भू-जल संकट : खेतों के लिए सारी जमा-पूंजी लगाकर कराई 1020 फुट बोरिंग, जमीन से निकला जहरीला पानी

गांव में खारे पानी के प्रदूषण ने पेयजल का संकट खड़ा करने के साथ फसलों की पैदावार तक खत्म कर दी है। 

By Vivek Mishra

On: Tuesday 05 April 2022
 
Photo : चरखी दादरी के गोठड़ा गांव में भू-जल संकट

"आप यहां से 6 से 7 किलोमीटर दूर खानपुर गांव चले जाइए। मुझे याद है उस गांव में एक ओम प्रकाश हैं जिन्होंने बरसों पहले मीठे पानी की खोज में अपनी सारी जमापूंजी लगाकर खेतों में 1000 फुट से अधिक की बोरिंग कराई थी, हालांकि समुद्र जैसे खारे पानी के सिवा कुछ नहीं मिला। हमारे पास 84 फुट पर ही बोरिंग है, लेकिन इस गांव का भी पानी इतना खारा हो गया है कि पीना तो दूर की बात है, फसलों की पैदावार तक खत्म हो रही है।" 

हरियाणा के चरखी दादरी के गोठड़ा गांव में पानी की एक खाली बोतल लेकर सुरेंद्र कुमार सरसों की ठूंठ वाले खेतों में खड़े हैं। कभी बोरवेल तो कभी अपने खेतों को निहारते हैं। केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण के मुताबिक भू-जल निकासी के मामले में दादरी ब्लॉक का गोठड़ा गांव अतिहोदित (ओवर एक्सपलॉयटेड ) श्रेणी में है। यानी जरूरत से ज्यादा भू-जल की निकासी की जा रही है।  

55 वर्षीय सुरेंद्र बताते हैं कि उनके पास कुल 10 एकड़ खेत है। जिसमें वह रबी सीजन में गेहूं- सरसो व खरीफ सीजन में अगर बरसात हुई तो बाजरा और ग्वार ही पैदा कर पाते हैं। कई बरस ऐसे रहे जब बारिश नहीं हुई तो खेतों को खाली छोड़ा गया है। वह बताते हैं कि उनके गांव में कभी चने की अच्छी पैदावार थी, लेकिन वह लगभग खत्म हो गई।

70 वर्षीय शेर सिंह बताते हैं कि उनके खेत में बोरवेल से पानी इतना खारा और प्रदूषित निलकता है कि चने और गेहूं की फसलो में फंगस लग जाता है। वह खेती से नाउम्मीद हो चुके हैं। 

 वहीं, गोठड़ा के संदीप कुमार बताते हैं कि बरसात अनिश्चित है और जमीन का पानी भी हमारा साथ छोड़ रहा है। पानी इतना खारा है कि इसे पीना तो दूर, फसलें भी नहीं पैदा होतीं। यूरिया, डीएपी और 100 रुपए प्रति घंटा सिंचाई का पानी लेकर ही हमारी खेती कुछ टिकी है। 

2016 में चरखी-दादरी जिले की नींव पड़ी। इस जिले 99 फीसदी भू-भाग पर खेती होती है और सिंचाई का मुख्य स्रोत भू-जल व बारिश पर निर्भरता है। चरखी दादरी की जिला पर्यावरण योजना रिपोर्ट के मुताबिक जिले के कुल 136,575 हेक्टेयर भू-भाग में 122,358 हेक्टेयर पर खेती होती है। 

खारे पानी वाले गोठड़ा गांव में ज्यादातर जगह सरसों कट गई थी और कुछ खेतों में गेहूं की कटाई जारी थी। हरियाणा जल संसाधन (संरक्षण, विनियमन, प्रबंधन) प्राधिकरण के मुताबिक गोठड़ा गांव में भू-जल का गिरना लगातार जारी है।  2010 में इस गांव में पानी की उपलब्धता  82 फुट (25 मीटर) पर भू-जल उपलब्ध था लेकिन 2020 तक इसमें 23 फुट की गिरावट आई। अब इस गांव में 118 फुट पर पानी उपलब्ध है। 

सुरेंद्र डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि 1985 की बात है जब हमारे इलाके में 40 फुट पर भू-जल मिल जाता था। तब उसका जल मीठा भी था। कोई 20 से 25 साल पहले (1998-2000) के बीच हमारे गांव में भू-जल खारा होना शुरु हुआ। सुरेंद्र थोड़ा रुककर याद करते हैं और बताते हैं कि कोई 20 से 25 साल पहले (1998-2000) उनके गांव में पानी खारा होना शुरु हुआ था। 

केंद्रीय भू-जल बोर्ड की 2020-21 वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में भिवाड़ी (अब चरखी दादरी), फरीदाबाद, हिसार, झज्जर, महेंद्रगढ़, पलवल, रोहतक, सिरसा जिलों में 50 फीसदी से भी कम भू-जल का इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी 50 फीसदी से ज्यादा इलाकों में पोटेबल वाटर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता।   

सुरेंद्र इस बात की तस्दीक करते हैं। वह कहते हैं कि गांव में अब भू-जल के लिए 250 फुट तक बोरिंग शुरु कर दी गई है। वहीं, खेतों में बोरवेल लगा लिए गए हैं लेकिन पानी पीने लायक नहीं। वह खुद गांव के घर से मीठा पानी भरकर  मजदूरों के लिए खेतों तक पहुंचाते हैं। पूरे गांव को मीठा पानी दादरी ब्लॉक से आपूर्ति किया जाता है। 

भले ही भू-जल में गिरावट जारी है। सुरेद्र इसे स्वीकार भी करते हैं लेकिन वह बताते हैं कि 1977 की बरसाती बाढ़, 1995 की बरसाती बाढ़, 2011 और 2021 में ठीक-ठाक बरसात ने इलाके के भू-जल को ठीक रखा नहीं तो यह इलाका अब तक रेगिस्तान बन जाता।

सेंसस 2011 के मुताबिक गोठड़ा गांव में करीब 556 परिवार हैं और इस गांव की आबादी 2631 है। सुरेंद्र बताते हैं कि 2010 में इस गांव में करीब 100 बोरवेल थे लेकिन 2022 में इनकी संख्या 200 से  300 तक हो गई है। वह बताते हैं कि उन्होंने खुद अपना समर्सिबल बोरवेल 2003 में लगवाया था तबसे 84 फुट पर उन्हें पानी मिल रहा है लेकिन वह इतना खारा है कि फसलों के लिए लाभकारी नहीं है। 

गोठड़ा गांव के ही जगवंत और 70 से 90 वर्षीय तक के बुजुर्ग दोपहर के वक्त एक कमरे में हुक्के के साथ अपना समय बिता रहे थे। डाउन टू अर्थ के सवालों पर जगवंत बताते हैं कि गांव में जैसे-जैसे परिवार बढ़े वैसे वैसे बोरवेल बढ़ गए। बीते 15 वर्षों में मीठा पानी खत्म हो गया है। सिर्फ खारा पानी है। गांव के एक या दो बोरवेल ही हैं ऐसे जहां थोड़ा कम खारा पानी है। ऐसे में बाहर की आपूर्ति और उन दो बोरवेल से काम चलाते हैं।  वह बताते है कि हमें भी आगे चलकर अपनी पीढ़ियों के लिए राजस्थान की तरह पीने के पानी का भंडारण करना होगा। अभी तक काम चलता रहा इसलिए पीने के पानी को बचाने  का कोई काम नहीं हुआ। हमे भी कुंड बनाने होंगे।  

खाद-पानी और नमक   

गोठड़ा गांव के ही निवासी संदीप कुमार बताते हैं कि 1995 में जहां हमारे गांव में एक एकड़ में आधा बैग डीएपी और आधा बैग यूरिया डाला जाता था। वहीं, अब फसलों के लिए एक एकड़ में अब 3 बैग यूरिया और 3 बैग डीएपी तक पहुंच गई है। एक बैग में 45 किलो डीएपी या यूरिया होता है। वह बताते हैं कि यदि इससे कम डीएपी और यूरिया का इस्तेमाल करेंगे तो फसल की पैदावार आधी हो जाती है। फिलहाल गोठड़ा गांव के खेतों में एक एकड़ में 15 से 16 मन सरसो और एक एकड़ में 30 से 35 मन गेंहू पैदावार हो रही है।

गोठड़ा  के संदीप कुमार बताते हैं कि कभी इस गांव का पानी मीठा था और उनके पुरखों ने मीठा पानी पिया है। लेकिन वह कहते हैं कि यह अब कभी मीठा नहीं हो सकता। पानी इतना खारा है कि दीवारो पर नमक छूटता है। वह बताते हैं कि 2004 में बोरवेल कराया था। उनके पास 250 फुट का बोरवेल है और फव्वारे के जरिए वह अपने दो किल्ले (10 बीघे) खेत की सिंचाई करते हैं। वह बताते हैं कि गर्मी के वक्त जब भू-जल संकट शुरु होता है, फसलों को पानी की जरुरत होती है। तभी बिजली की जरुरत पड़ती है। गर्मी के दिनों में एक हफ्ते दिन की बिजली आती है और एक हफ्ते रात की बिजली आती है। ऐसे में सिंचाई ठीक से नहीं हो पाती है। खेती नाम मात्र की बची है। 

 गावों की मिसाल : 2003 में छह लाख रुपए की बोरिंग 

आस-पास के दो-चार गांव में 1020 फुट की बोरिंग के कारण मशहूर हुए ओमप्रकाश से डाउन टू अर्थ ने मुलाकात की। 

गोठड़ा गांव से 6 किलोमीटर दूर झज्जर जिले में खानपुर खुर्द में रहने वाले ओमप्रकाश बताते हैं कि उनके पास 19 किल्ला खेती की जमीन था, पानी के बिना खेती हो नहीं पा रही थी। हमने बोरिंग की ठानी, 20 साल पहले छह लाख रुपए की बोरिंग कराने का अंदाजा हमारा भी नहीं था। जब बोरिंग शुरु हुई तो 500 फुट तक पत्थर ही निकला, फिर और 520 फुट नीचे गए। कुल 1020 फुट की बोरिंग होने के बाद एकदम खारा पानी हमें मिला। उस खारे पानी से दो साल सिंचाई की लेकिन उससे कुछ भी पैदावार खेतों में नहीं हुई। मैं बर्बाद हो गया था। हमारे आस-पास के गांव में इतनी बोरिंग किसी ने नहीं कराई थी, फिर मैं एक मिसाल की तरह इस्तेमाल होने लगा।  

खानपुर गांव से नजदीक ही दो थर्मल पावर प्लांट भी हैं। ओमप्रकाश की बोरिंग वाली जमीन का अधिग्रहण इन थर्मल पावर प्लांट के जरिए हो गया। जिसके कारण उन्हें अपने कुछ पैसे मिल गए लेकिन वह उस झटके से आजतक उबर नहीं पाए हैं। 

खानपुर गांव में नहर के किनारे-किनारे अभी सिर्फ 30 बोरवेल हैं। हालांकि नहर में पानी नहीं है। इसलिए  गांव वाले इन्हीं बोरवेल से सिंचाई कर रहे हैं। मीठे पानी के लालच में 150 से 200 फुट पर खाने पानी की निकासी जारी है जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3.75 मीटर यानी 12 फुट पर भू-जल 2010 में उपलब्ध था जो कि अभी 50 फुट तक पहुंच चुका है। 

मीठे पानी की सर्विस 

झज्जर जिले में  खारे पानी ने मीठे पानी की सर्विस का एक नया रास्ता खोल दिया है। दादरी से लेकर झज्जर के रास्तों तक करीब हर एक किलोमीटर पर मीठे पानी की सप्लाई के लिए सर्विस है। भू-जल की निकासी करके यह ताजा पानी पहुंचाते हैं। हरित क्रांति की समृद्धि के ठिकाने अब पीने के पानी का संकट झेलने लगे हैं। खाद्य सुरक्षा के लिए सिंचाई के लिए बड़ी मात्रा में जल का प्रबंध यहां की नई चुनौती बन चुका है। 

Subscribe to our daily hindi newsletter