खराब मौसम की वजह से हो जाता है 1.5% जीडीपी का नुकसान

 भारतीय मौसम विभाग की ओर से 1901 से अब तक उपलब्ध मौसम के आंकड़े स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि विकट गर्मी ने अपना दायरा बढ़ा लिया है

By DTE Staff

On: Thursday 11 July 2019
 

जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी मार भारत को ही पड़ सकती है। बढ़ता तापमान न सिर्फ यहां की मौसम विविधता का संतुलन बिगाड़ सकता है बल्कि उस पर टिकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ को भी पूरी तरह तोड़ सकता है। भारतीय मौसम विभाग की ओर से 1901 से अब तक उपलब्ध मौसम के आंकड़े स्पष्ट तौर पर यह बताते हैं कि विकट गर्मी ने अपना दायरा बढ़ा लिया है  ठंड में भी गर्मी का एहसास है। सूखा-सैलाब और चक्रवात व तूफान के कारण प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता बढ़ गई है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की 2018 में जारी रिपोर्ट से भी यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) किसी भी स्तर पर सुरक्षित नहीं है। पेरिस समझौते में बनी सहमति के अनुसार वैश्विक तापमान को पूर्व औद्योगिक काल के तापमान से 1. 5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखना है। इस समझौते में शामिल देशों के पास अब केवल 12 वर्ष बचे हैं। आईपीसीसी द्वारा इस विषय पर प्रस्तुत की गई “स्पेशल रिपोर्ट ऑन 1. 5 डिग्री सेल्सियस (एसआर 1.5)” साफ तौर पर चेतावनी देती है कि यदि वर्ष 2050 तक कुल कार्बन उत्सर्जन शून्य तक नहीं आया तो 1. 5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान का बढ़ना तय है। तापमान में यह बढ़ोत्तरी कई तरह की मुश्किलें खड़ी कर सकता है। मसलन, मानसून के हेर-फेर और प्राकृतिक आपदाओं के कारण नुकसान का बोझ बेहद बड़ा हो सकता है।

सीएसई अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते तापमान के कारण लू जैसी समस्या भी विकराल हुई है। अकेले लू के कारण 2017 में 375 मौतें हुईं वहीं, आकाशीय बिजली के चलते 750 लोगों ने अपनी जान गंवाई। यह आंकड़े अभी शुरुआत भर हैं। आईआईटी गांधीनगर के विमल मिश्रा का कहना है कि भारत को गर्म जलवायु के कारण घटित होने वाली घटनाओं से ज्यादा खतरा है। उच्च जनसंख्या घनत्व, तेजी से विकासशील आधारभूत संरचना और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था, ये सभी कारक भारत को बेहद कमजोर बनाते हैं। उन्होंने कहा कि तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी होने से भारत में गर्म हवाओं में कई गुना वृद्धि हुई है। इसलिए भविष्य में गर्म हवाओं की वजह से मृत्यु दर में काफी वृद्धि हो सकती है।

सीएसई के ही एक अन्य अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में ऊर्जा खपत और उत्सर्जन का स्तर 2030 तक अपने शीर्ष पर पहुंचेगा लेकिन अनुमान है कि अभी से ही भारत प्रतिवर्ष अपनी जीडीपी का लगभग डेढ़ प्रतिशत हिस्सा खराब मौसम की वजह से खोता आया है। यही नहीं, वैश्विक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की इस वृद्धि के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में भी सालाना 4 से 9 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है। अगर तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा बढ़ा तो भारत में भीषण गरीबी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।


 

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