उष्णकटिबंधीय देशों से 30-58% मछली की प्रजातियां हो जाएंगी गायब

ऐसे में कई देश, जिनकी अर्थव्यवस्था मत्स्य पालन पर टिकी हुई है को नुकसान हो सकता है

By Dayanidhi

On: Tuesday 25 February 2020
 

 

महासागर के गर्म होने से मछलियां अपने पसंदीदा थर्मल वातावरण को बनाए रखने के लिए ठंडे पानी की ओर पलायन करती हैं। ऐसे में कई देश, जिनकी अर्थव्यवस्था मत्स्य पालन पर टिकी हुई है को नुकसान हो सकता है। 

डेलावेयर विश्वविद्यालय, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा और होक्काइडो विश्वविद्यालय के अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक उत्तर पश्चिमी अफ्रीकी देशों में मछलियों के गायब होने की आशंका है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि वर्तमान में प्रभावित देशों को होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करने के लिए कोई नीति नहीं हैं। यह नया अध्ययन नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है।

 

कैसे हो रही है प्रजातियां गायब

शोधकर्ताओं ने सन 2100 तक उत्सर्जन के विभिन्न परिदृश्यों (सिनेरीओ) के तहत राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर निकलने वाली प्रजातियों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए 779 व्यवसायिक मछली की प्रजातियों में किस तरह का बदलाव आएगा, इसके लिए एक मॉडल का उपयोग किया है।

उष्णकटिबंधीय देशों को मछली की सबसे अधिक प्रजातियों का नुकसान होता हैं। ओरेमस ने कहा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक मछली प्रजातियों के गायब होने का पूर्वानुमान लगाया है क्योंकि मछली में आमतौर पर एक तापमान सीमा होती है जिसमें वे आराम से रहते हैं और अगर यह बहुत गर्म हो जाता है, तो वे ध्रुवों की ओर पलायन करती हैं।

नॉर्थवेस्टर्न अफ्रीकी ईईजेडएस के अधिकतम प्रजातियों के गायब होने की आशंका है। इसमें 2050 तक 6 से 50 प्रतिशत और 2100 तक 30-58 प्रतिशत मछलियों की प्रजातियों के लुप्त होने की आशंका जताई गई है।   

समस्या का समाधान

मछली की प्रजातियों के नुकसान को देखने के अलावा, शोधकर्ताओं ने 127 अंतरराष्ट्रीय मत्स्य समझौतों की जांच की, जिसमें बड़े, क्षेत्रीय लोगों के साथ-साथ छोटे द्विपक्षीय समझौतों को भी देखा। उन्होंने पाया कि किसी भी समझौते में जलवायु परिवर्तन का मछलियों के प्रजातियों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन नहीं किया गया है। इसलिए सबसे पहले इस बारे में स्पष्ट नीति बनाने की जरूरत है। 

अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान के लिए मुआवजे पर विचार करने के लिए एक प्रक्रिया हैं। यह प्रक्रिया मछली पालन समझौतों में बेहतर काम कर सकती है। लेकिन ओरेमस की टीम ने पाया कि इस प्रक्रिया को नीति में शामिल नहीं किया गया है।

पारंपरिक मत्स्य प्रबंधन के तहत माना जाता है कि मछली एक कभी न खत्म होने वाली (अक्षय) प्राकृतिक संसाधन हैं जब तक उनकी भौगोलिक सीमा स्थिर रहती है, तब तक वे भरपूर मात्रा में रहेंगे।

लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण किसी देश से बाहर जाने वाली प्रजातियों के लंबे समय तक प्रवास का मतलब है कि मछलियों का स्टॉक अक्षय नहीं हो सकता हैं, भले ही वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अक्षय ही क्यों हों।

कई देशों के लिए जहां मछली उनके सकल घरेलू उत्पाद को चलाने वाले प्रमुख आर्थिक संसाधनों में से एक है, इन देशों को आपस में बातचीत करने के लिए जुड़ना चाहिए तथा जलवायु समझौतों में इस विषय को शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए।  

 

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