डीटीई एक्सक्लूसिव ब्लॉग : काॅप-26 जलवायु सम्मेलन में भारत की सफलताएं

हाल ही में ग्लासगो में सम्पन्न हुआ संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क (यूएनएफसीसीसी) के पार्टियों के सम्मेलन (कॉप26) का 26वां सत्र भारत के दृष्टिकोण से सफल रहा।  

By Bhupender Yadav

On: Sunday 21 November 2021
 
US Special Presidential Envoy for Climate John Kerry along with Union Environment Minister Bhupender Yadav. The United States has joined the International Solar Alliance as a member country announced at the UNFCCC CoP26. Photo: @isolaralliance / Twitter

भारत विश्व मंच पर जलवायु परिवर्तन से निबटने में अपनी बातों को कार्रवाई में तब्दील करने वाले वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा, विकासशील दुनिया की चिंताओं को व्यक्त किया और विचारों को काफी संक्षिप्त और स्पष्ट रूप से रखा। भारत ने विश्व मंच पर एक रचनात्मक बहस और न्यायसंगत व न्यायपूर्ण समाधान का रास्ता पेश किया।

जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने, विकासशील दुनिया की चिंताओं को व्यक्त करने और पर्यावरण की दृष्टि से चिर-स्थायी दुनिया के निर्माण में बदलाव लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय पहलों का नेतृत्व करने में भारत विश्व मंच पर एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा।

ग्लास्गो में आयोजित काॅप-26 में राष्ट्रीय वक्तव्य देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया को याद दिलाया कि दुनिया की कुल आबादी का 17 फीसद होने के बावजूद कुल उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी केवल 5 प्रतिशत है। काॅप- 26 के मंच से प्रधानमंत्री ने पंचामृत को को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की:

 

*साल 2030 तक भारत गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 500 गीगावाट पर लाएगा।

 

*साल 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी में 45 प्रतिशत की कमी लाएगा। और पांचवा- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा

 

*भारत साल 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा जरूरत अक्षय ऊर्जा स्रोतों से पूरी करेगा।

 

*साल 2030 तक भारत कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी करेगा।

 

* साल 2070 तक भारत नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

 

भारत ने अपनी तरफ से उठाये जा रहे कदमों का जिक्र करते हुए ग्लोबल नाॅर्थ यानी औद्योगीकृत देशों को उनकी अधूरी प्रतिबद्धताओं की भी याद दिलाई। उन्होंने दुनिया से कहा कि हम सभी जलवायु कार्रवाई पर अपनी महात्वाकांक्षाएं बढ़ा रहे हैं, तो ऐसे में दुनिया का जलवायु वित्त पेरिस समझौते के वक्त जितना था, उतना ही अब भी नहीं रह सकता है। सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा, "भारत, विकसित देशों से 1 ट्रिलियन डॉलर का जलवायु वित्त जल्द से जल्द देने की उम्मीद करता है।"

 पीएम मोदी ने इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर रिसाइलेंट आईलैंड स्टेट्स (आईआरआईएस) को लांच किया, जो स्माॅल आईलैंड डेवलपिंग स्टेट्स (एसआईडीएस) में लचीला, टिकाऊ और समावेशी बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण के माध्यम से सतत विकास हासिल करने के लिए काम करेगा।

भारत की तरफ़ से शुरू किए गए इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आईएसए) को बड़ा बढ़ावा तब मिला, जब अमेरिका के जलवायु पर विशेष राष्ट्रपति के दूत जॉन केरी ने यूएनएफसीसीसी काॅप-26 में ये ऐलान किया कि अमेरिका एक सदस्य देश के रूप में आईएसए में शामिल हो गया है। इस प्रकार आईएसए की सदस्यता अब बढ़कर 101 हो गई है।

सौर हरित ऊर्जा पहल के तहत भारत ने यूके के साथ 'एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड' (जीजीआई-ओएसओडब्ल्यूओजी) लांच किया। जीजीआई-ओएसओडब्ल्यूओजी सीमा पार रिनिवल एनर्जी ट्रांसफर प्रोजेक्ट्स को सुविधाजनक बनाने में मदद करने के लिए तकनीकी, वित्तीय और अनुसंधान सहयोग लाएगा, जो ओएसओडब्ल्यूओजी को अपना वैश्विक बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराएगा।

काॅप-26 दुनिया को जलवायु संकट को लेकर आगाह करते हुए '1.5 डिग्री के लक्ष्य को जीवित रखने' के लिए सभी से प्रतिबद्धता लेने तथा शताब्दी के मध्य तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को नेट- जीरो तक लाने के लिए कार्रवाइयों में तेजी लाने में सफल रहा।

पहली बार, जलवायु वित्त लाने के वादे को पूरा करने में विकसित देशों की विफलताओं के लिए विकासशील देश 'भारी अफसोस के साथ कहना' जैसी भाषा के इस्तेमाल में सफल रहे।  काॅप-26 के दौरान भारत ने जलवायु वित्त को लेकर मजबूत हस्तक्षेप किया, जिसमें लिखित निवेदन और विकासशील देशों का समर्थन हासिल करना शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप ही काॅप ने वित्त की स्थाई समिति को जलवायु वित्त की परिभाषाओं पर काम करने के लिए अनिवार्य किया है, ताकि जलवायु वित्त से जुड़ी व्यापक संख्याओं का हल निकाला जा सके।

पेरिस समझौते के अंतर्गत हमें एक नया सामूहिक भौतिक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) चाहिए। एनसीक्यूजी पर काम करने के लिए एक कार्यक्रम के जरिए एक ढांचागत प्रक्रिया लांच की गई है, जो 2024 तक पूरी हो जाएगी। इस कार्यक्रम में विकासशील देशों की जरूरतों पर विचार किया जाएगा, पार्टीज व विशेषज्ञों से निवेदन मांगा जाएगा, तकनीकी काम लिया जाएगा और इसके बाद अनुशंसा की जाएगी। ये विकसित देशों को ये सोचने पर विवश करने की दिशा में एक बड़ा कदम है कि साल 2025 तक एनसीक्यूची चाहिए और ये लक्ष्य काॅप के अंतर्गत ढांचागत प्रक्रिया के तहत आना चाहिए।

भारत और दूसरे विकासशील देश दीर्घकालिक वित्त के एजेंडे को साल 2027 तक जीवित रखने में भी सफल रहे जबकि विकसित देश इसे खत्म करना ‌चाहते थे। भारत पारदर्शिता ढांचे के समर्थन में था, मगर इस बात पर अडिग रहा कि बढ़ी हुई रिपोर्टिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए सुनिश्चित और पर्याप्त जलवायु वित्त प्रावधान होना चाहिए।

विकासशील देशों को इनहैंस्ड ट्रांसपैरेंसी फ्रेमवर्क (ईटीएफ) के लिए ग्लोबल एनवायरमेंट फैसिलिटी (जीईएफ) से सहयोग लेने को लेकर भारत ड्राफ्ट में अपनी बात शामिल करवाने में सफल रहा। बाजारों के मामले में अनुच्छेद 6 का हल आखिरकार एक संतुलित तरीके से हुआ जो विकासशील देशों की चिंताओं पर विचार करता है। पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6 एनडीसी हासिल करने के लिए मार्केट और गैर-मार्केट एप्रोच देता है।

ग्लास्गो सम्मेलन में अंततः दीर्घ लंबित अनुच्छेद 6 रूलबुक को स्वीकार किया गया। हालांकि बातचीत में हमेशा समझौते होते हैं, लेकिन भारत दूसरे विकासशील देशों के साथ मिलकर विकसित देशों को साल 2020 के पूर्व की परियोजनाओं/ गतिविधियों और क्योटो प्रोटोकॉल के तहत क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म की इकाइयों के ट्रांजिशन के लिए राजी करने में सफल रहा। हम अपने निजी सेक्टर की मदद करने के लिए अपनी स्थिति पर डटे हुए थे, जो उत्सर्जन कम करने के लिए निवेश कर चुके हैं और क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म के तहत सर्टिफाइड एमिशन रेडक्शन निकलवा लिया है तथा ये सुनिश्चित किया कि यूएनएफसीसीसी की प्रक्रियाओं में निजी सेक्टरों का भरोसा खत्म न हो जाए।

अनुच्छेद 6 के तहत बाजार तंत्र, भारत में निजी और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के निवेश लाने में अहम भूमिका निभाएंगे और अनुकूलन व न्यूनीकरण के लक्ष्यों को हासिल करने में हमारी मदद करेंगे। अधिकांश देशों ने एनडीसी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस तरह के बाजारों की उपयोगिता का जिक्र किया है।

अनुच्छेद 6.2 के तहत, भारत ने एनडीसी के बाहर इकाइयों के एकाउंटिंग के लिए शर्तें निर्धारित की हैं। देश के अंदर और बाहरी देश के एनडीसी को परिभाषित करने में लचीलेपन के लिए हमारे आह्वान को स्वीकार कर लिया गया था, और परियोजनाओं के प्राधिकरण के आधार पर संबंधित समायोजन हमें मदद करता है, क्योंकि यह हमें यूनिट्स की गुणवत्ता बरकरार रखते हुए अतिरिक्त लचीलापन देता है। एकाउंटिंग की नेशनली डेटरमाइंड प्रकृति बनी हुई है और यह भारत के लिए एक सकारात्मक परिणाम है।

इसके अलावा, वैश्विक उत्सर्जन में कमी लाने के लिए देशों को अनुकूलन के लिए संसाधनों का योगदान करने और इंटरनेशनली ट्रांसफर्ड मिटिगेशन आउटकम्स को रद्द करने के लिए दृढ़ता से प्रोत्साहित किया जाता है। इन उपायों से वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में कमी लाने में मदद मिलेगी।

अनुच्छेद 6.4 में हम सीडीएम प्रोजेक्ट्स, गतिविधियां और यूनिट्स के ट्रांजिशन को सुरक्षित करने में समर्थ रहे। इसके अलावा हमने टाॅप डाउन मार्केट् को समान लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और हिस्सेदारी के सिद्धांतों के साथ रखने के लिए भी मजबूती से बातचीत की।

अनुच्छेद 6.8 के तहत, नाॅन-मार्केट अप्रोच के लिए कार्यक्रम अपनाने से विकासशील देशों को अन्य बातों के साथ-साथ न्यूनीकरण, अनुकूलन, वित्त, प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण व क्षमता निर्माण के संबंध में मदद मिलेगी। अनुच्छेद 6, पेरिस समझौते के अंतर्गत तैयार होने वाले नये कार्बन मार्केट में निजी क्षेत्र की भागीदारी का रास्ता बनाता है।

अनुकूलन को लेकर वैश्विक लक्ष्य के लिए दो वर्षीय कार्यक्रम लांच किया गया है, जिसकी विकासशील देशों में भारी मांग थी। प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग का दृष्टिकोण अकेले हमारी दुनिया को बचा सकता है। आरोपों-प्रत्यारोपों का वक्त बहुत पहले खत्म हो चुका है। और इसलिए भारत ने धरती को बचाने के लिए दूसरे देशों से कार्रवाई की मांग करने से पहले ही अपनी प्रतिबद्धताएं बढ़ा दी हैं।

कुल मिलाकर, काॅप-26 के परिणाम सकारात्मक रहे। वायुमंडलीय उष्णता को 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य हासिल हो सके, इसके लिए समझौते के तहत सभी देश अगले साल काइरो में मुलाकात कर कर्बन उत्सर्जन में और कटौती करने के लिए विमर्श करने पर राजी हुए। स्थाई और निष्पक्ष समाधान के लिए भारत, दुनिया के साथ मिलकर काम करने उम्मीद करता है। 

 

(लेखक केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन; और श्रम व रोजगार मंत्री हैं। उनकी किताब द राइज ऑफ बीजेपी का लोकार्पण जनवरी में होगा।)

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