पंजाब में इस साल धान बुआई के लिए क्यों फेल रही पानी बचाने वाली डीएसआर विधि?

लुधियाना के किसान सुखजीत सिंह बताते हैं कि औसत तापमान से अधिक अनुभव होने वाले तापमान ने बीजों की परिपक्वता (जर्मीनेशन) को नुकसान पहुंचाया है। 

By Shagun

On: Tuesday 05 July 2022
 
Photo: Flickr

पंजाब में  30 जून, 2022 तक डीसीआर तकनीकी के तहत 12 लाख हेक्टेयर के तय लक्ष्य से काफी कम महज 77,000 हेक्टेयर ही धान की सीधी बुआई हो पाई है।   

इस साल धान की सीधी बुआई बीते वर्ष यानी 2021 में 6 लाख हेक्टेयर और वर्ष 2020 में 5 लाख हेक्टेयर से काफी कम है। कम बुआई को लेकर किसान उच्च तापमान और कम वर्षा को प्रमुख जिम्मेदार ठहराते हैं। किसानों का कहना है कि इसके अलावा बंद नहरें, ट्यूब वेल्स के लिए अनियमित बिजली, चूहे की समस्या ने भी धान की सीधी बुआई पर असर डाला है।   

डीएसआर को ब्रॉडकास्टिंग सीड टेक्निक भी पुकारते हैं। यह धान बुआई में पानी को बचाने का एक तरीका है। इस तकनीक में बीज को सीधा खेतों में रोप दिया जाता है।  इससे न सिर्फ भू-जल बचता है बल्कि यह धान रोपाई के पुराने तरीके से भी बिल्कुल अलग है, जिसमें पहले खेतों में लबालब पानी भरके फिर धान रोपाई की जाती थी।  

डीएसआर प्रक्रिया से धान की बुआई 20 मई से 10 जून के बीच होती है। इससे पहले खेतों की लेजर लेवलिंग और रौउनी और सिंचाई की जाती है। किसान डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि इस बार असल चुनौती पानी के उपलब्धता की है क्योंकि कई भू-भाग में मई माह के दौरान वर्षा नहीं हुई है।  

लुधियाना के किसान सुखजीत सिंह बताते हैं कि औसत तापमान से अधिक अनुभव होने वाले तापमान ने बीजों की परिपक्वता (जर्मीनेशन) को नुकसान पहुंचाया है। सुखदेव कहते हैं सामान्य तौर पर मई के दौरान बारिश हो जाती थी लेकिन इस बार नहीं हुई। 

वह बताते हैं कि किसी-किसी दिन तो तापमान 47-48 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंचा। जबकि हमारे लिए इस अवधि में आदर्श तापमान 42-43 डिग्री सेल्सियस होता है। 

इस साल राज्य कृषि विभाग ने किसानों को डीएसआर अपनाने के लिए दो बार तारीखें जारी करीं। दूसरी बार हाल ही में 4 जुलाई,  2022 को जारी किया गया है। सरकार ने धान की बुआई के लिए डीसीआर अपनाने वाले किसानों को प्रति एकड़ 1500 रुपए (3750 रुपए प्रति हेक्टेयर) प्रोत्साहन राशि देने का भी ऐलान किया है। 

लेकिन यह बदलाव इतना आसानी से नहीं होने वाला है। 

कुछ किसानों का कहना है कि वह डीएसआर तकनीकी को अपनाकर जोखिम मोल नहीं लेना चाहते क्योंकि उनकी गेहूं की फसल पहले ही लू के कारण बर्बाद हो चुकी है। 

वहीं, किसान अनियमित बिजली से भी परेशान हैं, जिसकी वजह से उन्हें सिंचाई के लिए ट्यूबवेल से रोजाना पानी निकालने में भी परेशानी आ रही है। 

फतेहगढ़ सहिब जिले के रहने वाले पलविंदर सिंह ने 20 मई को डीएसआर तकनीकी से 1.2 हेक्टेयर खेत में धान की रोपाई की है। इसके लिए उन्हें रोजाना तीन घंटे या उससे अधिक बिजली इस्तेमाल के लिए मिल रही थी। एक या दो दिनों की रिक्तता में वे बुआई कर पाए। उन्होंने कहा कि एक एकड़ (0.4 हेक्टेयर) भूमि की सिंचाई तीन घंटे में सभव नहीं है।  

मध्य जून यह वो अवधि है जब पंजाब में पारंपरिक विधि से खेतों में पानी भरकर धान की रोपाई की जाती है। इस दौरान बिना किसी बाधा के आठ घंटे तक बिजली सप्लाई होती है। किसानों ने कहा कि यह नियम दरअसल डीएसआर को अपनाने के लिए सबसे बड़ी बाधा के रूप में है।

गुरुदासपुर जिले के सरचूर गांव में प्रगतिशील किसान गुरुबिंदर बाजवा कहते हैं कि डीएसआर दरअसल तैयारियों पर केंद्रित तकनीक है। खेतों में औसत नमी वाली मिट्टी की स्थिति  जब होती है तो इसे टार वाटर कहते हैं इसी दौरान तत्काल धान के बीजों की रोपाई होती है। इस बार किसान यह करने में विफल हुए हैं।

वहीं मालवा क्षेत्र में सरहिंद फीडर कैनाल के बंद होने ने भी किसानों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी की है। 

मालवा क्षेत्र में बरनाला जिले के किसान हरविंदर सिंह ने कहा कि उन्हें डीएसआर तकनीकी से धान की बुआई के लिए 14 पड़ोसियों से पानी का इंतजाम करना पड़ा। वह कहते हैं कि मैं समझता हूं कि सरकार यह सोचती है कि यदि वह जल्दी आपूर्ति शुरू कर देगी तो लोग अपने खेतों को लबालब समय से पहले ही भर देंगे। लेकिन यह रणनीति के साथ होना चाहिए। खासतौर से उन किसानों के लिए जो डीएसआर विधि से धान  की रोपाई करते हैं और भूजल बचाते हैं।  

राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने सहमति व्यक्त की कि इस बार डीएसआर सफल नहीं रहा है और बिजली की आपूर्ति एक मुद्दा रहा है और नहर का बंद होना मुख्य अड़चनें थीं। पंजाब के कृषि निदेशक गुरविंदर सिंह ने कहा, "हम किसानों के सुझाव और राय ले रहे हैं कि उन्हें किन मुद्दों का सामना करना पड़ा और हम अगले साल उन पर काम करेंगे।"

जिन किसानों के खेत में डीएसआर फेल हो गया है, वे अब पारंपरिक तरीके से उसी क्षेत्र में बुवाई करेंगे। सरकार भी खरपतवार और चूहों के मुद्दे से निपटने में सबल नहीं है, जो डीएसआर पद्धति में एक समस्या रही है।


डीएसआर में एक सफल फसल की कटाई में खरपतवार प्रबंधन एक बड़ी भूमिका निभाता है। इसका कारण यह है कि इस तकनीक को बुवाई के बाद तीन सप्ताह तक बाढ़ सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, और पारंपरिक विधि के विपरीत, खरपतवार आसानी से उगते हैं।

कुछ किसानों ने कहा कि जो खरपतवारनाशी बताए जाते हैं वह काम नहीं करते हैं। लुधियाना जिले के एक किसान सतजीत सिंह ने कहा कि खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं किया गया था और उन्हें खरपतवार निकालने के लिए शारीरिक श्रम पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता था।

सिंह ने कहा कि डीएसआर को लागत प्रभावी माना जाता है क्योंकि यह पारंपरिक पद्धति की तुलना में कम श्रमसाध्य है। "लेकिन मेरी लागत इस बार कम नहीं लगी है। खरपतवारनाशी का दो-तीन बार छिड़काव करना पड़ता था और अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता होती थी।” अधिकारियों ने कहा कि वे खरपतवार की समस्या की जांच के लिए आएंगे लेकिन अभी तक कोई नहीं आया है। उन्होंने अपनी 16 हेक्टेयर भूमि में से केवल 2.4 हेक्टेयर पर डीएसआर का प्रयास किया है और बाकी को पारंपरिक तरीके से बोया है। 


पंजाब के एक किसान कार्यकर्ता रमनदीप सिंह मान ने कहा कि 2020 में लॉकडाउन अवधि के दौरान डीएसआर ने कुछ गति प्राप्त की क्योंकि श्रम की उपलब्धता एक मुद्दा था, इसे हर साल सफल होने के लिए सरकार द्वारा अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता होगी।

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