बदलती जलवायु के साथ गायब हो सकते हैं साइप्रस के 72 फीसदी समुद्री तट

सदी के अंत तक समुद्र के जलस्तर में 60 फीसदी की वृद्धि होने की आशंका है। इसकी वजह से समुद्र का जलस्तर औसत से 1.29 मीटर तक बढ़ सकता है

By Lalit Maurya

On: Monday 07 August 2023
 
साइप्रस की कोरल खाड़ी में खूबसूरत समुद्र तट का हवाई दृश्य; फोटो: आईस्टॉक

वैश्विक स्तर पर जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहे हैं उसका खतरा न केवल भारत पर बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी देखने को मिल रहा है। ऐसा ही कुछ साइप्रस में भी सामने आया है। अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते साइप्रस के समुद्र तटों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में यदि इनपर ध्यान न दिया गया तो सदी के अंत तक साइप्रस के 72 फीसदी समुद्र तट गायब हो सकते हैं।

इस बारे में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक दल द्वारा एक नया अध्ययन किया गया है, जिसमें ग्रीस के एजियन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं भी शामिल थे। इसके नतीजे जर्नल फ्रंटियर्स इन मरीन साइंस में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि 9,251 वर्ग किलोमीटर में फैला यह देश चारों तरफ से भूमध्य सागर से घिरा है, जिसकी तटरेखा 740 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। यह देश भूमध्य सागर में तीसरा सबसे बड़ा द्वीप है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उपग्रह से प्राप्त छवियों का उपयोग किया है। इनकी मदद से उन्होंने साइप्रस में 241 असुरक्षित समुद्र तटों के विस्तार में आने वाले बदलावों की गणना की है। उन्होंने आने वाले दशकों में विभिन्न जलवायु परिदृश्यों के तहत समुद्र के बढ़ते जलस्तर और तूफान के कारण समुद्री तटों के होने वाले संभावित कटाव की भविष्यवाणी के लिए मॉडल भी तैयार किया है।

रिसर्च के अनुसार यह समस्या नीचे तटों की ओर बहने वाली तलछट को होते नुकसान से और भी बदतर हो गई है, क्योंकि बांधों ने तलछट को ऊपर अपस्ट्रीम में फंसा लिया है। इसकी वजह से कटाव के बाद समुद्र तटों के दोबारा भराव के लिए कम रेत उपलब्ध हो रही है।

रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक 2000 की तुलना में सदी के अंत तक समुद्र के जलस्तर में 60 फीसदी की वृद्धि होने की आशंका है। इसकी वजह से समुद्र का जलस्तर औसत से 1.29 मीटर तक बढ़ सकता है।

नतीजन दक्षिणी और पश्चिमी तटरेखाओं को सबसे ज्यादा कटाव का सामना करना पड़ेगा। हालांकि यह 50 मीटर से कम चौड़ाई वाले संकीर्ण समुद्र तट हैं, जो कटाव के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं। ऐसे में अनुमान है कि सदी के अंत तक 72 फीसदी समुद्र तटों की चौड़ाई स्थाई रूप से कम से कम आधी कम हो जाएगी। गौरतलब है कि साइप्रस में केवल 0.6 फीसदी समुद्र तट ऐसे हैं जिनकी अधिकतम चौड़ाई 100 मीटर से ज्यादा है।

आईपीसीसी के मुताबिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (सीओ2) के विभिन्न परिदृश्यों के तहत, जैसे-जैसे उत्सर्जन बढ़ता है, वैसे-वैसे समुद्र का जलस्तर भी बढ़ जाएगा। शोधकर्ताओं ने पाया कि सबसे खराब परिदृश्य में, जब कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 650 पीपीएम (आरसीपी4.5) से बढ़कर 1,500 पीपीएम (आरसीपी8.5) हो जाएगा, तो समुद्र के जलस्तर में होती तीन गुणा वृद्धि के साथ 2.04 मीटर तक पहुंच सकती है।

बढ़ते तापमान के साथ बढ़ जाएगी तूफानों की आवृत्ति

समुद्र के जलस्तर में होती वृद्धि के अलावा, तटीय तूफानों की गंभीरता और आवृत्ति में भी वृद्धि होने की आशंका है। इसी तरह सदी के अंत तक 100 वर्षों में एक बार आने वाले गंभीर तूफानों के घटने की आशंका है, इससे करीब आधे समुद्र तट प्रभावित होंगें। इसका खासतौर पर असर उत्तरी तटरेखा पर पड़ेगा। ऐसे में यदि उचित सुरक्षा उपाय न किए गए तो इस घटना से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और बुनियादी ढांचे दोनों को काफी गंभीर नुकसान हो सकता है।

आशंका है आरसीपी4.5 परिदृश्य के तहत, 2050 से इस तरह की घटनाओं के घटने की आशंका हर 9 से 27 साल में घटने की आशंका है। वहीं कहीं ज्यादा गंभीर परिस्थिति यानी आरसीपी8.5 के तहत, इसकी आवृत्ति कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी, तब इस तरह की घटनाएं हर ढाई से 13 साल में घट सकती है। नतीजन सदी के अंत तक इस तरह की घटनाएं यहां तक कि साल में कई बार घट सकती हैं।

सामने आए नतीजों के अनुसार कटाव के चलते 2050 तक दो फीसदी समुद्र तट पूरी तरह प्रभावित होंगें वहीं आरसीपी8.5 परिदृश्य में 16 फीसदी तट आधे पीछे हट सकते हैं। वहीं अगले 50 वर्षों में यह स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर हो जाएगी। जब 30 फीसदी समुद्र तटों के पूरी तरह पीछे हटने की आशंका है, जबकि सदी के अंत तक करीब 72 फीसदी समुद्र तट इससे पूरी तरह प्रभावित होंगें। इसके चलते करीब 39 मीटर समुद्र तट, विशेष रूप से उत्तर और पूर्व में, नष्ट हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में समुद्र तटों के पीछे हटने की समस्या पर प्रकाश डाला है। पर्यटन संबधी बुनियादी ढांचे को अक्सर समुद्र तटों के किनारे बनाया जाता है। ऐसे में यदि समुद्रो तटों को बचाने या उनकी बहाली के प्रयास न किए जाए तो वो स्थाई रूप से नष्ट हो सकते हैं। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन तटों को बचाने के लिए जिस क्षेत्र से रेत लाइ जाती है वो उन क्षेत्रों की स्थिरता के लिए भी खतरा पैदा कर सकती है और गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।

इन्ही को ध्यान में रखते हुए 2008 में, समुद्र तट के किनारे सीधे बुनियादी ढांचे के निर्माण से बचने और पर्यटन केंद्रों को होने वाले नुकसान के आर्थिक परिणामों को कम करने के लिए बफर जोन बनाए गए थे। शोधकर्ताओं ने तूफानी लहरों से होने वाले कटाव को कम करने और समुद्र के बढ़ते स्तर से बचाव के लिए समुद्री दीवार, ग्रोइन और अपतटीय ब्रेकवाटर जैसी कठिन इंजीनियरिंग पर भी विचार करने का प्रस्ताव दिया है।

हमें यह समझें होगा की मुद्दा केवल इंसानों को होने वाले नुकसान का ही नहीं है। इससे तटरेखा पर रहने वाले अनगिनत जीवों के आवास भी प्रभावित होंगें। हालांकि  केवल हम इंसान ही अपने समुद्र तटों को जलवायु परिवर्तन की मार से बचाने के लिए कार्रवाई कर सकते हैं। 

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