नैनो यूरिया ट्रायल से खेत तक, भाग-एक: किसानों का क्यों हो रहा मोहभंग?

दावा किया गया था कि नैनो यूरिया के जरिए न सिर्फ सब्सिडी वाले पारंपरिक यूरिया का बोझ 50 फीसदी तक कम किया जा सकता है बल्कि इससे उपज में 8 फीसदी तक बढोत्तरी भी होगी।

By Vivek Mishra

On: Tuesday 09 May 2023
 
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 53 किमी की दूरी पर बसे गांव बनखेड़ी। फोटो: राकेश कुमार मालवीय

“ वर्ष 2022, नवंबर में कुल 08 हेक्टेयर खेतों में गेहूं की फसल बुआई की थी। बुआई के करीब 20 दिन बाद प्रयोग के तौर पर 4 हेक्टेयर खेत में 500 एमएल वाली 10 नैनो तरल यूरिया की बोतल का छिड़काव  किया। खेतों में इस स्प्रे के लिए कुल 1000 रुपए की अतिरिक्त मजदूरी भी दी। जबकि 4 हेक्टेयर खेत में पहले की तरह पारंपरिक यूरिया का छिड़काव किया। मैंने पाया कि जिन 4 हेक्टेयर खेतों में पारंपरिक यूरिया पड़ी थी उन फसलों के रंग में न सिर्फ बदलाव आया बल्कि पत्ते भी चौड़े हो गए जबकि नैनो यूरिया वाले खेतों में किसी तरह का बदलाव नहीं दिखा। बाद में उन्हें नैनो तरल यूरिया वाले खेतों में मजबूरन पारंपरिक यूरिया छोड़ना पड़ा।”

नैनो तरल यूरिया का यह अनुभव मध्य प्रदेश के सिहोर जिले में रहने वाले 38 वर्षीय किसान प्रवीण परमार का है। प्रवीण डाउन टू अर्थ से बताते हैं अगर वे समय रहते स्टैंडिंग क्रॉप में  पारंपरिक खाद न डालते तो उन्हें उपज में बड़ा नुकसान होता।

इसी तरह से सोनीपत के कुराड़ गांव में रहने वाले 64 वर्षीय किसान सतपाल डाउन टू अर्थ से कहते हैं कि बीते वर्ष नैनो यूरिया का इस्तेमाल उन्होंने भी किया था। नवंबर, 2022 में गेहूं लगाया था जिसकी कटाई अप्रैल, 2023 में की। वह बताते हैं कि फसल में बुआई के करीब 20 से 25 दिन बाद नैनो यूरिया का स्प्रे भी कराया था लेकिन फसलों में कोई बदलाव न दिखने पर उन्होंने पारंपरिक खाद का छिड़काव कर दिया।

क्या वाकई नैनौ तरल यूरिया किसी तरह का बदलाव फसलों में नहीं दे रहा?  इस सवाल पर डेयर के पूर्व डायरेक्टर जनरल त्रिलोचन मोहपात्रा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि “ नैनो तरल यूरिया का पहला ट्रायल उनके कार्यकाल में ही हुआ था उस ट्रायल के रिजल्ट से पता चला कि इससे उपज में कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन स्टैंडिंग क्रॉप में यूरिया इस्तेमाल में 50 फीसदी की कमी आई।” आगे वह नैनो यूरिया के प्रभाव को लेकर कहते हैं कि  “नैनो यूरिया के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। इतना है कि इसका असर जरूर होता है। बस निश्चित रूप से यह नहीं बताया जा सकता है कि यह फसल में कहां स्टिमुलेट करता है और कितना करता है।”

नहीं बढ़ रही उपज

नैनो तरल यूरिया को पेटेंट कराने वाली सहकारी संस्था इफको के दावे के अलावा मार्च, 2023 में संसद की शशि थरूर की अध्य्क्षता वाली पार्लियामेंट की स्टैंडिंग कमेटी ऑन केमिकल एंड फर्टिलिजर्स (2022-23) ने नैनो फर्टिलाइजर्स फॉर सस्टेनबल क्रॉप प्रोडक्शन एंड मेंटेनिंग सॉयल हेल्थ नाम की रिपोर्ट में बताया कि नैनो यूरिया के जरिए न सिर्फ सब्सिडी वाले पारंपरिक यूरिया का बोझ 50 फीसदी तक कम किया जा सकता है बल्कि इससे यील्ड में 8 फीसदी तक बढोत्तरी भी होगी।

उपज बढ़ने के दावे और पारंपरिक यूरिया के इस्तेमाल कम होने के दावे पर डाउन टू अर्थ ने अपनी ग्रांउड रिपोर्ट में पाया कि असमय बारिश के कारण गेहूं की फसल में करीब 30 से 40 फीसदी उपज का नुकसान झेलने वाले किसान खेती में नैनो तरल यूरिया के कारण लागत बढ़ने और उपज में फर्क न पड़ने से परेशान हैं।

हरियाणा के सोनीपत जिले में भटगांव के रहने वाले 19 वर्षीय किसान पवन कहते हैं “बीते साल जब यूरिया संकट हुआ तो 500 मिलीलीटर वाली पांच बोतल नैनो तरल यूरिया दुकान से लेकर आया था। कुल 25 बीघे (2.5 हेक्टेयर) का खेत है जिसमें गेहूं की फसल 4 नवंबर, 2022 को लगाई थी। 2.5 हेक्टेयर में प्रति बीघा 5 कुंतल के हिसाब से कुल 2.5 हेक्टेयर में करीब 125 क्विंतल गेहूं उपज की उम्मीद थी। जबकि इस बार अप्रैल की असमय बारिश ने भी फसल को 30 फीसदी नुकसान पहुंचाया। प्रति बीघे 5 के बजाए 3.5 क्विंतल गेहूं ही मिला। कुल 87.5 क्विंतल गेहूं ही उपज हो पाई। पवन अपने निर्णायक कथन में कहते हैं नैनो यूरिया से फसल में कोई फर्क नहीं दिखाई दिया।”

वहीं, नैनो तरल यूरिया के ट्रायल में सहयोग करने वाले किसान विज्ञान केंद्र से जुड़े एक वैज्ञानिक ने नाम न बताने की शर्त पर डाउन टू अर्थ से कहा कि वह स्वयं नैनो यूरिया का इस्तेमाल अपने खेतों में कर रहे हैं लेकिन इसका कोई परिणाम उनको हासिल नहीं हुआ है। जबकि ट्रायल में सहयोगी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिक भी यह कह रहे हैं कि कम से कम फसलों की यील्ड घट नहीं रही है, यह गनीमत है।

इफको को अक्तूबर, 2021 में नैनो यूरिया श्रीलंका निर्यात करने का मौका मिला था। इसके बाद नैनो यूरिया निर्यात के लिए भी मौके मिलने की उम्मीद जगी थी। हालांकि, इन दो सालों में इफको के नैनो यूरिया निर्यात में करीब 50 फीसदी तक कमी आई है। वित्त वर्ष 2021-22 में 3.06 लाख बोतल का निर्यात किया गया था जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 1.58 लाख का निर्यात किया गया है। 

आगे जानिए किसानों के लिए क्यों घाटे का सौदा बन रही नैनो यूरिया 

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