रिपोर्ट : हितों के टकराव से ग्रस्त है भारत का विशाल खाद्य फोर्टिफिकेशन कार्यक्रम
फोर्टिफिकेशन कार्यक्रम को बढाने वाली ईकाई फूड फोर्टिफिकेशन रिसोर्स सेंटर (एफएफआरसी) है जो एक उद्योग से जुड़ी संस्था है। जिसके सदस्य वित्तीय तौर पर लाभान्वित हो रहे हैं।
On: Thursday 16 February 2023
देश में व्यापक रूप से किया जा रहा फूड फोर्टिफिकेशन सवालों के घेरे में आ गया है। दरअसल फूड फोर्टिफिकेशन में शामिल संस्थाओं के बीच न सिर्फ हितों का आपसी टकराव है बल्कि फोर्टिफिकेशन के कार्यक्रम को बढाने वाली ईकाई के लोग वित्तीय रूप से लाभान्वित हो रहे हैं। फोर्टिफिकेशन कार्यक्रम को बढाने वाली ईकाई फूड फोर्टिफिकेशन रिसोर्स सेंटर (एफएफआरसी) है जो एक उद्योग से जुड़ी संस्था है और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के भीतर स्थित है, जो भारत का खाद्य सुरक्षा नियामक है।
एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) ने 16 फरवरी, 2023 को एक रिपोर्ट जारी कर यह बात कही है। यह रिपोर्ट भारत की खाद्य फोर्टिफिकेशन सार्वजनिक नीतियों और कार्यक्रमों में व्याप्त हितों के आपत्तिजनक टकराव पर केंद्रित है। इसका शीर्षक है “क्या भारत के खाद्य सुरक्षा नियामक (एफएसएसएआई) और भारतीय नागरिकों को फूड फोर्टिफिकेशन पहल के पीछे (विदेशी और भारतीय) प्राइवेट प्लेयर्स से बचने की आवश्यकता है?”
जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि एफएफआरसी के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सदस्य भारत में खाद्य फोर्टिफिकेशन कार्यक्रमों के विस्तार से वित्तीय रूप से लाभान्वित होते हैं। मौजूद लाभ के उद्देश्य को देखते हुए रिपोर्ट एफएसएसएआई के भीतर एफएफआरसी के स्थान पर सवाल उठाती है, क्योंकि एफएसएसएआई एक वैधानिक नियामक निकाय है जिसका उद्देश्य नागरिक स्वास्थ्य की रक्षा करना है, और जिसके स्वतंत्र रूप से कार्य करने की उम्मीद है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “इस रिपोर्ट के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि भारत की नियामक संस्था, एफएसएसएआई के अंदर एक सीट क्यों है। इसके अलावा, ऐसे लोग फोर्टीफिकेशन कार्यक्रमों का सह-कार्यान्वयन कर रहे हैं, वित्त पोषण और सलाहकार सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, राज्य कार्यक्रमों में मालिकाना प्रौद्योगिकियों की बिक्री कर रहे हैं और सरकार के तथाकथित ‘स्वतंत्र’ मूल्यांकन अध्ययनों का संचालन कर रहे हैं। हम यह बात रखना चाहते हैं कि एफएसएसएआई के अंदर एफएफआरसी की उपस्थिति हितों के टकराव से बचने के लिए आगे की जांच और हस्तक्षेप की पात्र है।”
एफएफआरसी के भागीदारों के उदाहरणों में टाटा ट्रस्ट शामिल हैं, जो एफएफआरसी का संस्थापक भागीदार है और टाटा समूह, वेला न्यूट्रोलॉजिकल, और टाटा ग्लोबल बेवरेजेज से जुड़ा हुआ है – ये सभी फोर्टिफिकेशन से लाभान्वित होने के लिए खड़े हैं क्योंकि वे फोर्टीफिकेशन में या फोर्टिफाइड खाद्य उत्पादों के निर्माण में उपयोग किए गए न्यूट्रास्यूटिकल्स का उत्पादन करते है।
एक अन्य प्रमुख भागीदार ग्लोबल एलायंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रिशन है, जिसमें इसकी सदस्यता में कई न्यूट्रास्यूटिकल्स तथा बीएएसएफ, डीएसएम और कारगिल जैसे बड़े खाद्य निगम शामिल हैं। जीआईएन अपनी खुद की प्रीमिक्स सुविधा भी चलाता है जिसके माध्यम से यह फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का निर्माण और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बिक्री करता है। PATH, एक वैक्सीन, ड्रग्स और डिवाइस निर्माता, और एफएफआरसी का सदस्य रहते हुए अल्ट्रा राइस® नामक फोर्टिफाइड राइस तकनीक पर एक ट्रेडमार्क रखता है, जिसे कुछ राज्यों में सरकार के मध्याह्न भोजन योजना में आपूर्ति के रुप में प्रदान किया जा रहा है।
रिपोर्ट में प्रदान किए गए कई अन्य उदाहरणों से पता चलता है कि ये कॉर्पोरेट वर्ग भारत में फोर्टिफिकेशन के लिए एक धक्का के रुप में आर्थिक रूप से लाभान्वित होने के लिए खड़े हैं। इनमें से कई संस्थाएं बदले में बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से जुड़ी हुई हैं, जिसने लॉबी समूहों को खुले बाजारों में धन देने, अनुकूल कर दरें प्राप्त करने और अन्य देशों में बड़े खाद्य निगमों के लिए तेजी से विनियामक समीक्षा प्राप्त करने में भूमिका निभाई है।
एफएसएसएआई के भीतर एफएफआरसी के स्थान के साथ प्रमुख चिंताओं को उजागर करते हुए रिपोर्ट समाप्त होती है। हितों के संभावित टकराव के महत्वपूर्ण मुद्दे के अलावा, फोर्टिफिकेशन पर किसी अन्य महत्वपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण और साक्ष्य के बिना ‘हर मर्ज़ की एक दवा’ के रूप में फोर्टिफिकेशन का एकतरफा चित्रण भी है। यह बताना महत्वपूर्ण है कि फोर्टिफिकेशन पर एफएसएसएआई वैज्ञानिक पैनल के व्यक्तिगत विशेषज्ञ सदस्य वास्तव में देश में आयरन फोर्टिफिकेशन ज़ोर के खिलाफ दृढ़ता से सलाह देने वाले लेख प्रकाशित करते रहे हैं। हालाँकि, एफएफआरसी का ज़ोर प्रबल प्रतीत होता है, जबकि एफएसएसएआई के वैधानिक निकायों के अंदर जो हो रहा है उसे अपारदर्शी रखा गया है।
और अंत में, एफएसएसएआई और एफएफआरसी के अधिदेश अलग-अलग हैं- एफएसएसएआई को खाद्य सुरक्षा के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित माना जाता है जिसमें एक स्वतंत्र तरीके से जोखिम मूल्यांकन, पारदर्शी सार्वजनिक परामर्श, उपभोक्ता की पसंद की सुरक्षा और दूसरों के बीच हित शामिल हैं। दूसरी ओर एफएफआरसी की एक प्रायोजित प्रचारात्मक भूमिका है। ऐसी चिंताओं को देखते हुए, यह रिपोर्ट एफएसएसएआई जैसी नियामक संस्था के भीतर निजी हितों में संरचनात्मक समस्या पर प्रकाश डालती है और आग्रह करती है कि भारत के कानूनों के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के मामलों में उनके प्रभाव क्षेत्र की जाँच की जाए।