बदलती जलवायु में नए क्षेत्रों को पलायन कर रहे जहरीले सांप, खतरे की जद से बाहर नहीं भारत

जलवायु परिवर्तन और इंसानी हस्तक्षेप जहरीले सांपों के आवासों को नुकसान पहुंचा रहा है, जिसकी वजह से वो नए क्षेत्रों की ओर रुख करने को मजबूर हो रहे हैं

By Lalit Maurya

On: Friday 10 May 2024
 
पश्चिम अफ्रीकी गैबून वाइपर जैसी कुछ प्रजातियों अपने आवास में 251 फीसदी तक की वृद्धि का अनुभव कर सकती हैं, वहीं कुछ बुश वाईपर प्रजातियां अपने आवास का 70 फीसदी हिस्सा खो देंगी; फोटो: आईस्टॉक

पलायन सिर्फ इंसान ही नहीं करते, धरती पर दूसरे कई ऐसे जीव हैं जो आज जलवायु परिवर्तन और बढ़ते इंसानी हस्तक्षेप की वजह से पलायन को मजबूर हैं। इनमें वो जहरीले सांप भी शामिल हैं, जिनसे इंसान भी डरता है। 

इनको लेकर की गई एक नई रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में होती वृद्धि की वजह से जहरीले सांप बेहतर ठिकानो की खोज में दूसरे देशों की ओर भी पलायन कर सकते हैं। अपनी सीमाओं से परे सामूहिक रूप से किया गया यह पलायन अपने साथ कई खतरे भी लेकर आएगा। कई देश ऐसे हैं जो इन नई प्रजातियों के लिए तैयार नहीं, ऐसे में वहां सांपों के काटने का जोखिम बढ़ सकता है। इन देशों में भारत भी शामिल है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जहरीले सांपों की 209 प्रजातियों का विश्लेषण किया है। यह वो प्रजातियां हैं, जो इंसानों के लिए खतरा पैदा करती रही हैं। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने सांपों की इन प्रजातियों के भौगोलिक वितरण का एक मॉडल भी तैयार किया है।

इस मॉडल की मदद से उन्होंने यह समझने का प्रयास किया है कि बढ़ते तापमान और बदलती जलवायु के साथ 2070 तक सांपों की यह प्रजातियां अनुकूल जलवायु परिवेश की खोज में किन क्षेत्रों को पलायन कर सकती हैं।

अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं, उनके मुताबिक अगले 46 वर्षों में विषैले सांपो की कई प्रजातियां अपने महत्वपूर्ण आवास क्षेत्रों को खो सकती हैं। वहीं दूसरी तरफ इंसानी जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली कुछ प्रजातियां अपने लिए नए उपयुक्त आवासों की खोज में सफल हो सकती हैं।

भारत, नेपाल, युगांडा, केन्या, बांग्लादेश और थाईलैंड जैसे देशों पर मंडरा रहा खतरा

अंदेशा है कि नाइजर, नामीबिया, चीन, नेपाल और म्यांमार जैसे देशों में आस-पास के देशों से पलायन करने वाले जहरीले सांपों की प्रजातियों में सबसे ज्यादा वृद्धि देखी जा सकती है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण सांपों के उपयुक्त आवासों में होते विस्तार के साथ-साथ गरीबी, बढ़ती आबादी जैसे सामाजिक आर्थिक कारकों की वजह से दक्षिण, दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में सांपों के काटने का खतरा बढ़ सकता है। जो विशेष रूप से भारत, युगांडा, केन्या, बांग्लादेश और थाईलैंड जैसे देशों को प्रभावित कर सकता है। नतीजन इन देशों में स्वास्थ्य स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी दबाव बढ़ सकता है।

ऐसे क्षेत्रों में जहां सांपों की नई प्रजातियां आश्रय लेंगी, वहां एंटीवेनम आसानी से उपलब्ध नहीं होंगें। साथ ही इनके आवासों में बदलाव से सांपों द्वारा जानवरों को काटे जाने की घटनाएं बढ़ सकती हैं जो सामाजिक-आर्थिक समस्याएं पैदा कर सकती है।

दूसरी तरफ 2070 तक दक्षिण अमेरिका और दक्षिणी अफ्रीका में जहरीले सांपो की प्रजातियों में सबसे अधिक गिरावट आने का अंदेशा है। इन क्षेत्रों में सांपों के आवास को भी महत्वपूर्ण नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। जो जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर वहां की जैवविविधता पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।

आशंका है कि जहां सांपों की अधिकांश विषैली प्रजातियां उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पारिस्थितिक तंत्र को होते नुकसान के कारण आपने आवास में गिरावट का अनुभव करेंगी। बता दें कि इन क्षेत्रों में जहरीले सांपों की जैवविवधता बेहद संपन्न है।

वहीं पश्चिम अफ्रीकी गैबून वाइपर जैसी कुछ प्रजातियों अपने आवास में 251 फीसदी तक की वृद्धि का अनुभव करेंगी। दक्षिण पश्चिम यूरोप में पाई जाने वाली विषैले सापों की प्रजाति विपेरा एस्पिस के आवास क्षेत्रों में 136 फीसदी जबकि सींग वाली वाइपर प्रजातियां 2070 तक अपनी सीमा में 118 फीसदी की वृद्धि का अनुभव कर सकती हैं।

हालांकि कुछ बुश वाईपर प्रजातियां जैसे एथरिस स्क्वैमिगेरा, रॉक वाईपर, फील्ड्स हॉर्नड वाइपर, अमेरिकी हॉग्नोज़्ड पिटवाइपर, बोथ्रोप्स ब्राजीली, प्रोटोबोथ्रोप्स एलिगेंस जैसी प्रजातियां अपने आवास क्षेत्रों का 70 फीसदी से अधिक हिस्सा खो सकती हैं।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जिन क्षेत्रों में गहन कृषि और पशुधन पर निर्भरता ज्यादा है साथ ही जो देश आर्थिक रूप से कमजोर है, वहां 2070 तक सांपों की विविधता में वृद्धि हो सकती है। इस दौरान जो देश सांप प्रजतियों की विविधता में वृद्धि का अनुभव करेंगे उनमें विशेष रूप से बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, युगांडा और केन्या शामिल हैं।

इसी तरह बांग्लादेश, भारत, थाईलैंड, युगांडा, केन्या, लाइबेरिया, कैमरून, यूक्रेन और लिथुआनिया जैसे देशों के कृषि क्षेत्रों में और अधिक सांप प्रजातियां सामने आ सकती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक जिस तरह कृषि के लिए सांपों के प्राकृतिक आवासों को खंडित किया जा रहा है, उसकी वजह से भी पहले से कहीं ज्यादा प्रजातियां सामने आ सकती हैं।

हालांकि साथ ही सांपों की कुछ प्रजातियां अपने आप को कृषि क्षेत्रों के अनुकूल ढाल सकती हैं। ऐसा विशेष रूप से उन क्षेत्रों में देखने को मिल सकता है, जहां इन जीवों के लिए चूहे जैसे आहार उपलब्ध हैं।

सांपों के काटने से हर साल हो रही 138,000 मौतें

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इनके खतरे को उजागर करते हुए लिखा है कि दुनिया भर में हर साल सांपों के काटे जाने के 54 लाख तक मामले सामने आते हैं। इनमें से 27 लाख मामलों में चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है, जबकि स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं की वजह से 138,000 लोगों की मौत हो जाती है। वहीं चार लाख लोग अंग-भंग और स्थाई तौर पर विकलांगता का शिकार हो जाते हैं।

स्वास्थ्य संगठन का यह भी कहना है कि इसका सबसे जोखिम कृषि, पशुपालन, मछली पकड़ने और शिकार में लगे लोगों को होता है। साथ ही उन क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य-देखभाल तक पहुंच सीमित है वहां भी जोखिम कहीं ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक जहां युवा इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं वहीं बच्चों में मृत्यु का खतरा अधिक होता है।

ऐसे में इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो वैज्ञानिक अनुसंधान और संरक्षण नीतियों को बढ़ावा देने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं, विशेष रूप से उन देशों में जो सांपों की प्रजातियों में महत्वपूर्ण गिरावट का सामना कर रहे हैं।

हमें समझना होगा कि देशों की सीमाएं इंसानों के लिए है सांपों के लिए नहीं ऐसे में सीमा पार सांपों के बदलते आवासों और उनसे पैदा होते खतरों से निपटने के लिए देशों, क्षेत्रीय स्वास्थ्य अधिकारियों और वैश्विक समुदाय के बीच सहयोग बेहद जरूरी है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि कमजोर देश जो पहले ही जलवायु में आते बदलावों से जूझ रहे हैं वो नए खतरों का सामना प्रभावी तरीके से कर सकें।

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