आखिर कैसे 100 से भी ज्यादा फसलों को अपना निशाना बनाता है फंगस 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम'

फंगस 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' वर्षों तक मिट्टी में रह सकता है। एक बार जब यह रोगजनक पौधों की जड़ में लग जाता है तो तेजी से बढ़ता है और पौधे के पूरे वस्कुलर सिस्टम को संक्रमित कर देता है

By Lalit Maurya

On: Thursday 19 May 2022
 
फोटो: जेनेट लुईस/ सीआईएमएमवाइटी

वैश्विक स्तर पर फंगस 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले सबसे घातक रोगजनकों में से एक है। यह फंगस 100 से भी ज्यादा फसलों को अपना निशाना बना सकता है। यही वजह है कि इस फंगस को किसानी के लिए एक बड़ा सिरदर्द समझा जाता है।

लेकिन ऐसा क्या है जो इस फंगस को इतना आक्रामक बना देता है? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। शायद इससे बचने का रास्ता भी इसी सवाल में छुपा है। इस पर हाल ही में किए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि सोच के विपरीत एक निश्चित प्रकार के एंजाइम की अनुपस्थिति में इस फंगस के संक्रमण की दर कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। हालांकि इस एंजाइम का न होना इस रोगजनक के फैलने की क्षमता को कम कर देता है। 

यह अध्ययन कॉर्डोबा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा फेडरल पॉलिटेक्निक इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटेक्निक और पेरिस-सैकले विश्वविद्यालय के सहयोग से किया गया है, जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुआ है।

देखा जाए तो यह फंगस 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' वर्षों तक मिट्टी में रह सकता है। एक बार जब यह रोगजनक पौधों की जड़ में लग जाता है तो तेजी से बढ़ता है और पौधे के पूरे वस्कुलर सिस्टम को संक्रमित कर देता है।

20 वर्षों तक मिट्टी में रह सकते हैं इस फंगस के बीजाणु

इतना है नहीं एक बार जब यह फसलों के संपर्क में आ जाता है तो इस संक्रमण को रोकना लगभग नामुमकिन हो जाता है। गौरतलब है कि इस फंगस के बीजाणु 20 वर्षों से भी ज्यादा समय तक मिट्टी में रह सकते हैं। यही वजह है कि इसके प्रसार को रोकना कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

इस शोध में शोधकर्ताओं ने इस फंगस में मौजूद एंजाइमों के एक सेट 'सेल्युलेसिस' का अध्ययन किया है। गौरतलब है कि फंगस 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' इस एंजाइम का उपयोग पौधों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए करते हैं, जिससे वो पौधों में फैल सकें।

साथ ही अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने इस फंगस की जीन में बदलाव करने में भी सफलता हासिल की है, जिससे इस एंजाइम 'सेल्युलेसिस' को शांत किया जा सके। इस प्रोटीन को निष्क्रिय करने के साथ ही उन्होंने यह समझने का भी प्रयास किया है कि बदलाव के बाद इन परिस्थितियों में रोगजनक कैसे व्यवहार करता है।

अध्ययन में एक चौंकाने वाली बात भी सामने आई है। पता चला है कि इन एंजाइमों की अनुपस्थिति में फंगस कहीं ज्यादा आक्रामक व्यवहार करते हैं, जिससे संक्रमण की दर बढ़ जाती है और पौधे मर जाते हैं।

वहीं दूसरी और इन एंजाइमों की अनुपस्थिति, बीजाणुओं के माध्यम से फंगस की अन्य फसलों में फैलने की क्षमता को कम कर देती है। जो दर्शाता है कि संक्रमण के अंतिम चरण में ये प्रोटीन कितना ज्यादा मायने रखते हैं।

इस बारे में कॉर्डोबा विश्वविद्यालय में जेनेटिक्स के प्रोफेसर और शोध से जुड़े शोधकर्ता एंटोनियो डि पिएत्रो का कहना है कि फंगस के फैलने में 'सेल्युलेसिस' को हमेशा एक प्रमुख घटक माना गया है। लेकिन यह पहला मौका है जब यह सामने आया है कि इस प्रोटीन की अनुपस्थिति में संक्रमण की दर बढ़ जाती है, जोकि पहले के सोच के बिलकुल उलट है।

ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि यह अध्ययन रोगजनकों की घटनाओं को कम करने के लिए रणनीति तैयार करने में मदद कर सकता है। उनके अनुसार इस प्रोटीन पर नियंत्रण, फंगस द्वारा फैलने वाले संक्रमण से लड़ने में मददगार हो सकता है।  

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