जलवायु संकट: भारत में बढ़ते तापमान के साथ महिलाओं के खिलाफ 23.5 फीसदी बढ़ सकते हैं घरेलू हिंसा के मामले

रिसर्च के अनुसार औसत तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ भारत में घरलू हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस) के मामलों में 6.23 फीसदी की वृद्धि होने का अंदेशा है

By Lalit Maurya

On: Thursday 13 July 2023
 
बढ़ते तापमान के चलते भारत में बढ़ते घरेलू हिंसा के मामले; फोटो: आईस्टॉक

जलवायु में आता बदलाव अनगिनत तरीकों से जीवन को प्रभावित कर रहा है। इसमें एक और नई कड़ी जुड़ गई है।

एक नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान के चलते 2090 तक भारत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले 23.5 फीसदी बढ़ जाएंगे।  इसका मतलब है कि जलवायु में आते बदलावों और बढ़ते तापमान का असर अब निजी जीवन में भी जहर घोल रहा है। साथ ही इससे आपसी संबंधों में भी खटास आ रही है।

अनुमान है कि सदी के अंत तक बढ़ते तापमान के साथ जहां शारीरिक हिंसा के मामलों में 29.8 फीसदी वृद्धि हो सकती है। वहीं साथ ही इसकी वजह से यौन हिंसा के मामलों में 27.2 फीसदी वृद्धि होने का अंदेशा है।

इस रिसर्च के नतीजे जर्नल जामा साइकिएट्री में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन के अनुसार तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ भारत में पारिवारिक कलह के चलते शारीरिक हिंसा के मामलों में 8.06 फीसदी और यौन हिंसा के मामलों में 7.3 फीसदी और मानसिक प्रताड़ना के मामलों में 2.53 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। इसी तरह औसत तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ भारत में घरलू हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस) के मामलों में 6.23 फीसदी की वृद्धि होने का अंदेशा है

गौरतलब है कि भारत में बढ़ते तापमान का असर पहले ही गंभीर रूप से सामने आ रहा है। जो बड़े पैमाने पर अलग-अलग रूपों में लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) पहले ही इस बात की आशंका जता चुका है कि 2023 से 2027 के बीच पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में होती वृद्धि रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाएगी। साथ ही इस बात की करीब 66 फीसदी आशंका है कि इन पांच वर्षों के दौरान वैश्विक तापमान में होती बढ़ोतरी 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी।

रिसर्च के मुताबिक ऐसा नहीं है कि घरेलू हिंसा के मामलों में होने वाली यह वृद्धि केवल भारत में ही देखने को मिलेगी, बढ़ते तापमान के साथ पाकिस्तान और नेपाल में भी इसके प्रसार में वृद्धि होने का अंदेशा है। आंकड़ों के अनुसार सदी के अंत तक जहां नेपाल में इससे जुड़े मामलों में 14.8 फीसदी की वृद्धि हो सकती है, वहीं पाकिस्तान में भी घरेलू हिंसा के मामलों में 5.9 फीसदी की बढ़ोतरी होने की आशंका है।

अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 30 फीसदी महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन के दौरान शारीरिक या यौन हिंसा, या फिर दोनों का शिकार बनती हैं। यह समस्या निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में कहीं ज्यादा गंभीर है।

गौरतलब है कि यह रिसर्च तीन दक्षिण एशियाई देशों भारत, पाकिस्तान और नेपाल में 15 से 49 वर्ष की आयु की 194,871 महिलाओं पर किए अध्ययन पर आधारित है। इससे जुड़ा एक सर्वे अक्टूबर, 2010 से अप्रैल, 2018 के बीच किया गया था, जिसमें लोगों ने स्वयं ही इस बारे में जानकारी साझा की थी। वहीं महिलाओं पर घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों से जुड़ा यह विश्लेषण दो जनवरी, 2022 से 11 जुलाई, 2022 के बीच किया गया था।

शोधकर्ताओं ने अपने इस अध्ययन में बड़े पैमाने पर जलवायु में आने वाले बदलावों के आधार पर 2090 तक घरेलू हिंसा के मामलों पर पड़ने वाले प्रभावों का आंकलन किया है। इसमें महिलाओं के खिलाफ शारीरिक और यौन हिंसा के साथ-साथ मानसिक प्रताड़ना पर भी गौर किया गया था।

अध्ययन के अनुसार इन तीन दक्षिण एशियाई देशों में घरेलू हिंसा का प्रसार 27 फीसदी दर्ज किया गया है। इनमें सबसे ज्यादा शारीरिक हिंसा के मामले 23 फीसदी, मानसिक प्रताड़ना 12.5 फीसदी, जबकि यौन हिंसा का प्रसार साढ़े नौ फीसदी दर्ज किया गया। गौरतलब है कि इस दौरान वार्षिक औसत तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच दर्ज किया गया।

एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 4.5 फीसदी बढ़ जाएंगे, घरेलू हिंसा के मामले

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि औसत तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ दक्षिण एशिया में घरलू हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस) के मामलों में 4.49 फीसदी की वृद्धि होने का अंदेशा है।

वहीं तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि के साथ शारीरिक हिंसा के मामलों में 6.55 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। वहीं साथ ही इसकी वजह से यौन हिंसा के मामलों में 6.21 फीसदी और मानसिक प्रताड़ना से जुड़े मामलों में 1.39 फीसदी की वृद्धि होने का अंदेशा है। इसी तरह सदी के अंत तक इन तीनों देशों में पारिवारिक हिंसा के मामलों में 21 की वृद्धि हो सकती है। अनुमान है इसका सबसे ज्यादा असर भारतीय महिलाओं पर पड़ेगा।

यह गणना आईपीसीसी के एसएसपी5 8.5 जलवायु परिदृश्य पर आधारित हैं। वहीं एसएसपी2 - 4.5 परिदृश्य में इसमें 9.8 फीसदी, जबकि एसएसपी1 के तहत केवल मामूली 5.8 फीसदी की वृद्धि होने का अंदेशा है।

इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि बढ़ते तापमान के चलते जहां सदी के अंत तक महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा के मामलों में 28.3 फीसदी की वृद्धि हो सकती हैं। वहीं इसके कारण यौन हिंसा के मामलों में 26.1 फीसदी और मानसिक प्रताड़ना  के मामलों में 8.9 फीसदी की वृद्धि होने की अंदेशा है।

देखा जाए तो यह अध्ययन स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि बढ़ते तापमान के साथ महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगे। हालांकि पिछले शोधों में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि बढ़ता तापमान लोगों को कहीं ज्यादा उग्र बना रहा है और इससे आपसी कलह बढ़ सकती है।

शोधों में जलवायु से जुड़े कारकों जैसे गर्मी, बढ़ते तापमान को हिंसा में वृद्धि के लिए जिम्मेवार माना है। उच्च तापमान के चलते जैविक और मनोवैज्ञानिक कारकों के कारण आक्रामकता बढ़ सकती है। इससे क्रोध की भावना पैदा होती है। सतह ही लोगों में कहीं ज्यादा आक्रामक विचार, क्रोध, और शारीरिक उत्तेजना पैदा हो सकती है। साथ ही इसके अतिरिक्त दैनिक गतिविधियों में में बदलाव के चलते सामाजिक टकराव या हिंसा से जुड़ी परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र भी इस बात की पुष्टि कर चुका है कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में आती गिरावट के चलते दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा के मामले और उनका जोखिम बढ़ रहा है। इस बारे में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा के मामलों से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत रीम अलसलेम का कहना है कि जलवायु परिवर्तन ने केवल लैंगिक असमानताओं को बढ़ा रहा है साथ ही महिलाओं और बच्चियों के लिए नई चुनौतियां भी पैदा कर रहा है। उनका आगे कहना है कि जलवायु में आता बदलाव न केवल पारिस्थितिकी से जुड़ा संकट है बल्कि यह मूल रूप से मूल रूप से न्याय, समृद्धि और लैंगिक समानता का प्रश्न है।

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