70 फीसदी से अधिक जिलों में सूखे की स्थिति, फसल की उपज हो सकती है प्रभावित  

माधवन के अनुसार देश में चेरापूंजी जैसे गीले क्षेत्रों में हल्के सूखे से उतना फर्क नहीं पड़ता है जबकि विदर्भ क्षेत्र जो पहले से ही सूखी स्थितियों वाले हैं वहां हल्का सूखा भी बड़ा नुकसान कर सकता है।

By Pulaha Roy, Vivek Mishra

On: Tuesday 26 September 2023
 
Photo: iStock

इस बार कम समय में अतिवृष्टि और सूखे की स्थिति वाले अप्रत्याशित मानसून ने न सिर्फ बुआई में देरी की है बल्कि यह फसल की उपज को भी प्रभावित कर सकता है। बीते 123 साल में सबसे कम वर्षा इस बार अगस्त महीन में दर्ज की गई। इसके बाद भी सितंबर में हालात बहुत बेहतर नहीं हुए हैं। डाउन टू अर्थ के जरिए 20 अगस्त से 24 सितंबर, 2023 तक स्टैंडर्डाइज्ड प्रेसिपिटेशन इंडेक्स (एसपीआई) डाटा का विश्लेषण करने पर पाया गया कि देश के कुल 718 जिलों में से 500 से अधिक जिले  वर्तमान में मौसम संबंधी सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं। इन 500 जिलों मे हल्के शुष्क से लेकर अत्यधिक शुष्क तक की स्थितियां हैं (मानचित्र में देखें)। वहीं विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि सितंबर महीने में सूखे की ऐसी स्थिति फसल की उपज को नुकसान पहुंचा सकती है।

एसपीआई सूखे की निगरानी के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा अपनाया गया एक उपकरण है जो संभावित स्थितियों को दर्शाता है। सूचकांक में नकारात्मक मूल्यों का मतलब सूखे जैसी स्थिति और सकारात्मक मूल्यों का मतलब आद्र स्थिति से है।

Map : SPI

जैसा कि मानचित्र में देखा जा सकता है भारत का अधिकांश भाग यानी करीब 718 जिलों में करीब 53 फीसदी जिले 'हल्के सूखे' श्रेणी में  है। वहीं, मध्यम से अत्यंत सूखे वाली श्रेणी जो कि हॉटस्पॉट है उसमें लगभग संपूर्ण उत्तर पूर्व भारत, पूर्वी भारत के कुछ हिस्से, और जम्मू और कश्मीर शामिल है। वहीं, इसके अलावा दक्षिणी प्रायद्वीप का बड़ा हिस्सा, पूर्वी तट पर महाराष्ट्र, कर्नाटक से लेकर आंध्र प्रदेश तक यही स्थिति है।

एसपीआई सूखे की निगरानी के लिए एक मजबूत संकेतक है, लेकिन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन के अनुसार सूचकांक के इन आंकड़ों की "व्याख्या जटिल" हैं। उन्होंने कहा, "एसपीआई श्रेणियां अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती हैं और बाहरी तौर पर सूखा घोषित करने से पहले मौजूदा जमीनी हकीकत को भी ध्यान में रखना पड़ता है।"

माधवन के अनुसार देश में चेरापूंजी जैसे गीले क्षेत्रों में हल्के सूखे से उतना फर्क नहीं पड़ता है जबकि विदर्भ क्षेत्र जो पहले से ही सूखी स्थितियों वाले हैं वहां हल्का सूखा भी बड़ा नुकसान कर सकता है।  

राजीवन ने कहा, "इसलिए भले ही देश का 53 प्रतिशत हिस्सा हल्का सूखा श्रेणी में हो,  लेकिन हमें जमीनी हकीकत देखनी होगी।"

ऐसी स्थिति का कारण क्या है?  राजीवन के अनुसार इस मॉनसून में बारिश के अस्थायी और स्थानिक वितरण के साथ-साथ अगस्त में लंबे समय तक मॉनसून ब्रेक भी शामिल रहा है।

दरअसल, अगस्त 2023 में 21वीं सदी में तीसरा सबसे बड़ा मॉनसून ब्रेक देखा गया। मानसून ब्रेक 7 अगस्त से 18 अगस्त, 2023 तक चला। इतने लंबे ब्रेक के कारण बारिश में 36 प्रतिशत की कमी हुई, जिससे अगस्त 2023 रिकॉर्ड किए गए 123 वर्षों के इतिहास में अब तक का सबसे शुष्क वर्ष बन गया।

राजीवन के अनुसार  मानसून 2023 की शुरुआत के बाद से ही वर्षा वितरण में अत्यधिक विषमता रही है।

राजीवन ने कहा “जून में  हमारे पास 10 प्रतिशत की कमी थी, फिर जुलाई में 13 प्रतिशत की अधिकता और उसके बाद अगस्त अब तक का सबसे शुष्क महीना था। स्थानिक रूप से  सूखे क्षेत्रों में गीले क्षेत्रों की तुलना में अधिक बारिश हुई है, इसलिए वितरण अत्यधिक विषम हो गया है।”

तो  जब देश का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सूखे जैसी स्थिति की रिपोर्ट कर रहा है, तो स्थिति कितनी चिंताजनक है? “सबसे शुष्क अगस्त का प्रभाव अब निश्चित रूप से स्पष्ट है। यह अच्छी स्थिति नहीं है। लेकिन स्थिति का आकलन कृषि परिप्रेक्ष्य से करने की जरूरत है।" राजीवन ने कहा। उन्होंने कहा कि इसका असर फसलों पर पड़ा होगा।

क्रॉप वेदर वॉच ग्रुप के अनुसार, 2022 की तुलना में 2023 में बुआई क्षेत्र 33 प्रतिशत अधिक रहा है, लेकिन इसका मतलब स्वचालित रूप से अधिक उपज नहीं है।

स्थिति की गंभीरता का आकलन करने के लिए डीटीई ने वरिष्ठ पत्रकार और कृषि जिंस विशेषज्ञ राजेश शर्मा से भी बात की।

शर्मा के अनुसार कटाई का मौसम अभी भी एक महीने दूर है, यह अनुमान लगाना मुश्किल होगा कि 2023 तक उत्पादन कैसा रहेगा। लेकिन शुरुआती रुझानों के अनुसार सोयाबीन के अलावा धान, तिलहन, मूंगफली और दालें जैसे सभी खाद्यान्न में गिरावट की आशंका है।

शर्मा ने बताया, "पिछले साल की तुलना में संचयी बुवाई क्षेत्र में तीन फसलों - चावल, गन्ना और मोटे अनाज के कारण वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उत्पादन भी पिछले साल की तुलना में बढ़ेगा।" शर्मा के मुताबिक, फसल उत्पादन में गिरावट का सबसे बड़ा कारण 2023 में कम बारिश बन सकती है।

वर्तमान में - 1 जून से 25 सितंबर, 2023 - आईएमडी के वर्षा वर्गीकरण के आधार पर केवल 5 राज्यों ने कम बारिश की सूचना है। एक विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि 20 राज्यों ने कम बारिश की सूचना है भले ही वे सभी आईएमडी की 'सामान्य' वर्षा श्रेणी में आते हैं। वहीं, अभी तक संचयी रूप से भारत ने 1971-2020 के दीर्घकालिक औसत वर्षा की तुलना में 5 प्रतिशत की कमी दर्ज की है।

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