सदी के अंत तक 56 फीसदी घट जाएंगे खेत, साथ ही खत्म हो जाएगा किसानों का ज्ञान?

सदी के अंत तक दुनिया भर में मौजूद खेतों की संख्या घटकर आधे से कम रह जाएगी। ऐसे में घटते किसानों और नई तकनीकों का मतलब है कि उनका पारम्परिक ज्ञान भी खत्म होता जाएगा

By Lalit Maurya

On: Friday 19 May 2023
 
बारिश से पहले बादलों को निहारता किसान; फोटो: आईस्टॉक

क्या आप जानते हैं कि इस सदी के अंत तक दुनिया भर में मौजूद खेतों की संख्या घटकर आधे से कम रह जाएगी। ऐसे में क्या इसके साथ ही किसानों द्वारा सदियों से संजोया उनका ज्ञान भी खत्म हो जाएगा, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

आंकड़ों के मुताबिक 2020 में दुनिया भर में खेतों की कुल संख्या 61.6 करोड़ थी। इसके बारे में अनुमान है कि वो सदी के अंत तक करीब 56 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 27.2 करोड़ रह जाएगी। हालांकि रिसर्च के मुताबिक मौजूदा खेतों का आकार बढ़कर दोगुना हो जाएगा। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलोराडो बोल्डर द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं।

देखा जाए तो साल दर साल खेतों की संख्या में आने वाली कमी और उसके प्रभावों को ट्रैक करने वाला यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है। इस अध्ययन के मुताबिक अमेरिका यूरोप में ही नहीं बल्कि आने वाले समय में अफ्रीका और एशिया जैसे क्षेत्रों में भी ग्रामीण किसान खेतों की घटती संख्या को अनुभव करेंगें। ऐसा ही कुछ उप सहारा अफ्रीका में भी देखने को मिलेगा लेकिन वो सदी के काफी बाद में होगा।

किसानों की घटती संख्या पारम्परिक ज्ञान को भी करेगी प्रभावित

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता जिया मेहराबी का कहना है कि खेतों के आकार में एक व्यापक बदलाव को देख रहे हैं, जो भविष्य की झलक को दिखाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे किसी देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती है वैसे-वैसे अधिक लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं। नतीजन ग्रामीण क्षेत्रों में इन खेतों को देखने के लिए बहुत कम लोग रह जाते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि खेतों का घटती संख्या और बढ़ता आकार खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करेगा। लेकिन साथ ही इसकी वजह से किसानों द्वारा सदियों से अपनी खेती-किसानी और मौसम के बारे में जो ज्ञान संजोया है, उसके भी विलुप्त हो जाने का खतरा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक खेतों की कम संख्या का मतलब है कि कम किसान। किसानों के पास उनके दादा-परदादा का सदियों में एकत्र किया ज्ञान होता है। लेकिन जैसे-जैसे किसानों की संख्या घटेगी उसके साथ ही यह सदियों पुराना ज्ञान भी खत्म हो जाएगा। क्योंकिं जैसे-जैसे खेतों का आकार बढ़ेगा और वो सशक्त होंगे साथ ही मशीनों और तकनीकों का उपयोग बढ़ेगा। नतीजन सदियों पुराने पारम्परिक ज्ञान भी लोगों के लिए बेमानी हो जाएगा।

रिसर्च के मुताबिक दशकों से अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में खेतों के आकार में वृद्धि और संख्या में गिरावट हो रही है। अमेरिका कृषि विभाग ने भी इसकी पुष्टि की है जिसके आंकड़ों के मुताबिक 2007 की तुलना में देखें तो अमेरिका में खेतों की कुल संख्या में दो लाख की गिरावट आई है।

वहीं पता चला है एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, ओशिनिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्रों में खेतों की संख्या में गिरावट का दौर 2050 तक शुरू हो जाएगा। वहीं उपसहारा अफ्रीका में सबसे देर में सदी के अंत तक इसकी शुरुआत होगी।

देखा जाए तो भले ही आने वाले वर्षों में दुनिया में कृषि भूमि की कुल मात्रा में बदलाव नहीं होगा, लेकिन खेतों पर कम लोगों का अधिकार रह जाएगा। ऐसे समय में जब जैव विविधता को बचाना सबसे बड़ा मुद्दा है। यह उसे खतरे में डाल सकता है।

इस बारे में मेहराबी का कहना है कि, "बड़े खेतों में आमतौर पर जैव विविधता कम, जबकि मोनोकल्चर ज्यादा होते हैं।" वहीं दूसरी तरफ छोटे खेतों में आमतौर पर फसलों और जीवों की विविधता अधिक होती है। जो खेतों को कीटों के प्रकोप और जलवायु में आते बदलावों से बचाती है।

दुनिया में एक तिहाई से ज्यादा भोजन पैदा कर रहे हैं छोटे और सीमान्त किसान

खेतों की घटती संख्या से न केवल जैवविविधता बल्कि साथ ही खाद्य आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि छोटे और सीमान्त किसान दुनिया में एक तिहाई से ज्यादा भोजन का उत्पादन कर रहे हैं। यह छोटे और सीमान्त किसान दुनिया की केवल 12 फीसदी कृषि भूमि को जोत रहे हैं।

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक दुनिया में करीब 70 फीसदी खेत आकार में एक हेक्टेयर से भी छोटे हैं, जबकि यह कुल कृषि भूमि का केवल सात फीसदी हिस्से पर हैं| वहीं 14 फीसदी खेतों का आकार एक से दो हेक्टेयर के बीच है, जो कुल कृषि भूमि का केवल चार फीसदी ही हैं|

वहीं दो से पांच हेक्टेयर आकार के दस फीसदी खेत हैं, जो कुल कृषि भूमि का छह फीसदी हिस्सा ही हैं| वहीं 50 हेक्टेयर से बड़े खेत दुनिया में एक फीसदी से भी कम हैं, पर वो कुल कृषि भूमि के 70 फीसदी हिस्से पर काबिज हैं| वहीं इनमें से कुछ खेत तो 1,000 हेक्टेयर से भी ज्यादा बड़े हैं, जो कुल कृषि भूमि के करीब 40 फीसदी हिस्से पर हैं|

भारत की बात करें तो देश में 15.7 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर 14.6 करोड़ खेत हैं। देश में कुल 86 फीसदी खेत आकार में 2 हेक्टेयर से भी छोटे हैं जोकि कुल कृषि भूमि के 47 फीसदी से भी कम हिस्से पर हैं| ऐसे में यह जरूरी है कि इन छोटे और सीमान्त किसानों पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाए।

मेहराबी ने बताया कि यदि आप दुनिया के करीब 60 करोड़ खेतों के साथ खाद्य प्रणालियों पर निवेश कर रहे हैं। तो आपका पोर्टफोलियो काफी विविध है। वहीं यदि एक खेत भी कम होता है तो इसका असर अन्य पर भी पड़ेगा। ऐसे में यदि खेतों की संख्या घटती है और आकार बढ़ता है तो उससे पोर्टफोलियो में विविधता घट जाएगी मतलब की साथ ही जोखिम बढ़ जाएगा।

हालांकि रिसर्च के मुताबिक खेतों के आकार के बड़ा होने के अपने फायदे भी हैं, इससे श्रम उत्पादकता और आर्थिक विकास में सुधार हो सकता है। इससे लोगों का न केवल बेहतर आर्थिक विकास होगा बल्कि साथ ही किसानों की जिम्मेवार भी बढ़ जाएगी।

वर्तमान में देखें तो दुनिया में करीब 60 करोड़ खेत हैं जो 800 करोड़ लोगों का पेट भर रहे हैं। लेकिन सदी के अंत तक जहां इसके कहीं आधे किसानों पर पहले से कहीं ज्यादा लोगों की भूख को शांत करने की जिम्मेवारी आ जाएगी। ऐसे में हमें यह सोचने की जरूरत है कि कैसे हम इन किसानों को इसके लिए तैयार करेंगें। साथ ही इन किसानों की शिक्षा और मदद के लिए क्या कुछ कदम उठाने पड़ेंगे।

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