जलवायु संकट को बढ़ा सकते हैं एआई और सोशल मीडिया, कैसे? क्या कहता है शोध?

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से पता लगाया है कि जेनरेटिव एआई-जिसमें चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल और सोशल मीडिया गंभीर वैश्विक मुद्दों से ध्यान हटा सकते हैं।

By Dayanidhi

On: Monday 13 May 2024
 
शोधकर्ता ने शोध में कहा कि एआई और सामाजिक तकनीकें जलवायु संकट पर हमारा ध्यान कम कर सकती हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक

जलवायु संकट पर जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सोशल मीडिया के योगदान को अक्सर कम करके आंका जाता है। आज तक, अधिकांश ध्यान तकनीकी उत्पादों के जीवन चक्र से जुड़े प्रत्यक्ष उत्सर्जन पर रहा है। जलवायु में बदलाव को लेकर सोशल मीडिया के प्रतिकूल और अप्रत्यक्ष प्रभावों को नजरअंदाज किया गया है। अब एक नए शोध में शोधकर्ताओं का तर्क है कि जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सोशल मीडिया जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों को कमजोर कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से पता लगाया है कि जेनरेटिव एआई-जिसमें चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल और सोशल मीडिया गंभीर वैश्विक मुद्दों से ध्यान हटा सकते हैं। ये निराशा की भावनाओं को बढ़ावा दे सकते हैं और रचनात्मक सोच और समस्या के समाधान करने की क्षमता को कमजोर कर सकते हैं।

जर्नल ग्लोबल एनवायर्नमेंटल पॉलिटिक्स में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि, एक आम धारणा यह है कि एआई, सोशल मीडिया और अन्य तकनीकी उत्पाद और प्लेटफॉर्म जलवायु परिवर्तन की कार्रवाई पर अपने प्रभाव में या तो तटस्थ हैं या संभावित रूप से सकारात्मक हैं।

प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी व्यवसाय प्रबंधन से जुड़े शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, आज तक हमने जो अधिकांश विश्लेषण देखे हैं, वे तकनीकी उत्पादों के जीवन चक्र से जुड़े प्रत्यक्ष उत्सर्जन की गणना पर आधारित हैं।

उदाहरण के लिए, सर्वर फार्म, बिटकॉइन माइनिंग और इसी तरह की संरचनाओं जैसे इंटरनेट बुनियादी ढांचे प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं। लेकिन जलवायु पर जेनरेटर एआई और सोशल मीडिया के प्रतिकूल और अप्रत्यक्ष प्रभावों की जांच पड़ताल बहुत कम की गई है। ये तकनीकें मनुष्य के व्यवहार और सामाजिक गतिशीलता, जलवायु परिवर्तन के प्रति नजरिए को प्रभावित कर रही हैं।

शोधकर्ता ने शोध में  कहा कि एआई और सामाजिक तकनीकें जलवायु संकट पर हमारा ध्यान कम कर सकती हैं

शोध के मुताबिक, हमेशा नई, हमेशा बदलती सामग्री की पेशकश में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म धीमी गति से चलने वाले मुद्दों से ध्यान हटा सकते हैं। इसका दूसरा पक्ष यह है कि सोशल मीडिया पर बुरी खबरों के लगातार संपर्क से आशावाद भी खत्म हो सकता है और निराशा की भावना बढ़ सकती है। यह सब हमें जलवायु परिवर्तन पर संगठित होने या सामूहिक कार्रवाई करने से रोक सकता है।

शोधकर्ता जेनरेटिव एआई की सतर्क समीक्षा का आह्वान कर रहे हैं। शोध के हवाले से शोधकर्ता ने कहा, जैसे-जैसे लोग इस पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं, हम रचनात्मकता और दूरदर्शी समाधानों के लिए अपनी क्षमता को कम होता पा रहे हैं। सोशल मीडिया और एआई दोनों को अक्सर गलत या पक्षपातपूर्ण जानकारी फैलाने के लिए जाना जाता है, जो जलवायु परिवर्तन पर उठाए जाने वाले कदमों को रोक सकते हैं।

शोध के अनुसार, उन लोगों और व्यवसायों के बारे में अधिक संदेह किया जाना चाहिए जो जलवायु संकट के समाधान के रूप में डिजिटलीकरण को पेश करते हैं। शोधकर्ता के मुताबिक, हम शोधकर्ताओं से अपना कुछ ध्यान प्रत्यक्ष प्रभावों से हटाकर इंटरनेट से संबंधित अप्रत्यक्ष प्रभावों की ओर करने का आह्वान कर रहे हैं। केवल तथ्य-आधारित विश्लेषण के माध्यम से हम जलवायु पर इंटरनेट के वास्तविक प्रभाव की अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं।

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