कॉप28 में डाउन टू अर्थ: अनुकूलन कोष में पर्याप्त धनराशि नहीं मिलने से निराश हैं ओलिकानेन

जलवायु अनुकूलन कोष के प्रमुख मिक्को ओलिकानेन से डाउन टू अर्थ की खास बातचीत

By Jayanta Basu

On: Thursday 07 December 2023
 
Mikko Ollikainen. Photo: @OllikainenAF / X

गरीब व जरूरतमंद देशों को जलवायु के अनुकूल खुद को ढालने के लिए बनाए गए अनुकूलन कोष यानी एडप्टेशन फंड में अब तक आधी ही राशि जमा हो पाई है।

दुबई में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कॉप 28 के छह दिन बीत चुके हैं, लेकिन अब तक देशों ने इस कोष में केवल 165 मिलियन डॉलर देने का वादा किया है, जबकि मार्च में किए गए एक आकलन के मुताबिक अनूकूलन कोष बोर्ड को कम से कम 300 मिलियन डॉलर की जरूरत है।

अनुकूलन कोष के प्रमुख मिक्को ओलिकानेन ने यह जानकारी डाउन टू अर्थ के साथ विशेष बातचीत के दौरान दी।

उन्होंने यह भी आशंका जताई कि कई देश अनुकूलन कोष का प्रयोग हाल ही में गठित हानि एवं क्षति कोष (लॉस एंड डैमेज फंड) के लिए कर सकता है और अगर ऐसा होता है तो यह काफी नुकसानदेह और चिंताजनक साबित होगा।

इससे पहले कॉप28 में ही विकासशील देशों ने कहा था कि अनुकूलन कोष को दोगुना करने के प्रयास विफल रहे हैं और यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) की स्थायी समिति इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं कर पा रही है।

गौरतलब है कि ग्लासगो में आयोजित कॉप26 में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि विकासशील देशों के जलवायु अनुकूलन कोष को 2019 के मुकाबले 2025 तक दोगुना किया जाएगा।

अपर्याप्त धनराशि

मिक्को ओलिकानेन ने कहा कि अब तक जो धनराशि देने का वादा किया गया है, वो उत्साहजनक नहीं है, लेकिन उम्मीद है कि अगला सप्ताह कुछ अच्छा होगा।

हालांकि उन्होंने माना कि गरीब व कमजोर देशों की जरूरतों को देखते हुए 300 मिलियन डॉलर की राशि भी काफी नहीं है और यह निचले स्तर पर किया गया एक 'समझौता' था।

संयोग से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की हाल ही में प्रकाशित अनुकूलन अंतर रिपोर्ट में बताया गया है कि अनुकूलन वित्त अंतर अब प्रति वर्ष 194 बिलियन डॉलर और 366 बिलियन डॉलर के बीच है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा हालात में जलवायु अनुकूलन के लिए 10 से 18 गुना अधिक धन की आवश्यकता है।

कोष का हस्तांतरण
जब डाउन टू अर्थ रिपोर्टर ने उन्हें बताया कि कुछ विकासशील देशों और नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया है कि अनुकूलन वित्त का कुछ हिस्सा नए हानि और क्षति कोष में स्थानांतरित किया जा रहा है, तो ओलिकानेन असहमत नहीं हुए।

ओलिकानेन ने कहा कि उन्हें भी कुछ देशों से इस बारे में पता चला है। हालांकि वह देशों का नाम नहीं ले सकता है। अगर ऐसा हो रहा है तो यह ठीक नहीं है।

2015 में हुए पेरिस समझौते में अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (जीजीए) की अवधारणा पेश की गई थी, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस (डिग्री सेल्सियस) तक सीमित करना है। जीजीए, वैश्विक शमन लक्ष्य (ग्लोबल मिटिगेशन टारगेट) के समानांतर है।

कॉप28 में बेशक अब तक अनुकूलन कोष और हानि एवं क्षति कोष को लेकर कुछ निर्णय लिए जा चुके हैं, लेकिन जीजीए में अब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है।

ओलिकानेन ने कहा, “हमें यह ध्यान रखना होगा कि अनुकूलन और हानि और क्षति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और यदि अनुकूलन विफल हो जाता है, तो हानि और क्षति और भी बदतर हो जाएगी।”

उन्होंने याद दिलाया कि अनुकूलन कोष बोर्ड के अधिकारियों ने दोनों के बीच संबंध को मजबूत करने के लिए हानि और क्षति ट्रांजिशनल कमेटी की बैठकों में भाग लिया।

विश्व बैंक को पहले चार वर्षों में हानि और क्षति कोष के समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ओलिकानेन ने कहा, ''उन्हें जो भी मदद की जरूरत होगी, हम पूरी तरह से तत्पर रहेंगे।''

विरोध कर रहे हैं देश
कुछ विकासशील देशों ने पिछले सप्ताह अनौपचारिक विचार-विमर्श में विरोध जताया कि अब तक जलवायु वित्त को दोगुना करने का निर्णय नहीं लिया गया है। अनुकूलन गैप रिपोर्ट का हवाला देते हुए कई लोगों ने कहा कि यह भी पर्याप्त नहीं है।

अफ़्रीकी देशों के समूह ने सुझाव दिया कि वित्त लक्ष्यों दोगुना किया जाना चाहिए। ब्राजील ने 'जी 77 और चीन' समूह की ओर से शमन और अनुकूलन वित्त के बीच संतुलन की कमी के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की और अनुकूलन अंतर रिपोर्ट के आंकड़ों को "चिंताजनक" बताया। विकासशील देशों ने यह भी बताया कि वित्त के लिए निजी क्षेत्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

विकसित देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया, हालांकि यूरोपीय संघ (ईयू) ने स्वीकार किया कि डेवलपमेंट बैंक अब तक अनुकूलन के लिए अपेक्षित पैसा जुटाने में विफल रहे हैं।

बांग्लादेश के जलवायु दूत सबर हुसैन चौधरी ने इस संवाददाता को बताया कि "अनुकूलन सहित सभी क्षेत्रों में कोष समर्थन अपर्याप्त है।" बांग्लादेश अपनी अनुकूलन प्रक्रिया के लिए जाना जाता है।

उन्होंने कहा, “कोष की गणना को तापमान वृद्धि के साथ बेंचमार्क करने की आवश्यकता है। ये सभी गणनाएं पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस या उससे कम तापमान वृद्धि को ध्यान में रखकर की गई हैं। लेकिन यह साफ हो चुका है कि उस सीमा का उल्लंघन होगा और अब 2.5 से 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की चर्चा है। ऐसी स्थिति में जलवायु वित्त में कहीं अधिक धन की आवश्यकता होगी।

उन्होंने याद दिलाया कि जहां आईपीसीसी की रिपोर्ट में तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के आसपास सीमित करने के लिए 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में लगभग 43 प्रतिशत की कटौती का आह्वान किया गया है, लेकिन अब जितने भी एनडीसी यानी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) किए गए हैं, उनसे केवल 5 फीसदी ही उत्सर्जन में कटौती हो सकती है।

Subscribe to our daily hindi newsletter