समय से किराया न देने पर कृषि काश्तकार को खेत से बेदखल कर सकता है जमींदार : सुप्रीम कोर्ट

यह मामला तमिलनाडु का है। जहां रेवन्यू कोर्ट ने संबंधित कानून के सीमित अधिकार के तहत जमीदार के पक्ष में फैसला सुनाया जिसे मद्रास हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया।  

By Vivek Mishra

On: Wednesday 17 May 2023
 

किराए की खेती के लिए लीज या रेंट पर अर्जित की गई खेती की जमीन का किराया रेवन्यू कोर्ट के आदेश के बावजूद भरने में देरी करने पर खेत का मालिक कृषि काश्तकार को संबंधित खेत से निष्कासित या बेदखल कर सकता है। यह मामला तमिलनाडु से जुड़ा था। 

सुप्रीम कोर्ट ने रेवन्यू कोर्ट के किराया भरने संबंधी आदेश का अनुपालन न किए जाने पर जमींदार के द्वारा कृषि काश्तकार के निष्कासन को एक वैध कदम माना है। पीठ ने कहा कि तमिलनाडु कृषि काश्तकार संरक्षण कानून, 1955 की धारा 3 के तहत यह उचित है।    

जस्टिस कृष्ण मुरारी और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह इस मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिन्होंने मद्रास हाईकोर्ट और राजस्व कोर्ट के निष्कासन फैसले को बरकरार रखा है। रेवन्यू कोर्ट के स्पेशल डिप्टी कलेक्टर के समक्ष खेत मालिक एल आर एकनाथ ने याचिका दाखिल की थी उनके कृषि काश्तकार किराया नहीं भर रहे हैं ऐसे में उन्हें खेतों से निकाला जाए। 

रेवन्यू कोर्ट ने एल आर एकनाथ की याचिका पर 4 फरवरी, 2019 को कृषि काश्तकारों (किराएदारों) को यह आदेश दिया था कि वह अपने जमीन मालिक को दो महीनों के भीतर किराया भरें अन्यथा निष्कासन की कार्रवाई शुरू की जाएगी। इस याचिका के आधार पर किराया भरने में देरी करने पर कृषि काश्तकारों को निष्कासन का आदेश दिया गया । 

कृषि काश्तकारों की ओर से दो महीने के बजाए करीब तीन साल बाद 18 फरवरी, 2021 को रेवन्यू कोर्ट में किराया भरा गया था। सुप्रीम कोर्ट में कृषि काश्तकारों की ओर से कहा गया कि उन्हें 4 फरवरी, 2019 को दिए गए रेवन्यू कोर्ट का आदेश 10 अक्तूबर, 2020 को प्राप्त हुआ। इसके बाद एक महीने के भीतर ही 6 नवंबर, 2020 को जमीन मालिक एल आर एकनाथ को नोटिस भी भेजा गया, जिसमें मकानमालिक को आकर लीज रेंट ले जाने की बात भी कही गई थी। 

सुप्रीम कोर्ट में कृषि काश्तकारों की ओर से कहा गया था कि तमिलनाडु कृषि काश्तकार संरक्षण कानून, 1955 की धारा 3 में यह कहीं नहीं मौजूद है कि बकाया राशि जमा कराने के बाद कृषि काश्तकारों को खेतों से बेदखल कर दिया जाए। न ही किराए में देरी कोई वैध कारण है जिससे कृषि काश्तकारों को बेदखल किया जाए। 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को तर्कपूर्ण न मानते हुए रेवन्यू कोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट के निष्कासन के फैसले को उचित माना है। 

कृषि काश्तकारों ने रेवन्यू कोर्ट के निष्कासन के फैसले को चुनौती देते हुए मद्रास हाईकोर्ट में अपील की गई थी। मद्रास हाईकोर्ट ने भी रेवन्यू कोर्ट के निष्कासन के फैसले को सही ठहराया था। बाद में मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले को कृषि काश्तकारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी रेवन्यू कोर्ट के निष्कासन फैसले को उचित ठहराया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कृषि काश्तकारों ने रेवन्यू कोर्ट के आदेश का समयबद्ध अनुपालन नहीं किया। और उस बीच सिर्फ लीगल नोटिस भेजा जो कि दर्शाता है कि उन्होंने रेवन्यू कोर्ट के आदेश के अनुरूप अपनी कानूनी जिम्मेदारी को नहीं निभाया। 

अदालत ने टिप्पणी की कि 1955 का अधिनियम जमींदार की तुलना में खेती करने वाले काश्तकार को एक विशेषाधिकार प्रदान करता है, जिसके द्वारा खेती करने वाले काश्तकार को जमींदार द्वारा बेदखली से बचाया जाता है। इसके अलावा, जमींदार के कहने पर खेती करने वाले काश्तकार को बेदखल करने का दायरा अधिनियम द्वारा सीमित है।

सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय और राजस्व न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि खेती करने वाले काश्तकारों को कुछ अतिरिक्त लाभ या अनुग्रह प्रदान करके निराश नहीं होना चाहिए। पीठ ने पाया कि किराए को कभी चुनौती नहीं दी गई। और न ही इन राजस्व कोर्ट के आदेश के तीन साल के भीतर कोई समस्या ऐसी आई जब कृषि काश्तकार खुद को मजबूर कहते। 

करीब 32 बैग धान या उसके बराबर पैसा कृषि काश्तकारों को अपने जमींदार को चुकाना था। 

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