जलवायु परिवर्तन से अंगूर की पैदावार पर पड़ रहा असर, अधर में दुनिया के 70 फीसदी वाइन उत्पादक क्षेत्रों का भविष्य

जलवायु परिवर्तन पहले ही अंगूर की बनावट, पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। वहीं आशंका है कि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि से आने वाले समय में वाइन उत्पादन का भूगोल पूरी तरह बदल जाएगा

By Lalit Maurya

On: Tuesday 02 April 2024
 
आशंका है कि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि से आने वाले समय में वाइन उत्पादन का भूगोल पूरी तरह बदल सकता है। फोटो: आईस्टॉक

वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि जिस तरह जलवायु में आते बदलावों से अंगूर की पैदावार पर असर पड़ रहा है, उससे आने वाले दशकों में वाइन उत्पादक क्षेत्रों पर गंभीर असर पड़ेगा। इससे वाइन उत्पादन में कमी आ सकती है। इस बारे में जर्नल नेचर रिव्यु अर्थ एंड एनवायरनमेंट में सामने आया है कि सदी के दौरान दुनिया में अंगूर उत्पादन के लिए उपयुक्त 70 फीसदी क्षेत्र बहुत अधिक गर्म हो जाएंगें। इसका असर अंगूर उत्पादन और वाइन की गुणवत्ता पर पड़ेगा।

रिसर्च से पता चला है कि वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ इसका सबसे ज्यादा खामियाजा दुनिया के 90 फीसदी पारंपरिक वाइन उत्पादक क्षेत्रों को उठाना पड़ेगा।  यह क्षेत्र यूरोप से दक्षिणी कैलिफोर्निया तक फैले हैं। इनमें स्पेन, इटली, ग्रीस और दक्षिणी कैलिफोर्निया के तटीय और तराई क्षेत्र भी शामिल हैं जो अपने वाइन उत्पादन के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।

वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है उसकी वजह से इन क्षेत्रों में अंगूर की पैदावार के लिए आवश्यक परिस्थितयां प्रतिकूल होती जा रही हैं। आशंका है कि बढ़ते तापमान की वजह से करीब 29 फीसदी क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली वाइन बनाने के लिए जलवायु बेहद चरम हो सकती है। वहीं 41 फीसदी क्षेत्रों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि अनुकूलन के उपाय कितनी अच्छी तरह से काम करेंगे।

अध्ययन से यह भी पता चला है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही अंगूर की संरचना, पैदावार और वाइन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। आशंका है कि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि से आने वाले समय में वाइन उत्पादन का भूगोल पूरी तरह बदल सकता है।

शोधकर्ताओं ने इसके लिए बढ़ते तापमान की वजह से पड़ते सूखे, गर्मी और लू की घटनाओं को जिम्मेवार माना है, जो लगातार बढ़ रहीं हैं। इसी तरह तापमान, बारिश, आर्द्रता, विकिरण और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर जैसे जलवायु कारक वाइन उत्पादन के लिए बेहद मायने रखते हैं और ये सभी जलवायु में आते बदलावों से प्रभावित हो रहे हैं।

रिसर्च के मुताबिक गर्म तापमान अंगूर के बढ़ने के चक्र को तेज कर देता है, जिससे इसके पकने की अवधि गर्मियों के गर्म हिस्से में चली जाती है। यही वजह है कि दुनिया के कई वाइन क्षेत्रों में, 40 साल पहले की तुलना में अब अंगूर की फसल दो से तीन सप्ताह पहले ही तैयार हो रही है। अंगूर की परिपक्वता में आया यह बदलाव वाइन की गुणवत्ता और उसके रंग-रूप को प्रभावित करते हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पिछले दो दशकों में प्रकाशित 250 से अधिक वैज्ञानिक प्रकाशनों का विश्लेषण किया है। इसके आधार पर उन्होंने मौजूदा और उभरते वाइन उत्पादक क्षेत्रों पर मंडराते जलवायु परिवर्तन के जोखिम और संभावित लाभों को रेखांकित करते हुए एक वैश्विक मानचित्र भी बनाया है।

उन्होंने इस बात का भी अध्ययन किया है कि तापमान, बारिश, आर्द्रता, विकिरण और कार्बन डाइऑक्साइड पर पड़ते प्रभाव वाइन उत्पादन को कैसे प्रभावित कर रहा है।

अध्ययन के मुताबिक आलू और टमाटर के बाद अंगूर दुनिया की तीसरी सबसे मूल्यवान बागवानी फसल है। इसकी 2016 में इसकी कुल कीमत 6,800 करोड़ डॉलर आंकी गई थी। आंकड़ों के अनुसार 2020 में वैश्विक स्तर पर करीब 74 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में आठ करोड़ टन अंगूर की पैदावार हुई थी। इसके करीब आधे (49 फीसदी) से वाइन और स्प्रिट बनाई जाती है।

वहीं 43 फीसदी अंगूर को ऐसे ही फल के रूप में खाया गया था, जबकि आठ फीसदी को सुखाकर किशमिश बनाया गया। यदि वाइन की कीमत की बात करें तो यह काफी हद तक उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है जो तीन से 1,000 डॉलर प्रति बोतल के बीच होती है।

किन क्षेत्रों में बढ़ेगा उत्पादन, किनको होगा नुकसान

वैश्विक स्तर पर देखें तो वाइन उत्पादक क्षेत्र मुख्य रूप से मध्य अक्षांशों में पाए जाते हैं, इनमें कैलिफोर्निया, दक्षिणी फ्रांस, उत्तरी स्पेन, इटली, ऑस्ट्रेलिया, स्टेलेनबोश (दक्षिण अफ्रीका), और मेंडोजा (अर्जेंटीना) शामिल हैं। इन क्षेत्रों में अंगूरों के पकने के लिए पर्याप्त गर्म जलवायु है, फिर भी वो बेहद गर्म नहीं है, यह क्षेत्र अपेक्षाकृत रूप से शुष्क हैं जो अंगूरों में बीमारी के जोखिम को कम करने में मदद करता है।

शोधकर्ताओं ने दक्षिणी कैलिफोर्निया, दक्षिणी भूमध्यसागरीय, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पर ध्यान केंद्रित करते हुए जानकारी दी है कि बढ़ते तापमान के प्रभाव पहले से ही गर्म क्षेत्रों में सबसे अधिक कर तुरंत महसूस किए जाएंगे।

रिसर्च के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक एक तरफ जहां जलवायु परिवर्तन का खामियाजा इन पारंपरिक वाइन क्षेत्रों को उठाना पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ बढ़ता तापमान अन्य उत्पादक क्षेत्रों जैसे वाशिंगटन, ओरेगन, तस्मानिया, उत्तरी जर्मनी, स्कैंडिनेविया और उत्तरी फ्रांस में बेहतर उत्पादन के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करेगा।

अनुमान है कि मौजूदा 11 से 25 फीसदी वाइन क्षेत्रों में बढ़ते तापमान के साथ उत्पादन में वृद्धि हो सकती है। साथ ही उच्च अक्षांशों और ऊंचाई पर अंगूर की पैदावार के लिए नए क्षेत्र उभर सकते हैं। इसकी वजह से दक्षिणी यूनाइटेड किंगडम जैसे नए वाइन क्षेत्र उभरेंगें। हालांकि यह क्षेत्र कितने उपयुक्त होंगें यह आने वाले बदलावों और तापमान में होती वृद्धि पर निर्भर करेगा।

अध्ययन के मुताबिक लू, भारी बारिश और संभावित ओलावृष्टि जैसी चरम मौसमी घटनाओं के साथ-साथ नए कीट और बीमारियां कुछ क्षेत्रों में अंगूर उत्पादन के लिए चुनौतियां पैदा कर रही हैं। हालांकि साथ ही बढ़ते तापमान के साथ कुछ अन्य क्षेत्रों में कीटों और बीमारियों का दबाव घट सकता है, जो पैदावार के लिए फायदेमंद साबित होगा।

ऐसे में शोध के मुताबिक मौजूदा वाइन उत्पादक अंगूर की किस्मों और रूटस्टॉक्स में बदलाव का सहारा ले सकते हैं। साथ ही प्रशिक्षण और तापमान बढ़ने पर अंगूर के उचित प्रबंधन की मदद से कुछ हद तक बढ़ते तापमान से निपट सकते हैं।

गौरतलब है कि अंगूर की किस्मों और उनके बढ़ने के तरीके को समायोजित करने से उच्च तापमान में इनके पकने की प्रक्रिया को एक निश्चित बिंदु तक धीमा किया जा सकता है। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी चेताया है कि यह अनुकूलन सभी क्षेत्रों में आर्थिक रूप से लाभदायक उत्पादन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त साबित नहीं होंगे।

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