खेती किसानी छोड़ रहा है ग्रामीण भारत, आजीविका के लिए कहां जाएं किसान

ग्रामीण भारत अब कृषि पर निर्भरता कम करता जा रहा है, लेकिन क्या गैर कृषि क्षेत्र में उसके लिए संभावनाएं हैं

By Richard Mahapatra

On: Monday 24 June 2019
 
Photo: Agnimirh Basu
Photo: Agnimirh Basu Photo: Agnimirh Basu

संसद में नया बजट पेश होने वाला है। इस बात की काफी हद तक संभावना है कि इस बार के बजट में उस महत्वपूर्ण पहल की शुरुआत होगी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 5 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था बनाने की महत्वाकांक्षी योजना की दिशा तय करेगा। अभी भारत 2.8 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था है। ऐसे में यह जरूरी है कि लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें न केवल तेज आर्थिक विकास की जरूरत है, बल्कि इसका फायदा हर वर्ग को समान रूप से पहुंचाने की भी जरूरत है।

संकेत बताते हैं कि मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में न केवल समग्र विकास पर ध्यान देंगे, बल्कि बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश करने के अलावा, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के अलावा मंदी का सामना कर रहे कृषि क्षेत्र को भी बढ़ावा देना है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि 50 फीसदी भारतीयों को रोजगार देने वाला कृषि क्षेत्र गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। इसी तरह सरकारी खर्च पर आधारित बुनियादी ढांचागत क्षेत्र भी ज्यादा अच्छा नहीं कर रहा है। ऐसे में 2024 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इन सभी क्षेत्रों पर गंभीरता से काम करना होगा।

लेकिन एक अहम सवाल यह है कि आर्थिक विकास का यह लक्ष्य हासिल करने में कृषि क्षेत्र की क्या भूमिका होगी? 

आर्थिक एवं रोजगार की दृष्टि से देखें तो भारत अब एक कृषि प्रधान देश नहीं रहा। अर्थशास्त्री एवं नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद द्वारा आयोग के लिए तैयार किए गए शोध पत्र में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आए बदलाव के बारे में बताया गया है। जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि 2004-05 से भारत गैर कृषि अर्थव्यवस्था बन चुका है। अधिक से अधिक किसान खेती छोड़ रहे हैं और गैर कृषि कार्यों को कर रहे हैं। ऐसा वे अधिक आमदनी के लिए कर रहे हैं। यह बड़ा बदलाव 1991-92 से शुरू हुए आर्थिक सुधार के बाद से आया है। रमेश चंद का शोध बतात हे कि 1993-94 और 2004-05 के दौरान कृषि विकास दर में 1.87 फीसदी की कमी आई। जबकि इसके मुकाबले गैर कृषि अर्थव्यवस्था में 7.93 फीसदी की वृद्धि हुई। यह संयोग है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि की भागीदारी में तेज गिरावट आई, जो 1993-94 में यह हिस्सेदारी 57 फीसदी थी, लेकिन 2004-05 में घटकर 39 फीसदी रह गई। इस तरह, साल 2004-05 से ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि से गैर कृषि पर आधारित हो गई। यह स्थिति अब तक बनी हुई है।

यह वह जगह है, जहां ग्रामीण भारत की योजनाओं पर ध्यान देने की जरूरत है। दशकों बीत चुके हें और सभी नीतियां बताती हैं कि खेती छोड़ रहे लोगों के लिए देश में केवल गैर कृषि क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया है। वर्तमान मोदी 2.0  के कार्यकाल में भी जो खेती से अपनी आजीविका नहीं कमा पा रहे हैँ, उनके रोजगार व आजीविका के साधन मुहैया कराने के लिए गैर कृषि कार्यों पर ध्यान दिया जा रहा है। उदाहरण के लिए, 2004-05 और 2011-12 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि क्षेत्रों में पैदा हुई नई नौकरियों में निर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 74 फीसदी रही। यह इन कारणों से है, क्योंकि सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में काम की तलाश कर रहे लोगों को आकर्षित करने के लिए बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश किया।

लेकिन यहां एक गड़बड़ है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव के बावजूद, गैर कृषि क्षेत्र लोगों को रोजगार देने में पूरी तरह सफल साबित नहीं हो रहे हैं। खासकर ये क्षेत्र रोजगार उत्पन्न नहीं कर पा रहे हैं, जितने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, आर्थिक उदारीकरण से पहले कृषि क्षेत्र में रोजगार में सालाना 2.16 फीसदी की वृद्धि हो रही थी। लेकिन उदारीकरण के बाद तेज आर्थिक वृद्धि के बावजूद इसमें गिरावट आई। 

ऐसे में यदि 5 लाख करोड़ डॉलर वाली अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल हो भी जाता है, लेकिन जरूरत के बावजूद नौकरियां पैदा नहीं होती है तो इसे रोजगार विहीन विकास ही कहा जाएगा और यह संकट को और बढ़ाएगा। खासकर तब जब लोग खेती छोड़ रहे हैं और उन्हें रोजगार देना है। वर्तमान में ये लोग न केवल बेरोजगार हैं बल्कि बेरोजगारों की संख्या बढ़ा रहे हैं। अभी वे कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जबकि जानते हैं कि इससे फायदेमंद नहीं है, लेकिन नुकसान उठाने वाले जीविका को कितने दिन तक बनाए रखा जा सकता है?

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