नहीं रहे हरित क्रांति के जनक मशहूर कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन
प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन का 28 सितंबर, 2023 को सुबह 11.15 बजे उनके आवास पर निधन हो गया।
On: Thursday 28 September 2023
दुनियाभर में ख्यातिप्राप्त कृषि वैज्ञानिक व भारत में हरितक्रांति के मुख्य कर्ताधर्ता मनकोंबु संबासिवन स्वामीनाथन का 28 सितंबर, 2023 को उनके चेन्नई आवास पर सुबह 11.15 बजे निधन हो गया। वह 98 वर्ष के थे। उन्हें एमएस स्वामीनाथन के नाम से लोकप्रियता हासिल थी।
एमएस स्वामीनाथन एक पादप आनुवंशिकीविद थे। वह चेन्नई स्थित एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष और मुख्य मार्गदर्शक थे। “हरित” से “सदैवहरित क्रांति” का नारा देते हुए उन्होंने पूरा जीवन वैश्विक खाद्य व्यवस्था को मजबूत और सतत बनाने के अलावा सभी के लिए भोजन व पोषण सुरक्षा के लिए टिकाऊ खेती (सस्टेनबल एग्रीकलचर) की वकालत की।
वह भारत सरकार के राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष रहे। इसके अलावा उन्होंने विज्ञान और विश्व मामलों पर पगवॉश सम्मेलन के अध्यक्ष, खाद्य सुरक्षा पर विश्व समिति (सीएफएस) के विशेषज्ञों के उच्च-स्तरीय पैनल (एचएलपीई) के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
वे भारतीय संसद (राज्यसभा) के सदस्य भी रहे। साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के पूर्व महानिदेशक सहित अन्य कई महत्वपूर्ण पद उन्होंने संभाले। भारत की हरित क्रांति में अपने नेतृत्व के लिए उन्हें पहले विश्व खाद्य पुरस्कार और पद्म विभूषण, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार सहित कई अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
वह अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़कर गए हैं। उनकी तीन बेटियां हैं - सौम्या स्वामीनाथन, मधुरा स्वामीनाथन और नित्या राव। उनकी पत्नी मीना स्वामीनाथन की मृत्यु पहले ही हो गई थी।
एमएस स्वामीनाथन 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में सर्जन चिकित्सक एम.के. संबविसन और पावर्ती थंगम्मल के घर जन्मे। उनकी स्कूली शिक्षा वहीं हुई। शुरू से ही कृषि विज्ञान में उनकी गहरी रुचि थी। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके पिता की भागीदारी और महात्मा गांधी के प्रभाव ने उन्हें इस विषय में उच्च अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने दो स्नातक डिग्रियां हासिल कीं। इनमें से एक एग्रीकल्चर कॉलेज, कोयंबटूर (अब तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय) से थी।
डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने 'हरित क्रांति' की सफलता के लिए भारत के कई पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्राध्यक्षों के साथ मिलकर काम किया। हरित क्रांति एक ऐसा कार्यक्रम था जिसने खाद्य उत्पादन में भारी उछाल और "भूख मुक्त भारत और विश्व" का मार्ग प्रशस्त किया। . टिकाऊ या सतत कृषि की उनकी वकालत उन्हें टिकाऊ खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में एक स्वीकृत वैश्विक लीडर बनाती है।
उन्होंने उच्च उपज देने वाली गेहूं की किस्मों को विकसित करने पर एक प्रसिद्ध अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक और 1970 के नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन बोरलॉग के साथ भी मिलकर काम किया।
"हमारी प्रगति की कसौटी यह नहीं है कि हम उन लोगों की प्रचुरता में और इजाफा करते हैं जिनके पास बहुत कुछ है, बल्कि यह है कि क्या हम उन लोगों के लिए पर्याप्त उपलब्ध कराते हैं जिनके पास बहुत कम है"
एम.एस. स्वामीनाथन