चावल की उपज पर मंडरा रहा खतरा, अगस्त की बारिश करेगी फैसला
फिलहाल मानसून ब्रेक पर है। इससे हिमालय की तलहटी और पूर्वी भारत में वर्षा होगी लेकिन देश के अन्य हिस्सों में वर्षा गतिविधि मंद पड़ सकती है।
On: Friday 11 August 2023
जून और जुलाई में देश के कई हिस्सों में हुई कम वर्षा के चलते चावल उत्पादन पर खतरा मंडरा रहा है। हालांकि, उड़ीसा के कटक स्थित राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में कृषि मौसम वैज्ञानिक देबाशीष जेना ने डीटीई को बताया कि"उत्पादन तभी प्रभावित होगा जब मानसून कोर जोन में मानसून खराब होगा, क्योंकि वहां फसल ज्यादातर वर्षा पर आधारित होती है।"
भारत में कोर मानसून क्षेत्र पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है। भारत मौसम विज्ञान विभाग इसे एक कृषि क्षेत्र के रूप में सीमांकित करता है जहां फसल ज्यादातर वर्षा पर निर्भर होती है।
वर्तमान में 717 में से कुल 239 जिले ऐसे हैं जहां वर्षा कम (डिफिशिएंट) या बहुत कम (लार्ज डिफिशिएंट) हुई है। इनमें से अधिकांश पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और गंगीय पश्चिम बंगाल के पूर्वी मौसम उपविभागों में केंद्रित हैं। अधिक चिंता की बात यह है कि यह विस्तार भारत के चावल उत्पादन बेल्ट के साथ ओवरलैप होता है।
अगस्त की शुरुआत में ही मानसून ब्रेक पर है। मानसून ट्रफ जब उत्तर की ओर खिसक जाता है तब मानसून ब्रेक होता है। इस मानसून ब्रेक के कारण हिमालय की तलहटी और पूर्वी भारत में वर्षा होती है और देश के अन्य भागों में वर्षा गतिविधि कम हो जाती है।
मानसून ब्रेक का इस खरीफ सीजन में धान के उत्पादन के लिए आखिर क्या मतलब है?
क्रॉप वेदर वॉच ग्रुप के डेटा से पता चलता है कि 2022 की तुलना में बुआई क्षेत्र में वास्तव में लगभग दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन क्या अधिक बुआई क्षेत्र का मतलब अतिरिक्त समग्र उपज है?
डीटीई ने पहले उत्तर प्रदेश के किसानों से बात की थी। श्रावस्ती जिले के किसानों को भारी नुकसान हुआ था क्योंकि जून 2023 में कम बारिश के कारण उनकी नर्सरी नष्ट हो गई थी।
विकट परिस्थितियों से बचने के लिए, भारत मौसम विज्ञान विभाग ने किसानों को छोटी अवधि के धान के संस्करण अपनाने के लिए सलाह जारी की थी, जो सामान्य 180 दिनों के बजाय 125 दिनों में पक जाते हैं।
जेना के अनुसार, ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे आईएमडी फसल चक्र के विभिन्न चरणों को ट्रैक कर सके।
”उन्होंने कहा “प्रजनन चरण फसल चक्र का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। प्रजनन चरण के दौरान चावल को खेतों में 10 सेंटीमीटर पानी की गहराई की आवश्यकता होती है और पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अगस्त की बारिश (आईएमडी के पूर्वानुमान के अनुसार) से इस संबंध में मदद मिलनी चाहिए।