वातावरण में बढ़ती शुष्कता से घट रही है पौधों की लम्बाई, पैदावार भी प्रभावित

वातावरण में बढ़ती शुष्कता का असर दुनिया भर में पेड़-पौधों की लम्बाई पर पड़ रहा है जो सामान्य से कम होती जा रही है| नतीजन कृषि उपज और पैदावार भी घट रही है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 09 March 2021
 

वातावरण में जिस तरह से शुष्कता बढ़ रही है उसका असर दुनिया भर में पेड़-पौधों की लम्बाई पर पड़ रहा है जो सामान्य से कम होती जा रही है। यही नहीं इसके चलते कृषि उपज और पैदावार भी घट रही है। यह जानकारी हाल ही में कनाडा की मिनेसोटा और वेस्टर्न यूनिवर्सिटी द्वारा किए शोध में सामने आई है जोकि जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

2000 के बाद से ही वातावरण में शुष्कता के बढ़ने के सबूत मिलने लगे थे, जिसमें हाल के वर्षों में वृद्धि दर्ज की गई है। जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है उसको देखते हुए वैज्ञानिकों का मत है कि आने वाले दशकों में इसके और बढ़ने की सम्भावना है। गौरतलब है कि वातावरण में बढ़ती शुष्कता को जलवाष्प के दबाव में आ रही कमी (वीपीडी) के रूप में जाना जाता है, जोकि हवा में नमी की मात्रा और संतृप्त होने पर हवा में कितनी नमी हो सकती है, उसके बीच का अंतर है। इसे आमतौर पर पाउंड प्रति वर्ग इंच (पीएसआई) या किलोपास्कल (केपीए) में मापा जाता है।

वातावरण में बढ़ती शुष्कता का असर फसली और गैर फसली दोनों तरह के पौधों पर पड़ रहा है। यहां तक की जिन फसलों की अच्छी तरह से सिंचाई होती है वो भी इसके असर से नहीं बच पाए हैं। यह शोध बड़े पैमाने पर किए गए 50 वर्षों के अनुसन्धान पर आधारित है, जिसमें पेड़ पौधों की 112 प्रजातियों को शामिल किया गया था।

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता वालिद सदोक के अनुसार जब शुष्कता में कमी आने लगती है तो वातावरण उसे पूरा करने के लिए अन्य स्रोतों जैसे जानवरों, पेड़-पौधों से पानी सोखने लगता है। ऐसे में जिन स्थानों में वाष्प का दबाव कम होता है, वहां फसलों के लिए अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में उपज बनाए रखने के लिए किसानों पर सिंचाई का दबाव बढ़ जाता है। उनका मानना है कि जलवायु में आ रहे बदलावों के चलते वातावरण में शुष्कता और बढ़ जाएगी, जिसका असर फसलों की उत्पादकता और पैदावार पर पड़ेगा। 

कैसे करते हैं पेड़-पौधे सूखे का मुकाबला

विश्लेषण से पता चला है कि इस तरह के हालात में पौधे अपने बचाव के लिए अलग रणनीति को अपना लेते हैं। पेड़-पौधों की कई प्रजातियां जैसे गेहूं, मकई और यहां तक कि बर्च के पेड़ भी वातावरण में आ रही शुष्कता को महसूस कर लेते हैं, और भविष्य में सूखे की घटनाओं का अनुमान लगा पाने में सक्षम होते हैं। वो अपने आप को बचाए रखने के लिए छोटे होते जाते हैं। यहां तक की यदि सूखा न भी पड़े तो भी वो वातावरण में बढ़ती शुष्कता का मुकाबला इसी तरह करते हैं।

अपने बचाव की इस प्रक्रिया के चलते पौधे प्रकाश संश्लेषण और बीज उत्पन्न करने के लिए वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पाते हैं। नतीजन उत्पादकता घट जाती है। सदोक के अनुसार आज बढ़ती आबादी के लिए भोजन की उपलब्धता एक बड़ी समस्या है, जिसे हल करने के लिए इस बाधा को भी दूर करने की आवश्यकता पड़ेगी। उनके अनुसार वातावरण में बढ़ती शुष्कता के चलते उन क्षेत्रों में भी उपज घट जाएगी जहां मिट्टी नम है और सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद हैं।

इस शोध में राहत की बात यह सामने आई है कि अलग-अलग पौधे और उनकी प्रजातियां अपने विकास और जीन के आधार पर इस समस्या का अलग-अलग तरह से मुकाबला करती हैं। किसी में इनके प्रति प्रतिक्रिया ज्यादा तो किसी में कम होती है। उदाहरण के लिए गेंहू की कुछ किस्में इस तनाव के प्रति अन्य की तुलना में कम प्रतिक्रिया करती हैं। इसी तरह का व्यवहार वो पौधे भी करते हैं जिनकी खेती नहीं की जाती है।

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