भीषण गर्मी की वजह से पंजाब में गेहूं की फसल को 20 फीसदी नुकसान का अनुमान

गेहूं की फसल खराब होने के कारण छोटे किसान नुकसान नहीं झेल पा रहे हैं और किसानों के आत्महत्या करने की खबरें आने लगी हैं

On: Wednesday 20 April 2022
 
मार्च और अप्रैल माह में पड़ रही भीषण गर्मी की वजह से गेहूं की फसल का उत्पादन कम हुआ है। फोटो: मनदीप पूनिया

मनदीप पूनिया

पंजाब के मोहाली जिले का गांव चंदपुर। सुबह के सवा सात बजे। कृष्णा देवी अपने 8 बीघे के खेत में अपनी 3 बेटियों और 1 बेटे के साथ, हाथ से काटी हुई अपनी गेहूंकी फसल से दाना निकलवा रही हैं।

थ्रैसर, गेहूं की फसल से एक तरफ दाना फेंक रहा था, तो दूसरी तरफ तूड़ा (पशुओं के लिए चारा)। वह गेहूं के दानों को अपनी मुट्ठी में भरकर दिखाते हुए कहती हैं, “अबके दाना हल्का रह गया। पिछली बार के मुकाबले आधी पैदावार निकली है, जबकि लागत ज्यादा लगाई थी। कर्ज चढ़ गया है मेरे ऊपर। आगे से खेती करने की बजाय दिहाड़ी जाया करूंगी।”

उनके पास खड़े थ्रैसर के मालिक 48 वर्षीय बिट्टू सिंह ने भी किसानों की पैदावार प्रभावित होने की बात कही। वह पिछले 12 सालों से किराए पर किसानों के गेहूं के दाने अपने थ्रैसर से निकालते हैं।

इस बार वह करीब 200 किसानों की फसल से दाने निकाल चुके हैं। उन्होंने बताया, “इस बार दाने का झाड़ कम है। पिछले 12 सालों में पहली बार मैंने इतना कम झाड़ देखा है। हर किसान चपेट में है। जिन्होंने थोड़ी अगेती बुआई कर ली थी, उनके थोड़ा कम नुकसान है। पर नुकसान सभी को हुआ है। हर साल मैं अपना किराया 150 रुपए बढ़ाता हूं, लेकिन इस बार नहीं बढ़ाया। जिमीदार (किसान) पहले ही मरा पड़ा है बेचारा।”

कृष्णा देवी के खेत के पड़ोसी बलकार सिंह के खेत में उनके गेहूं की कटाई के लिए हारवेस्टर खड़ा था। हारवेस्टर की ड्राइवर की सीट पर बैठे गुरप्रीत सिंह अब तक करीब साढे़ छह सौ एकड़ फसल की कटाई कर चुके हैं।

उन्होंने बताया, “अब के सीजन हल्का है। मार्च महीने में गर्मी पड़ने के कारण दाना सही से फूल नहीं पाया और समय से पहले पकना शुरू हो गया। जिसकी वजह से इसबार दाना भी कम निकल रहा है और तूड़ा भी।”

पिछली रिपोर्ट में मार्च महीने में तापमान बढ़ने से हरियाणा के किसानों के पैदावार घटने के बारे में आप पढ़ चुके हैं। कमोबेश पंजाब में भी किसानों की यही स्थिति है।

किसानों के अलावा, पंजाब कृषि विभाग द्वारा किए गए फसल कटाई प्रयोग (क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट, सीसीई) के शुरुआती परिणामों के अनुसार, इस साल मार्च में गेहूं की बाली बनने के दौरान बढ़ी गर्मी ने उपज को बुरी तरह प्रभावित किया है।

विभाग प्रमुख फसलों की उपज का सटीक अनुमान जानने के लिए हर साल जिलेवार सीसीई आयोजित करता है। रूपनगर जिले के कृषि अधिकारी मनजीत सिंह ने अपने जिले में आए सीसीई के शुरुआती रुझानों के बारे में जानकारी देते हुए हमें बताया, “रूपनगर जिले में अब तक कुल 46 अनुसूचित सीसीई में से 16 के परिणाम हमारे पास आए हैं। एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर, इस साल गेहूं की पैदावार प्रति हेक्टेयर 3615 किलोग्राम रही है, जोकि  पिछले साल के 4513 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के आंकड़े से 20 प्रतिशत कम है।”

सीसीई के आंकड़ों के अलावा रूपनगर मंडी के सुपरवाइजर सज्जन सिंह ने भी गेहूं की पैदावार कम रहने की जानकारी दी। उन्होंने गेहूं की आवक के आंकड़ों के बारे में जानकारी देते हुए हमें बताया, “सीजन चालू होने के बाद 17 अप्रैल तक हमारे पास 70,342 क्विंटल गेहूं मंडी में आ चुका है, जबकि पिछले साल 17 अप्रैल तक 83,017 क्विंटल गेहूं की आवक हो चुकी थी।”

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्रिंसीपल इकोनोमिस्ट (एग्रीकल्चर मार्केटिंग) डॉ सुखपाल सिंह ने बताया, “आज पंजाबी ट्रिब्यून अखबार में 2 किसानों और एक मजदूर की आत्महत्या की खबर छपी है। ये तीनों आत्महत्याएं गेहूं की कम पैदावार से ही जुड़ी हुई हैं। इस बार छोटे किसान पर इस घाटे का सबसे बुरा असर पड़ने वाला है। हालांकि इंटरनेशनल मार्केट में यूक्रेन संकट के कारण गेहूं की कीमतों में उछाल तो है, पर छोटा किसान इस हालत में नहीं है कि वो सही कीमत मिलने तक गेहूं को रोक ले और गेहूं को थोड़ा महंगा बेचकर कुछ घाटे से उबर पाए. एकाध बड़ा किसान ही गेहूं की उपज को अपने यहां रोक पाएगा। सरकार को भी इस मुद्दे को सीरियस लेना चाहिए।”

इस मुद्दे को लेकर पंजाब की किसान यूनियनों ने जिलेवार धरने भी दिए हैं और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से भी मुलाकात की है। 17 अप्रैल को मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में शामिल रहे भारतीय किसान यूनियन, क्रांतिकारी के प्रधान सुरजीत सिंह फूल ने बताया, “सीएम के साथ बैठक सकारात्मक माहौल में शुरू हुई। उन्होंने हमारी सारी मांगे सुनी हैं और जवाब देने के लिए दस दिन का समय मांगा है।”

किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने बताया, "हमने पूरे पंजाब में किसानों को हुए नुकसान के अनुसार मुआवजे की मांग की है। कम पैदावार की गणना पिछले साल और इस साल की अनुसार की जा सकती है, उपज में जो भी नुकसान हुआ है, औसत निकालकर उसके अनुसार मुआवजा दिया जा सकता है। अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो 25 अप्रैल को हम रेल ट्रैक जाम करेंगे।"

Subscribe to our daily hindi newsletter