जलवायु संकट से गंभीर रूप से त्रस्त देशों में 71 करोड़ बच्चों को लगातार झेलनी पड़ सकती है त्रासदी

इन देशों में रहने वाले सभी बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है। लेकिन जो बच्चे गरीबी, संघर्ष, भूख या आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं, वो इससे सबसे ज्यादा पीड़ित होंगे।

By Lalit Maurya

On: Monday 19 April 2021
 

जलवायु संकट से गंभीर रूप से त्रस्त 45 देशों में करीब 71 करोड़ बच्चे रहते हैं। इनमें से 70 फीसदी देश अफ्रीका में हैं। जिनमें चाड, सोमालिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, इरिट्रिया, कांगो, बुस्र्न्दी, माली, लाइबेरिया, जिम्बाब्वे, सूडान, नाइजर जैसे देश शामिल हैं। स्वयं सेवी संस्था सेव द चिल्ड्रन के अनुसार ऐसे में बाढ़, सूखा, तूफान और अन्य चरम मौसमी घटनाओं का इन बच्चों और उनके परिवार पर विशेष रूप से गहरा प्रभाव पड़ेगा। जारी विश्लेषण के अनुसार इन देशों में बच्चे जलवायु परिवर्तन के कारण भोजन की कमी, बढ़ते जल स्तर, पानी की कमी, बीमारियों और स्वास्थ्य से जुड़े खतरों के चलते विशेष रूप से प्रभावित होंगें

एनडी-गेन डेटाबेस के आंकड़ों पर आधारित इस विश्लेषण के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के करोड़ों बच्चे उन देशों में रह रहे हैं जहां जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य उत्पादन पर असर पड़ा है जिसका प्रभाव स्थानीय खाद्य संकट और कीमतों के बढ़ने के रूप में सामने आ रहा है। जिसका सबसे ज्यादा असर सबसे गरीब और कमजोर तबके पर पड़ेगा। ऐसे में सेव द चिल्ड्रन ने चेतावनी दी है कि बच्चों और उनके परिवारों को जलवायु परिवर्तन के गंभीर असर से बचाने के लिए कठोर कार्रवाई करने की जरुरत है।

यदि देशों पर  बढ़ते प्रभाव को देखें तो इसके चलते यमन जैसे देशों में स्थिति और बदतर हो रही है। संघर्ष और हिंसा के चलते इस देश में भोजन की गंभीर कमी पैदा हो गई है। जिसका असर यहां रहने वाले लाखों बच्चों पर पड़ रहा है। इसी तरह बांग्लादेश में बाढ़, चक्रवात और समुद्र के बढ़ते जलस्तर का शिकार वहां के बच्चे बन रहे हैं। एक तरफ मलेरिया और डेंगू बुखार जैसी बीमारियां डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगों में बच्चों को प्रभावित कर रह है। वहीं मौसम की चरम घटनाओं के बढ़ने के कारण स्वास्थ्य के लिए नए जोखिम पैदा हो रहे हैं जबकि वहां स्वास्थ्य प्रणाली पहले से ही सीमित है।

जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है, उसको रोकने की सम्भावना भी तेजी से खत्म हो रही है। हर दिन स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ऐसे में उसपर तत्काल कार्रवाई जरुरी है। बच्चों का वर्तमान और भविष्य दांव पर है, ऐसे में उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्हें भी जलवायु संकट पर हो रहे वार्तालाप में सुना जाना चाहिए। साथ ही नीति निर्माण में शामिल किया जाना चाहिए।

गरीबी, संघर्ष, भूख या आपदा प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे बच्चों पर पड़ रहा है सबसे ज्यादा असर

विश्लेषण के अनुसार हालांकि सभी बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है। लेकिन जो बच्चे गरीबी, संघर्ष, भूख या आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं, वो इससे सबसे ज्यादा पीड़ित होंगे, क्योंकि अक्सर वे अपनी बुनियादी जरूरतों से भी वंचित रह जाते हैं। यही नहीं जिन देशों में जोखिम कम है वहां भी बच्चों को जंगल की आग, बाढ़, सूखा जैसे कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है।

यदि इसपर तुरंत और कठोर कार्रवाही न की गई तो आने वाले दशकों में जलवायु संकट के चलते लाखों बच्चों की मौत हो सकती है। जलवायु के बढ़ते असर के साथ  परिवारों पर बोझ बढ़ता जाता है। परिवार इनसे उबरने की कोशिश भी करते हैं पर ऐसे देशों में रहने के कारण जहां सामाजिक सुरक्षा का आभाव है वहां वो गरीबी के दलदल में धंसते जाते हैं, कई बार तो उन्हें अपना घर-बार तक छोड़ना पड़ता है।

सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल के सीईओ इंगर असिंग के अनुसार जलवायु संकट बच्चों के लिए सबसे बड़ा खतरा है जिसका असर सीमाओं के परे पीढ़ियों पर पड़ रहा है। कोविड-19 ने पहले ही लाखों बच्चों और परिवारों को गरीबी में धकेल दिया है और भूख एवं कुपोषण को बढ़ा दिया है। साथ ही बाढ़, सूखा और तूफान स्थिति को और ख़राब कर रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पृथ्वी दिवस के मौके पर 22 अप्रैल से जलवायु परिवर्तन पर शुरू होने वाली लीडर्स समिट आयोजित की है। सेव द चिल्ड्रन ने आग्रह किया है कि जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित और हाशिए पर रह रहे लोगों और बच्चों को भी विश्व नेताओं के साथ अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए।   

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