आर्थिक सर्वे 2022-23: कृषि क्षेत्र में घटता सरकार का निवेश, निजी निवेश और कर्ज से प्रगति की आस

किसानों के लिए 40 हजार से अधिक ग्रामीण बाजारों का काम दशकों से अधूरा है और सरकार बुनियादी संरचनाओं में अपना निवेश घटा रही है। 

By Vivek Mishra

On: Tuesday 31 January 2023
 
फोटो: विकास चौधरी

पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के लिहाज से दुनिया में भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। महामारी और यूरोप में जारी अशांति के बीच 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था फलने और फूलने जा रही है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-23 इकोनॉमिक सर्वे  रिपोर्ट जारी करते हुए यह विश्वास जताया है। हालांकि, महामारी के तीसरे वर्ष भी आर्थिक रिपोर्ट यह दर्शाता है कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती-किसानी ही है। खेती-किसानी व श्रम-श्रमिकों की प्रगति के आंकड़े इस रिपोर्ट में भले ही चमकदार हों लेकिन उनका विश्लेषण दूसरी तस्वीर पेश करता है।

2022-23 आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक बीते छह वर्षों में कृषि क्षेत्र की सालाना औसत वृद्धि दर 4.6 फीसदी है। सरकार ने इसके कारण में आंशिक तौर पर अच्छा मानसून वर्ष और सरकार के कृषि संबंधी सुधारों को गिनाने की कोशिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के झटके के बावजूद कृषि और संबंधित क्षेत्रों ने अच्छी प्रगति दर्ज की है। यदि आर्थिक सर्वे में इन बातों से संबंधित आंकड़ों को देखिए तो यह स्पष्ट होता है कि कृषि क्षेत्र की सालाना 4.6 फीसदी औसत वृद्धि दर स्पष्ट तस्वीर नहीं पेश करती। वर्ष 2014-15 में कृषि और संबंधित क्षेत्रों की वृद्धि दर 0.2 फीसदी, 2015-16 में 0.6 फीसदी, 2018-19 में 2.1 फीसदी यानी न्यूनतम स्तर पर रही। इन सभी वर्षों को सूखे का सामना करना पड़ा था। जबकि 2016-17 में 6.8 फीसदी, 2017-18 में 6.6 फीसदी, 2019-20 में 5.5 फीसदी, 2020-21 में 3.3 फीसदी और 2021-22 में 3 फीसदी की औसत वृद्धि दर मानसून के बल पर ही बेहतर रही। 

इसी तरह कृषि क्षेत्र में सरकार सर्वाधिक निजी निवेश की बात कर रही है। हालांकि, कृषि क्षेत्र स्वयं सदैव से देश का सबसे बड़ा निजी उद्यम रहा है। आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में कृषि क्षेत्र में निजी निवेश 9.3 फीसदी है जबकि 2014-15 में भी कृषि क्षेत्र में निजी निवेश 9.3 फीसदी रहा है। सरकार जिस निजी निवेश की बात कर रही है दरअसल वह कृषि में बड़े व्यावसायिक निवेश का संकेत है। जबकि कृषि क्षेत्र में सरकार का अपना निवेश घटता जा रहा है। वर्ष 2014-15 में सरकार का कृषि क्षेत्र में निवेश 5.4 फीसदी था, जबकि 2020-21 में यह कृषि निवेश घटकर 4.3 फीसदी हो गया है।

आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सरकार अब भी कृषि क्षेत्र को संस्थागत कर्ज और ब्याज के जरिए आगे बढाना चाहती है। हालांकि सरकार इन संस्थागत कृषि ऋणों में जारी भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन व मौसम की मार झेल रहे किसानों के बोझ को कम करने के बारे में नहीं सोच रही है। 

किसानों के लिए 40 हजार से अधिक ग्रामीण बाजारों का काम दशकों से अधूरा है और सरकार बुनियादी संरचनाओं में अपना निवेश घटा रही है। 

आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक कृषि क्षेत्र में संस्थागत निवेश के लक्ष्य को पार कर रही है। 2021-22 में लक्ष्य से 13 फीसदी अधिक कुल 16.5 लाख करोड़ रुपए बांटे गए। वहीं वित्त वर्ष 2022-23 में  18.5 लाख करोड़ रुपए संस्थागत कृषि ऋण का लक्ष्य रखा गया है। इसी तरह कृषि संबंधी जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 में सेंट्रल सेक्टर स्कीम एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड स्थापित किया था। यह कोविड के वक्त जारी 20 लाख करोड़ रुपए फंड की घोषणा का हिस्सा था। इस बार आर्थिक सर्वे रिपोर्ट में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड से ऋण प्रवाह जारी रखने की बात कही गई है। 

वहीं, किसानों की आय दोगुनी मामले में भी कोई स्पष्ट बात सामने नहीं आई। यह कहा गया कि सिफारिशों के मुताबिक कदम बढाए जा रहे हैं।

ग्रामीण रोजगार 

श्रम और श्रमिक के मामले में भी आर्थिक सर्वे ने निराश किया है। 6 जनवरी, 2023 तक कुल 225.8 करोड़ श्रम दिवस पैदा किया गया जो कि वर्ष  2018-19 में  267.9 करोड़ श्रम दिवस के मुकाबले काफी कम है। इस बात के संकेत बीते दो वित्त वर्ष से मिल रहे हैं। क्योंकि बीते दो वित्त वर्ष से बजट में मनरेगा के लिए फंड का प्रावधान लगातार कम किया जा रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मनरेगा के मद में 73000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। यह बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट 98000 करोड़ रुपए से 25.5 फीसदी कम था। जबकि इससे पहले वित्त वर्ष 2021-22 में मनरेगा बजट में 34.5 फीसदी की कमी की गई थी।

 आर्थिक सर्वे में फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) और  को मजबूत करने की बात कही गई है। साथ ही किसानों की उपज के लिए किसान रेल का जिक्र किया गया है। 

सरकार ने आर्थिक सर्वे में कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की चुनौती, टुकड़ों में बंटी हुई जोत, गैर मशीनी खेती, कम उपज, रोजगार, बढती लागत को चुनौती जरूर माना है। लेकिन इनके उपायों का कोई जिक्र नहीं है।  

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