भारत में 2022 में आंधी-तूफान, वज्रपात ने ली 1200 जानें, बाढ़ से 34,528 करोड़ का नुकसान: डब्ल्यूएमओ

2022 के दौरान एशिया में 80 से ज्यादा आपदाएं आई, इनमें करीब 83 फीसदी बाढ़ और तूफान की घटनाएं थी। इन घटनाओं में पांच हजार से ज्यादा लोग मारे गए और पांच करोड़ से ज्यादा प्रभावित हुए थे

By Lalit Maurya

On: Tuesday 01 August 2023
 

2022 के दौरान आई आंधी-तूफान और वज्रपात की घटनाओं ने भारत में 1,200 जिंदगियां लील ली थी। इतना ही नहीं, मई से सितंबर के दौरान हुई भारी बारिश के चलते देश में कई जगह भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं सामने आई थी। बिहार में बिजली गिरने की ऐसी ही एक घटना में 34 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।

मानसून के दौरान हुई मूसलाधार बारिश ने विशेष रूप से भारत और बांग्लादेश के उत्तरपूर्वी हिस्सों को बुरी तरह प्रभावित किया था। इस बाढ़ के चलते भारत में 2,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जबकि करीब 13 लाख लोग इससे प्रभावित हुए थे। यह जानकारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा 27 जुलाई 2023 को जारी नई रिपोर्ट "स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया 2022" में सामने आई है।

रिपोर्ट में भारत को लेकर जो आंकड़े साझा किए हैं उनके अनुसार देश में 2022 के दौरान बाढ़ के चलते करीब 34,528 करोड़ रूपए (420 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान हुआ था।

रिपोर्ट का कहना है कि एशिया, दुनिया का सबसे आपदा-संवेदनशील क्षेत्र है। जहां 2022 में 80 से ज्यादा आपदाएं आई थी। इनमें ज्यादातर करीब 83 फीसदी बाढ़ और तूफान की घटनाएं थी। इन घटनाओं में पांच हजार से ज्यादा लोग मारे गए। करीब तीन लाख करोड़ रूपए (3,600 करोड़ डॉलर) का आर्थिक नुकसान हुआ। इतना ही नहीं इन आपदाओं में पांच करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे।

यदि 2021 की तुलना में देखें तो 2022 में जलवायु से जुड़ी इन आपदाओं की संख्या में कमी आई है लेकिन इनके प्रभाव कहीं ज्यादा स्पष्ट थे। यही वजह है कि 2022 के दौरान इन आपदाओं में होने वाली मौतों, प्रभावित लोगों और आर्थिक क्षति सभी में वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार एशिया में इस दौरान आपदाओं से जितनी भी मौतें हुई थी उसके 90 फीसदी के लिए बाढ़ जिम्मेवार थी। इनमें से अधिकांश को भारत-पाकिस्तान में मई से जून के दौरान आई बाढ़ से जोड़ा जा सकता है। यह आंकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में करीब 40 फीसदी अधिक है।

2022 में सूखे से हुआ आर्थिक नुकसान 2021 की तुलना में बढ़कर दोगुने से ज्यादा हो गया है जो 62,480 करोड़ रूपए (760 करोड़ डॉलर) तक पहुंच गया था। सूखे का सबसे ज्यादा प्रभाव दक्षिण-पश्चिम चीन में पड़े सूखे की वजह से हुआ। जहां पिछले छह दशकों में इतना विकट सूखा पड़ा था, जिसकी वजह से कृषि क्षेत्र को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।

इस बारे में विश्व मौसम संगठन के महासचिव पेटेरी तालस का कहना है, "पिछले साल एशिया के कई क्षेत्रों को, सामान्य से अधिक शुष्क स्थिति और सूखे का सामना करना पड़ा।" इसके लिए उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए बताया कि, वहां लम्बे समय तक सूखे की स्थिति के चलते पानी और बिजली की आपूर्ति प्रभावित हुई है।

उनका कहना है कि, "2022 में असाधारण गर्मी और शुष्क परिस्थितियों के चलते, एशिया के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश ग्लेशियरों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा" उनका मानना है कि यह भविष्य में खाद्य और जल सुरक्षा के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र को रूप से प्रभावित कर सकता है।

वहीं इस दौरान इराक, हिंदू कुश हिमालय, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के निचले प्रवाह क्षेत्र, कोरियाई प्रायद्वीप और क्यूशू, जापान में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई। जबकि इसके विपरीत दक्षिण-पूर्व एशिया, पाकिस्तान के दक्षिणी हिस्सों और उत्तर-पूर्व चीन के आसपास सबसे ज्यादा बारिश देखी गई।

भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने 2022 के दौरान सामान्य से ज्यादा बारिश हुई। यही वजह है कि पाकिस्तान ने जुलाई और अगस्त 2022 में हुई भारी वर्षा के चलते विनाशकारी बाढ़ का सामना किया था।

पाकिस्तान में बारिश की स्थिति यह थी कि 2022 में मानसून सीजन की शुरूआत के केवल तीन हफ्तों में इस मौसम में होने वाली 60 फीसदी बारिश दर्ज की गई। इस भारी बारिश के चलते देश के कई हिस्सों में बाढ़, भूस्खलन और हिमनद झीलों में विस्फोट और बाढ़ की घटनाएं सामने आई थी। पाकिस्तानी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के चलते इसकी वजह से 3.3 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। 1,730 लोगों की जानें गई और करीब 80 लाख लोगों को विस्थापन का दंश झेलना  पड़ा था। 

भारत सहित एशिया के लिए आपातकाल से कम नहीं बढ़ता तापमान

डब्ल्यूएमओ ने अपनी इस नई रिपोर्ट में कहा है कि एशिया में तापमान वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। यही वजह है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव सामने आ रहे हैं। आंकड़ों की मानें तो एशिया में 2022 का औसत तापमान उसे जलवायु रिकॉर्ड का दूसरा या तीसरा सबसे गर्म वर्ष बनाता है।

1991 से 2020 के औसत की तुलना में देखें तो तापमान में होती वृद्धि 0.72 डिग्री सेल्सियस दर्ज की गई। वहीं 1961-90 के औसत तापमान से तुलना करें तो वो 1.68 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा।

रिपोर्ट का कहना है कि जिस तरह से इस क्षेत्र में बर्फ और हिमनद पिघल रहे हैं और समुद्र के जलस्तर में इजाफा हो रहा है उसके चलते भविष्य में, कहीं ज्यादा सामाजिक और आर्थिक व्यवधान पैदा होने का खतरा है। इतना ही नहीं अनुमान है कि जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते यह आपदाएं कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले सकती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। 2022 में वैश्विक औसत तापमान 1850 से 1900 के औसत तापमान की तुलना में 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। जो वर्ष की शुरूआत और अंत में बनी ला नीना की सर्द परिस्थितियों के चलते हाल के कुछ वर्षों की तुलना में कम गर्म था।

हालांकि 2022 में महासागरों का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। वहीं पिघलते ग्लेशियरों ने समुद्र के औसत स्तर में होती वृद्धि में योगदान दिया जिसकी वजह से वो 2022 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। वहीं यदि एशिया के अधिकांश समुद्री क्षेत्रों की बात करें तो वहां 1993 के बाद से समुद्र की ऊपरी परत (0-700 मीटर) में तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है।

यदि 2013 से 2022 के आंकड़ों को देखें तो वैश्विक रूप से समुद्र का औसत स्तर प्रति वर्ष 4.6 मिमी की दर से बढ़ रहा है। वहीं एशिया के अधिकांश क्षेत्रों में यह दर 1993 से 2022 के बीच औसत 3.4 मिलीमीटर प्रति वर्ष दर्ज की गई।

यदि 2022 से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो एशिया में ऊपरी महासागरीय परत ने अपना पांचवां सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया। यह गर्मी और बढ़ता तापमान विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी अरब सागर, फिलीपीन सागर और जापान के पूर्व के समुद्रों में विशेष रूप स्पष्ट थे, जहां वार्मिंग की दर वैश्विक औसत से तीन गुणा अधिक रही। इसी तरह एशिया के आसपास के कई क्षेत्रों में, समुद्र की सतह हर दशक 0.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की दर से गर्म हो रही है, जो ग्लोबल वार्मिंग दर से करीब तीन गुणा तेज है। 

एक डॉलर = 82.21 भारतीय रूपए

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