पंजाब में प्रतिबंध लेकिन चावल उत्पादन में ट्राइसाइकलाजोल कीटनाशक इस्तेमाल को केंद्र की हरी झंडी
दुनिया में प्रति हेक्टेयर 0.5 किलोग्राम कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है जबकि भारत में यह कई गुना ज्यादा है। यहां प्रति हेक्टेयर 0.381 किलोग्राम कीटनाशक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
On: Friday 27 May 2022
भारतीय बासमती और अन्य चावल उत्पादन में ट्राइसाइकलाजोल (टीसीए) और बुपरोफेजिन नाम के कीटनाशक का इस्तेमाल किसान जारी रख सकेंगे। पंजाब सरकार ने इन दोनों कीटनाशकों पर केंद्र सरकार को प्रतिबंध लगाने की वकालत की थी और 2020 में अपने राज्य में इन्हें प्रतिबंधित कर दिया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने इन दोनों कीटनाशकों के न्यायपूर्ण इस्तेमाल पर जोर दिया है।
ट्राइसाइकलाजोल एक कीटनाशक (फंगीसाइड) है जो किसानों के लिए सस्ता विकल्प माना जाता है।
वहीं, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से इन दोनों कीटनाशकों के सुरक्षित और न्यायपूर्ण इस्तेमाल को लेकर बीते वर्ष जारी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) में कहा कि यह कीटनाशक सुरक्षित है हालांकि उपयोग, प्रभावकारिता और सुरक्षा संबंधी वैज्ञानिक आंकड़ों के अभाव है। ऐसे में इसके प्रतिबंध पर अंतिम निर्णय लेने से पहले इसके सुरक्षित और न्यायपूर्ण इस्तेमाल एसओपी के तहत किया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने मई, 2020 में एक प्रारूप अधिसूचना जारी कर 27 अत्यंत खतरनाक पेस्टीसाइड को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया था। हालांकि, इस पर अभी निर्णायक फैसला सरकार की तरफ से आना बाकी है।
जब केंद्र सरकार की ओर से 27 अत्यंत नुकसानदायक पेस्टीसाइड पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया था उसी वक्त पंजाब सरकार ने 6 और पेस्टीसाइड को प्रतिबंधित करने का आग्रह किया था। इनमें ट्राइसाइकलाजोल और बुपोफेजिन भी शामिल था।
तत्कालीन अमरेंद्र सिंह वाली पंजाब सरकार का कहना था कि इन दोनों कीटनाशकों की वजह से हमारे खासतौर से बासमती चावल उत्पादक और निर्यातकों को लाभकारी मूल्य नहीं मिल पा रहा है। गुणवत्ता के सवाल से किसानों को वैश्विक बाजार में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। पंजाब सरकार ने उस वक्त इन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
दरअसल 09 जून, 2017 को ईयू ने अधिसूचना जारी कर चावल में टीसीए कीटनाशक की अधिकतम उपिस्थिति यानी मैक्सिमम रेजिड्यू लिमिट (एमआरएल) 0.01 एमजी प्रति किलोग्राम कर दिया था। बासमती चावल पर यह 30 दिसंबर, 2017 और अन्य चावल पर 30 जून, 2017 से ही लागू था।
हालांकि, 03 फरवरी, 2020 को केंद्र सरकार की ओर से एक और प्रारूप जारी किया गया जिसमें इन दोनों कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने पर सुझाव और आपत्ति मांगी गई थी। हालाकि, 21 जून, 2021 को जारी एसओपी में प्रतिबंध पर निर्णय बदल दिया गया।
निर्यात पर फोकस करने वाली केंद्र सरकार ईयू के तय मानकों के आधार पर कीटनाशकों के प्रयोग का निर्णय ले रही है। हालांकि ट्राइसाइकलाजोल का सस्ता विकल्प नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने खतरनाक रसायनों और कीटनाशकों के प्रयोग पर 2019 में समीक्षा शुरू की थी। इस मामले में एक अंतरमंत्रालयी समिति का गठन किया था। इस समिति ने 8 जनवरी, 2019 और 10 अक्तूबर, 2019 को टीसीए और बुपरोफेजिन के प्रयोग को लेकर समीक्षा करते हुए कहा था कि यह मानवों, पशुओं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है।
बहरहाल अभी यह दोनों कीटनाशक का इस्तेमाल जारी है और प्रतिबंध के लिए प्रस्तावित 27 अन्य रसायनिक कीटनाशकों पर भी निर्णय आना बाकी है।
पैन इंटरनेशनल की मार्च 2021 सूची में बताया गया है कि ट्राइसाइकलाजोल और बुपरोफेजिन को 2013 में हाईली हजार्ड्स पेस्टिसाइड की श्रेणी से निकाल दिया गया था। यानी इन्हें कार्सियोजेनिक या कैंसरकारी नहीं माना गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ट्राइसाइकलाजोल क्लास टू और बुपरोफेजिन क्लास 3 श्रेणी का पेस्टिसाइड है। इसका अर्थ हुआ कि ट्राइसाइकलाजोल मॉडरेटली हजार्ड्स और बुपरोफेजिन स्लाइटली हजार्ड्स है।