वैज्ञानिकों ने खोजे गेहूं में रोग प्रतिरोधी जींस

भारतीय वैज्ञानिकों ने गेहूं के ऐसे नमूनों की पहचान की है जिनमें पत्तियों में होने वाले रतुआ रोग से लड़ने की अनुवांशिक क्षमता पायी जाती है

By Umashankar Mishra

On: Tuesday 09 April 2019
 

 

उमाशंकर मिश्र

Twitter handle : @usm_1984

नई दिल्ली, 9 अप्रैल (इंडिया साइंस वायर): भारतीय वैज्ञानिकों ने गेहूं के ऐसे नमूनों की पहचान की है जिनमें पत्तियों में होने वाले रतुआ रोग से लड़ने की अनुवांशिक क्षमता पायी जाती है। इन नमूनों में पाए जाने वाले कुछ जींस नई रतुआ प्रतिरोधी किस्मों के विकास में मददगार हो सकते हैं।

एक अध्ययन में गेहूं के जर्म प्लाज्म भंडारके 6,319 नमूनों में से 190 नमूने देश के दस अलग-अलग गेहूं उत्पादक क्षेत्रों से चुने गए हैं। अनुवांशिक अध्ययनों के आधार इन नमूनों में एपीआर जीन्स की पहचान की गई है और फिर उनकी प्रतिरोधक क्षमता और स्थिरता का मूल्यांकन किया गया है।

दो से तीन संयुक्त एपीआर जींस वाले 49 नमूने शोधकर्ताओं को मिले।विभिन्न स्थानों पर मूल्यांकन करने पर इनमें से आठ नमूने रोग प्रतिरोधी टिकाऊ प्रजातियों के विकास के लिए अनुकूल पाए गए। जबकि 52 नमूनों में एपीआर जींस नहीं पाए जाने के बावजूद उनमें उच्च प्रतिरोधी स्तर देखा गया है। इनमें से 73 प्रतिशतनमूनों में एक या अधिक एपीआर जीन्स मौजूद थे।

गेहूं में रतुआ जैसे फफूंद जनित रोग से जुड़े सुरक्षा तंत्र के पीछे एक या अधिक एपीआरजींस की भूमिका हो सकती है। एपीआर जीन्स का प्रतिरोधी प्रभाव आमतौर पर व्यस्क पौधों में देखने को मिलता है। रतुआ प्रतिरोधी जींस के लक्षण, पत्तियों में रतुआ रोग के प्रभाव और एपीआर की सर्वाधिक प्रतिक्रिया ठंडे स्थानों से प्राप्त नमूनों में अधिक देखी गई है। यह अध्ययन शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किया गया है।

फसलों के अंकुरण के बाद के चरणोंमें रतुआ जैसे फफूंद जनित रोगों से बचाव में पौधों की यह प्रतिरोधक क्षमता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अंकुरण से लेकर पौधों के विकास के विभिन्न चरणों में एपीआरजींस की प्रतिक्रिया में बदलाव होते रहते हैं। तापमान और मौसमी दशाओं के अनुसार पौधों में यह प्रतिरोधक प्रतिक्रिया प्रभावित होती है।

इस अध्ययन से जुड़े के वैज्ञानिकों के अनुसार, “एक एपीआर जीन का प्रभाव कई बार सीमित हो सकता है।ऐसे में संभव है कि वह पौधे को रतुआ रोग के हमले से न बचा सके। लेकिन दो या तीन जींस संयुक्त हो जाएं तो उनका प्रतिरोधी प्रभाव बढ़ सकता है और पौधों में उच्च प्रतिरोधक क्षमता देखने को मिल सकती है।”

यह अध्ययन नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने कई अन्य विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर किया है। (इंडिया साइंस वायर)

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