एयरपोर्ट से दूरी, इंटरनेशनल एयरपोर्ट की संभावना को प्रमुखता से शामिल किया गया है।  सिंचाई की सुविधा के नजदीक होने पर कीमतों में 15 फीसदी और इंटरनेशनल एयरपोर्ट की संभावना होने पर 20 फीसदी कीमतों में सुधार होता है जबकि कस्बे से प्रति कलोमीटर दूर जाने पर 0.5 फीसदी और नजदीकी एयरपोर्ट से प्रति किलोमीटर दूर जाने पर एक फीसदी प्रति किलोमीटर कीमतों में फर्क पड़ता है। यानी कम होती हैं। 

इस सूचकांक में डेटा आधारित मदद एसफार्मस इंडिया के जरिए की जा रही है। डाउन टू अर्थ के सवाल पर कि आखिर इस सूचकांक के लिए किस तरह के आंकड़े जुटाए गए? एस फार्म्स इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मुप्पाराजू सिवकामेश्वरा राव ने कहा कि इसके लिए पूरे देश में 30 हजार किसानों का आंकड़ा इकट्ठा किया गया था। इसमें से 7 हजार किसानों ने 0.25 से लेकर 50 एकड़ तक की जमीनें बेची हैं। उन्होंने बताया कि ज्यादा जमीनें बिक्री करने वाले बड़े रकबे वाले किसान हैं। 

इन 30 हजार  किसानों के आंकड़ों के आधार पर किए गए विश्लेषण से शुरु हुई पायलट योजना के तहत कृषि भूमि कीमत सूचकांक में दावा किया गया है कि वह छह राज्यों के कृषि जमीनों की उचित कीमत बताने में सक्षम होगा। 

इस सूचकांक में कृषि योग्य भूमि की कीमत निर्धारण करने के लिए सर्कल रेट, रेवन्यू में दर्ज जमीन के प्रकार आदि विषयों का अभी समावेश नहीं किया गया है। दास ने कहा कि सूचकांक के लिए इन बिंदुओं को आगे शामिल किया जाएगा। 

दास ने कहा कि हम चाहते हैं कि यह सूचकांक नीति-निर्माताओं को भी आकर्षित करे, ताकि वह किसी कृषि भूमि अधिग्रहण या अन्य कामकाज के लिए कृषि भूमि का उचित और वैज्ञानिक रूप से मुआवजा प्रदान कर सकें। यह सूचकांक बायर्स और सेलर्स के बीच प्राइस मूवमेंट से लेकर वित्तीय समावेश में लाभ पहुंचा सकता है। खासतौर से कृषि जमीन पर प्राप्त होने वाले लोन और बीमा भुगतान को बेहतर तरीके से निपटाने में यह मददगार होगा। 

आईआईएमए के निदेशक प्रोफेसर एर्रोल डिसूजा ने कहा भारत में दुनिया का  सिर्फ 2 फीसदी फसली जमीन का हिस्सा है लेकिन यह दुनिया के 15 फीसदी लोगों का पेट भरती है। हाल ही में हमने कृषि भूमि और संबद्ध व्यवासायों में उद्यमशीलका की रुचि में वृद्धि देखी है। कृषि इंजीनयिरिंग और अन्य तरह की उद्यमिता भी बढ़ी है। ऐसे में यह सही समय है कि एक ऐसा सूचकांक हो जो ऐसे लोगों को कृषि योग्य भूमि की कीमतों को लेकर गाइड कर सके। 

 

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