कोविड-19: पशुओं के पालन पर देना होगा खास ध्यान

मौजूदा हालातों के मद्देनजर पशु पालन की नई प्रणालियों व तकनीकों पर सोचने की जरूरत है

By Meenakshi Sushma

On: Monday 20 April 2020
 
फोटो: विकास चौधरी

नोवेल कोरोनावायरस (कोविड-19) महामारी ने एक बार फिर से लोगों का ध्यान पशुओं के फार्म की ओर खींचा है। एक ओर जहां जंगली जानवरों का अवैध व्यापार पर बहस हो रही है। वहीं, यह भी सवाल उठ रहे हैं कि इस महामारी के लिए पशु पालन कितना जिम्मेवार है? 

नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पशुओं के लिए तैयार किए गए बाड़े (फार्म) गंदगी का पर्याय बन गए हैं, इनसे बीमारियां पैदा हो रही है। इतना ही नहीं, यहां पशुओं में लगने वाले रोग प्रतिराेधक टीकों का अधिक इस्तेमाल होने से ऐसे वायरस (सुपर बग) पैदा हो रहे हैं, जिन पर दवाओं का असर नहीं होता। दुनिया भर में फैले कोरोनावायरस संक्रमण (कोविड-19) के बाद यह जरूरत महसूस की जा रही है कि मासांहार के लिए इस्तेमाल होने वाले पशुओं को खास ध्यान रखा जाए, ताकि इस तरह के वायरस विकसित न हों।

एक रिपोर्ट के अनुसार 2003 में चीन के किंगयुआन काउंटी के चार फार्मों में हजारों सूअरों की मौत हो गई थी। ये सूअर कोरोना विषाणु से संक्रमित थे और यह कोरोना पास के ही इलाके के चमगादड़ों में पाया जाता है। अध्ययन में हुआ खुलासा चौंकाने वाला था कि फार्म में सूअरों के पालन का जो तरीका था, उससे संक्रमण आसानी से फैल गया। हालांकि उस समय इस बात से इंकार कर दिया गया कि वायरस का संक्रमण मनुष्यों में भी हो सकता है, लेकिन बाद में एक लैब टेस्ट में दावा किया गया कि इंसानों में भी यह संक्रमण फैल सकता था। 

उधर, साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि कोरोनावायरस (सार्स-सीओवी-2) उन जानवरों को संक्रमित करता है जिनमें एंजियोटेंसिन कन्वर्टिंग एन्जाइम 2 (एसीई-2) होता है। यह एन्जाइम फेफड़े,  धमनियों, हृदय, गुर्दे और आंतों की बाहरी सतह से चिपका होता है। कस्तूरी बिलाव (सिवेट), सूअर, पैंगोलिन, बिल्लियां, गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और कबूतर ऐसे पशु-पक्षी हैं जिनमें इस वायरस के संक्रमण की अधिक आशंका रहती है। इनमें से अधिकांश चीन के कृषि फार्म में पाले जाते हैं। 

पशुओं से सार्स-सीओवी-2 के मनुष्यों में संक्रमण का जहां तक प्रश्न है स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने सार्स-सीओवी-2 की जीन संरचना का विश्लेषण किया, जिसे नेचर जर्नल ने प्रकाशित किया है। यह रिपोर्ट दो अवधारणाओं की वकालत करती है। पहली अवधारणा यह कहती है कि कोरोनावायरस का त्वरित विकास मानव संरचना में हुआ है। इसकी शुरुआत बेहद साधारण रोगजन्य विषाणु के रूप में हुई होगी, जो जानवर से मानव शरीर में आया होगा। फिर मानव शरीर में उसके लम्बे समय तक रहने की वजह से इसका क्रमिक विकास हुआ और यह मानव से मानव में फैलता चला गया।

दूसरी अवधारणा जानवरों से मानव संक्रमण की है। जैसा कि सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रॉम (सार्स) के वक्त हुआ था जो कि सिवेट से फैला था। बहरहाल, इस मामले में विषाणु के संवाहक सूअर बने थे। इसी तरह मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रॉम (मर्स) के वाहक ऊंट थे, जिनके शरीर में कोरोनावायरस होता है। 

यदि हम स्क्रिप्स विज्ञानियों के अभिमत को मानें तो कोरोनावायरस का आरंभिक संक्रमण चमगादड़ों से शुरू हुआ और फिर मनुष्यों में संक्रमण की कड़ी दूसरा जानवर बना जहां इसने मौजूदा स्वरूप अख्तियार कर लिया। गैर लाभकारी संस्था ग्रेन ने जीवाणु विशेषज्ञ रॉब वैलेस के विचार का संदर्भ दिया है कि उक्त विचारधारा को सरकारों ने पूरी तरह अनदेखा कर दिया है जबकि बड़ी मीट कंपनियां इसकी जिम्मेदार हैं।

मौजूदा हालातों के मद्देनजर पशु पालन व विकास की नई प्रणालियों व तकनीकों पर सोचने की जरूरत है। क्यों वायरस इतने खतरनाक हो रहे हैं? इसका उत्तर जानने के लिए कृषि खासकर पशु पालन और उत्पादन के औद्योगिक मॉडल को समझने की आश्यकता है।

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