खेतों में इस्तेमाल होने वाले ग्लाइफोसेट से गर्भ में पल रहे बच्चे को हो सकता है नुकसान

इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इसकी वजह से नवजातों को इंटेंसिव केयर यूनिट में रखने का जोखिम भी कहीं ज्यादा बढ़ जाता है

By Lalit Maurya

On: Monday 31 October 2022
 

इंडियाना यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट के संपर्क में आने से जन्म के समय शिशुओं का वजन सामान्य से कम हो सकता है।

इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इसकी वजह से नवजातों को इंटेंसिव केयर यूनिट में रखने का जोखिम भी कहीं ज्यादा बढ़ जाता है। यह अध्ययन 11 अक्टूबर 2022 को जर्नल एनवायर्नमेंटल हेल्थ में प्रकाशित हुआ है। इस दौरान अध्ययन में शामिल करीब 99 फीसदी गर्भवती महिलाओं के शरीर में ग्लाइफोसेट के पाए जाने की पुष्टि हुई है।

इससे पहले भी शोधकर्ताओं ने 2018 में ऐसा ही एक अध्ययन किया था, जिसमें 93 फीसदी गर्भवती महिलाओं में ग्लाइफोसेट के पाए जाने की पुष्टि हुई थी। उस अध्ययन में भी गर्भधारण की अवधि पर उसके प्रभावों को दर्शाया था, रिसर्च के मुताबिक इस हर्बिसाइड के कारण महिलाओं में गर्भधारण की अवधि घट गई थी। इतना ही नहीं हाल में प्रकाशित अन्य अध्ययनों में भी इस बात की पुष्टि हुई है।

इस बारे में बाल रोग विशेषज्ञ और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता पॉल विनचेस्टर का कहना है कि, “गर्भावस्था में कीटनाशकों का सम्पर्क, विशेष रूप से प्रारंभिक गर्भावस्था में डीएनए को प्रभावित कर सकता है और जीन में बदलावों की वजह बन सकता है।“ हालांकि उनका कहना है कि यह केमिकल इंसानी भ्रूण और उसके विकास को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, इस बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

इसपर किए पिछले अध्ययनों से पता चला है कि केवल किसान ही नहीं अन्य लोग जो खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं वो भी ग्लाइफोसेट के संपर्क में आ सकते हैं यहां तक ​​कि पैकेज्ड खाद्य पदार्थ भी इससे सुरक्षित नहीं हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ग्लाइफोसेट एक ऐसा केमिकल है जो आमतौर पर हर्बिसाइड राउंडअप में पाया जाता है। इसका उपयोग खेतों में खरपतवारों को मारने के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं इस खरपतवारनाशी को मक्का, गेहूं, सोया और कपास जैसी कई फसलों के साथ बगीचों, खेल के मैदानों, सड़कों और रेल की पटरियों के किनारे खरपतवारों को मारने के लिए बड़े पैमाने पर दुनिया भर में इस्तेमाल किया जाता है।

भारत ने कुछ दिनों पहले ही इसके उपयोग को कर दिया है प्रतिबंधित

देखा जाए तो पिछले वर्षों के दौरान इसका उपयोग कई गुना बढ़ गया है। विशेष रूप से जीएम फसलों को बढ़ावा देने के बाद इनके उपयोग में भी तेजी आई है। इसपर किए एक अन्य शोध से पता चला है कि जहां 1995 में वैश्विक स्तर पर किसानों द्वारा इसकी कुल खपत 5.1 करोड़ किलोग्राम थी वो 2014 में 14.6 गुणा वृद्धि के साथ 74.7 करोड़ किलोग्राम पर पहुंच गई थी।

वहीं इस दौरान अमेरिका के कृषि क्षेत्र में इसके इस्तेमाल में 9 गुना से ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई थी। वहीं यदि वैश्विक स्तर पर कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल इस अवधि में 5 गुना बढ़ गया है जो 1995 में 1.6 करोड़ किलोग्राम से बढ़कर 7.9 करोड़ किलोग्राम पर पहुंच गया है।

गौरतलब है कि इंसानों और जानवरों में इसके खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट और उसके घटकों के उपयोग को कुछ दिनों पहले ही भारत में प्रतिबंधित कर दिया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दुनियाभर में किसान पिछले 40 से भी ज्यादा वर्षों से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं। जो किसानों और इसके संपर्क में आने वाले अन्य लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। ग्लाइफोसेट और इसके फॉर्मूलेशन व्यापक रूप से पंजीकृत हैं और मौजूदा वक्त में यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित 160 से अधिक देशों में इसे उपयोग में लाया जाता है।

इनके खतरों में बारे में प्रोफेसर विनचेस्टर का कहना है कि पिछले अध्ययनों में जानवरों पर इस कीटनाशकों के जोखिम और पड़ने वाले कई नकारात्मक प्रभावों को स्पष्ट किया गया है, लेकिन मनुष्यों के भ्रूण और उसके विकास पर इसके प्रभाव के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है।

उनका कहना है कि लेकिन इंसानों पर किए अध्ययन से पता चला है की यह जन्म के समय बच्चों में कम वजन के साथ महिलाओं में मोटापे या मधुमेह जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। ऐसे में इस हर्बिसाइड को लम्बे समय तक अध्ययन करने की जरुरत है, जिससे यह जाना जा सके कि वो कैसे इन समस्याओं को पैदा कर रहे है और इन्हें रोकने के लिए क्या किया जा सकता है।

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