खाद्य प्रणालियां और कॉप-28: क्या पक्षकारों के बीच स्थाई दृष्टिकोण पर बन पाएगी आम सहमति?

कॉप-28 ने खाद्य प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक विशिष्ट दिन निर्धारित करके एक मिसाल कायम की है

By Shagun, Lalit Maurya

On: Wednesday 29 November 2023
 
अपने हरे-भरे खेतों के आगे खड़ा वृद्ध किसान; फोटो: आईस्टॉक

धरती पर मंडराते सबसे बड़े खतरों में से एक जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए वार्ताओं का दौर कल से शुरू हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के इस अंतराष्ट्रीय सम्मेलन कॉप-28 का हिस्सा बनने के लिए दुनिया भर के नेता संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में एकजुट हो रहे हैं।

30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक चलने वाले इस सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ उससे जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। आखिरकार इस बार कृषि और खाद्य प्रणालियों को भी इसके एजेंडे में जगह दी गई है।

गौरतलब है कि यह पहला कॉप है, जिसमें पर्यावरण अनुकूल खाद्य प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। साथ ही पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने में खाद्य प्रणालियों की महत्वपूर्ण भूमिका है, इसको भी स्वीकार किया गया है।

यही वजह है कि इस बार कॉप-28 के दौरान 10 दिसंबर 2023 का दिन कृषि और खाद्य प्रणालियों को समर्पित किया गया है। इस दिन कृषि, आहार, और जल जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। यूएई ने भी विश्व नेताओं से सशक्त खाद्य प्रणालियों, पर्यावरण अनुकूल कृषि और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई पर उनके कॉप-28 घोषणापत्र का समर्थन करने का आह्वान किया है।

बता दें कि इस घोषणापत्र में खाद्य प्रणालियों और जलवायु परिवर्तन के बीच के संबंधों को स्वीकार किया गया है। साथ ही इसमें देशों से आग्रह किया गया है कि वे अपनी राष्ट्रीय खाद्य प्रणालियों और कृषि रणनीतियों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में जताई अपनी प्रतिबद्धताओं के अनुरूप ढालने का प्रयास करें। बता दें कि देशों ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपने-अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) पर सहमति जताई है।

हालांकि भले ही खाद्य प्रणालियां वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के होते उत्सर्जन में 34 फीसदी का योगदान देने के साथ-साथ दुनिया की करीब आधी आबादी की जीविका का साधन हैं। इसके बावजूद पिछली जलवायु वार्ताओं में इन्हें नजरअंदाज कर दिया गया था। खाद्य प्रणाली और कृषि विशेषज्ञ भी इस बात पर जोर देते हैं कि, कॉप-28 में सरकारों को इस महत्वपूर्ण अंतर को संबोधित करना चाहिए, जिसने खाद्य प्रणालियों को हाशिए पर धकेल दिया है।

उनके मुताबिक कॉप-28 के दौरान सरकारों को वैश्विक स्टॉकटेक के आधार पर राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं में सुधार के लिए प्रमुख राजनैतिक संदेशों, अवसरों और प्रभावी प्रथाओं को अपनाने पर निर्णय लेना होगा।

सतत खाद्य प्रणालियों पर बनाए विशेषज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय पैनल (आईपीईएस) की प्रोजेक्ट मैनेजर निकोल पिटा ने कॉप-28 में खाद्य प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने को लेकर आशा जताई है। उनके मुताबिक इसकी बेहद जरूरत थी, क्योंकि इसके बिना राष्ट्रीय खाद्य और जलवायु कार्रवाई उतनी सशक्त नहीं हैं।

उनके अनुसार मौजूदा योजनाओं में संपूर्ण खाद्य प्रणाली को कवर करने वाली व्यापक रणनीतियों का अभाव है। इसमें आहार के साथ-साथ भोजन के नुकसान और बर्बादी जैसे पहलुओं की अनदेखी की गई है। सरकारों के स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों के बीच भी समन्वय की कमी है और इन योजनाओं में मापने योग्य प्रतिबद्धताओं का अभाव है।

उनका कहना है कि, “हमें अपने आहार, खेती करने और भोजन वितरित करने के तरीकों में पूरी तरह बदलाव की जरूरत है। उनके अनुसार हमें संपूर्ण खाद्य प्रणाली को विविध, जलवायु अनुकूल खाद्य प्रणालियों में बदलने की आवश्यकता है।“

आईपीईएस-फूड के सह-अध्यक्ष लिम ली चिंग के मुताबिक खाद्य प्रणाली में बदलाव का क्या आशय है उस बारे में स्पष्ट परिभाषा का आभाव चिंताजनक है। इतना ही नहीं इस बारे में समयसीमा और विशिष्ट, महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की कमी जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाले औद्योगिक कृषि और अन्य अप्रभावी समाधानों को विरोधाभासी रूप से मजबूत कर सकती है।

खाद्य प्रणालियां और कॉप सम्मेलन

कृषि एक तरफ जहां जलवायु परिवर्तन का शिकार है, वहीं दूसरी तरफ उसमें योगदान भी कर रही है। आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक उत्सर्जन के करीब एक तिहाई से अधिक के लिए कहीं न कहीं यह जिम्मेवार है। हालांकि इसके बावजूद किसी भी कॉप सम्मेलन में खाद्य प्रणालियों को व्यापक रूप से संबोधित नहीं किया गया है और अधिकांश देशों की जलवायु योजनाओं में उनके लिए निर्देशित कार्रवाई योग्य योजनाएं शामिल नहीं हैं।

यूएनएफसीसीसी के तहत कृषि और खाद्य सुरक्षा पर एकमात्र केंद्रित कार्यक्रम, कोरोनिविया ज्वाइंट वर्क ऑन एग्रीकल्चर (केजेडब्ल्यूए) है, जिसे 2017 में कॉप-23 के दौरान स्थापित किया गया था। हालांकि कॉप में खाद्य चर्चाओं के लिए औपचारिक तंत्र के रूप में इसकी भूमिका के बावजूद, ग्लासगो में हुए कॉप-26 सम्मेलन के दौरान कुछ कार्यक्रमों को छोड़कर यह मुद्दों से करीब-करीब नदारद ही था।

वहीं मिस्र के शर्म अल-शेख में कॉप-27 के दौरान कोरोनिविया डायलॉग के अंतिम दस्तावेज में से 'कृषि पारिस्थितिकी' और 'खाद्य प्रणाली' शब्दों को हटा दिया गया था। वहीं भोजन की हानि, बर्बादी और अस्थिर उपभोग पैटर्न जैसे मांग-संबंधित मुद्दों को छोड़कर, भोजन की आपूर्ति पक्ष पर ध्यान केंद्रित किया गया था।  

इस संदर्भ में देखें तो कॉप-28 ने खाद्य प्रणालियों के लिए एक विशिष्ट दिन निर्धारित करके एक मिसाल कायम की है, जो उल्लेखनीय है।

क्या है खाद्य और जीवाश्म ईंधन के बीच सम्बन्ध

खाद्य प्रणालियों को प्राथमिकता देना जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की कीमत पर नहीं आना चाहिए। खाद्य प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन के महत्वपूर्ण उपयोग को देखते हुए, कॉप-28 के अध्यक्ष और राज्य के स्वामित्व वाली अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के कार्यवाहक प्रमुख सुल्तान अहमद अल जाबेर को इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए खाद्य प्रचारकों के भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जैसा कि पिटा ने उल्लेख किया है।

ग्लोबल एलायंस फॉर द फ्यूचर ऑफ फूड और डालबर्ग एडवाइजर्स की "पावर शिफ्ट" नामक एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि खाद्य प्रणालियां सालाना वैश्विक जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कम से कम 15 फीसदी का योगदान देती हैं, जो करीब 4.6 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है। यह जीवाश्म ईंधन औद्योगिक खाद्य प्रणाली की मूल्य श्रृंखला के सभी चार चरणों - एग्रोकेमिकल्स, भूमि उपयोग और उत्पादन, प्रसंस्करण और पैकेजिंग, और खुदरा, खपत और अपशिष्ट में अंतर्निहित हैं। 

आंकड़ों से पता चला है कि अक्षय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग के साथ परिवहन और बिजली के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग घट रहा है। ऐसे में जीवाश्म ईंधन उद्योग प्लास्टिक, कीटनाशकों और उर्वरकों के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले पेट्रोकेमिकल्स में निवेश को बढ़ावा दे रहा है। इस तरह यह उद्योग खाद्य प्रणालियों की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को मजबूत कर रहा है।

इसके लिए हमें खाद्य प्रणाली में उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, बिक्री, उपभोग और अपशिष्ट प्रबंधन के तरीके में पूर्ण बदलाव की आवश्यकता है। हालांकि यह चिंता बेकार नहीं है क्योंकि कॉप-28 अध्यक्षता जीवाश्म ईंधन और बड़े पैमाने पर कृषि के पैरवीकारों से तेजी से प्रभावित होती दिख रही है। जैसा कि ली चिंग ने उल्लेख किया है, हितों के ये स्पष्ट टकराव जीवाश्म ईंधन को आवश्यक रूप से चरणबद्ध तरीके से खत्म करने और खाद्य प्रणालियों के बदलावों के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं।

यहां तक ​​कि कॉप-27 के दौरान भी, ग्रीनवॉशिंग को लेकर गंभीर चिंताएं थी, क्योंकि उसमें भी बड़े खाद्य और कृषि पैरवीकारों की दोगुनी से अधिक उपस्थिति थी। ली चिंग ने चिंता जताई है कि यह प्रवृत्ति कॉप-28 में भी बनी रहेगी, क्योंकि ये पैरवीकार भोजन और खेती के क्षेत्र में अप्रमाणित तकनीकी समाधानों की वकालत करते हैं। उनका कहना है कि उर्वरकों और कीटनाशकों के 'कुशल' उपयोग जैसे तथाकथित 'क्लाइमेट-स्मार्ट' दृष्टिकोण, केवल हानिकारक औद्योगिक खाद्य और कृषि प्रणालियों को मजबूत करेंगें।

यही वजह है कि अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के नेतृत्व वाले एग्रीकल्चर इनोवेशन मिशन फॉर क्लाइमेट इनिशिएटिव को ऐसे समाधानों को बढ़ावा देने के लिए लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा है।

विशेषज्ञों ने साइल कार्बन ऑफसेटिंग जैसे समाधानों के प्रति भी सावधान रहने की चेतावनी दी है। हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि देशों को अपनी भूमि-आधारित जलवायु शमन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए लगभग 100 करोड़ हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी, जो आकार में अमेरिका से भी बड़ी जगह है। इससे न केवल भूमि पर कब्जा जो जाएगा। साथ ही जीविका, भूमि अधिकार, खाद्य उत्पादन और पारिस्थितिकी तंत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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