तबाही की राह पर दुनिया: जलवायु से जुड़े चार प्रमुख संकेतकों ने 2021 में तोड़ा रिकॉर्ड

ग्रीनहाउस गैस, समुद्र के जल स्तर और गर्मी में होती वृद्धि के साथ महासागरों में बढ़ता अम्लीकरण रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है

By Akshit Sangomla

On: Thursday 19 May 2022
 
The heatwave on the Pacific coast of North America was cited by the WMO in its report.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा 18 मई, 2022 को जारी एक नई रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि दुनिया जलवायु से जुड़ी आपदा की ओर तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि 2021 में जलवायु से जुड़े चार प्रमुख संकेतक नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए थे। पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) की मात्रा, समुद्र के स्तर में होती वृद्धि, समुद्र में बढ़ती गर्मी और अम्लीकरण इतिहास में सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गए थे।

गौरतलब है कि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से इन संकेतकों पर वैज्ञानिक लगातार नजर बनाए हुए हैं। डब्ल्यूएमओ द्वारा जारी इस रिपोर्ट “2021 स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट” ने इसके लिए तेजी से बढ़ते ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को जिम्मेवार माना है।

इस बारे में डब्ल्यूएमओ ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "यह इस बात का एक और स्पष्ट संकेत है कि वैश्विक स्तर पर मानव गतिविधियां भूमि, समुद्र और वातावरण में बड़े पैमाने पर परिवर्तन कर रही हैं, जो सतत विकास और पारिस्थितिक तंत्रों के लिए हानिकारक है।" विज्ञप्ति के अनुसार इन बदलावों का असर लम्बे समय तक झेलना होगा। 

रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि 2021 इतिहास के सात सबसे गर्म वर्षों में से एक था। 2021 में वैश्विक औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले के स्तर से करीब 1.11 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था। यहां तापमान में होती वृद्धि की गणना 1850 से 1900 के बीच के औसत तापमान के आधार पर की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2021 के शुरुआत और अंत में ला नीना के सक्रिय होने के बावजूद तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई है। गौरतलब है कि ला नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो दक्षिणी दोलन का सामान्य से ठंडा चरण है, जो आम तौर पर वैश्विक तापमान में अस्थायी कमी का कारण बनता है।

इसी तरह विशिष्ट स्थानों से लिए गए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन सम्बन्धी आंकड़ों से संकेत मिलता है कि जीएचजी के स्तर में 2021 और 2022 की शुरूआती चरण में वृद्धि थी। हवाई में मोना लोवा ऑब्जर्वेटरी द्वारा रिकॉर्ड किए कार्बन डाइऑक्साइड के आंकड़ों से पता चला है कि अप्रैल 2020 में इसका स्तर 416.45 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम), अप्रैल 2021 में 419.05 पीपीएम, वहीं अप्रैल 2022 में 420.23 पीपीएम तक पहुंच गया था।

देखा जाए तो वैश्विक तापमान में होती वृद्धि से पैदा होने वाली अतिरिक्त गर्मी का लगभग 90 फीसदी हिस्सा महासागरों द्वारा सोख लिया जाता है। महासागरों के ऊपरी 2,000 मीटर पर जहां अधिकांश समुद्री प्रजातियां पनपती हैं, वहां भी 2021 के दौरान गर्मी उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।

इतना ही नहीं डब्लूएमओ के अनुसार, 2021 में दुनिया के अधिकांश महासागरों ने कम से कम एक बार भीषण हीटवेव का सामना किया था। रिपोर्ट ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में महासागर ऐसे ही गर्म होते रहेंगे इससे उनके इकोसिस्टम में जो बदलाव आएगा, वो सैकड़ों हजारों वर्षों में भी नहीं बदला जा सकेगा। 

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि महासागरीय अम्लीकरण, जो महासागरों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के कारण होता है, वो समुद्री जल की रासायनिक संरचना को बदल देता है। जैसे-जैसे अम्लीकरण बढ़ता है, महासागरों की सीओ2 अवशोषित करने की क्षमता भी घटती जाती है।

वहीं डब्लूएमओ ने इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के हवाले से बताया है कि खुले समुद्र में सतह का पीएच स्तर जोकि अम्लता का एक माप है वो 26,000 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। इसके साथ ही इसमें अभूतपूर्व दर से बदलाव आ रहा है। देखा जाए तो समुद्र में बढ़ती गर्मी और अम्लीकरण दोनों का वहां की जैव विविधता पर बड़ा प्रभाव पड़ता है, जिससे उनके भोजन, प्रजनन और प्रवासन व्यवहार में बदलाव आने लगता है।

यदि बढ़ते जलस्तर को देखें तो वो भी 2021 में शिखर पर पहुंच गया था। अनुमान है कि 2013 से 2021 के बीच यह हर साल 4.5 मिलीमीटर की दर से बढ़ रहा है।  यह दर 1993 से 2002 के बीच होने वाली वृद्धि की दर से लगभग दोगुनी है।

डब्ल्यूएमओ का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण तेजी से पिघलती बर्फ की चादरें हैं। इसकी वजह से समुद्र तल से पांच मीटर से कम ऊंचाई पर रहने वाले करीब 20 करोड़ लोगों पर बाढ़ का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इसके साथ ही बढ़ते जलस्तर के साथ लोगों पर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का खतरा भी बढ़ रहा है। डब्ल्यूएमओ ने 2021 में आई विभिन्न चरम मौसमी घटनाओं पर भी इस रिपोर्ट में प्रकाश डाला है और उन्हें “जलवायु परिवर्तन का हर दिन बदलता चेहरा” कहा है।

ऐसी ही कुछ घटनाओं के उदाहरण निम्न हैं:

  • उत्तरी अमेरिका के प्रशांत तट पर जुलाई की गर्मी ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए थे जिसकी वजह से सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी।
  • चीन के हेनान प्रांत में आई बाढ़ से करीब 1770 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ था।
  • हॉर्न ऑफ अफ्रीका में सूखे की स्थिति पिछले 40 वर्षों में सबसे ज्यादा खराब है।
  • तूफान 'इडा' ने अमेरिका के पूर्वी तट को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था, जिससे 7500 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ था। 

इस बारे में डब्लूएमओ के महासचिव पेटेरी तालस का कहना है कि, “मौसम की इन चरम घटनाओं का हमारे दैनिक जीवन पर तत्काल प्रभाव पड़ता है। आपदा की तैयारी में वर्षों के निवेश की वजह से हम लोगों की जान बचाने में सफल हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद आर्थिक नुकसान तेजी से बढ़ रहा है।“

उनके अनुसार इनसे निपटने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरुरत है। जैसा की हम हॉर्न ऑफ अफ्रीका में सूखे की आपात स्थिति, दक्षिण अफ्रीका में आई भीषण बाढ़ और भारत-पाकिस्तान में गर्मी के कहर के साथ देख रहे हैं।

उनका कहना है कि इन आपदाओं से बचने के लिए चेतावनी प्रणालियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती हैं, लेकिन इसके बावजूद यह डब्लूएमओ के आधे से भी कम सदस्य देशो के पास उपलब्ध हैं। वहीं संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के मुताबिक हम अगले पांच वर्षों में सभी तक इन पूर्व चेतावनी प्रणालियों को पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

रिपोर्ट के अनुसार चरम मौसमी घटनाओं, कोविड​​​​-19 ने विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा पर व्यापक असर डाला है। इसकी वजह से बड़े पैमाने पर लोग अपने है देशों में विस्थापित हो गए हैं। अनुमान है कि जहां अक्टूबर 2021 तक चीन में विस्थापितों का आंकड़ा 14 लाख से ज्यादा था। वहीं फिलीपींस में 386,000 और वियतनाम में 664,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे। 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा प्रणालियों में तत्काल कार्रवाई की बात कही है। उन्होंने जीवाश्म ईंधन के स्थान पर अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का आह्वान किया है। अपने एक वीडियो संदेश में, गुटेरेस ने अक्षय ऊर्जा के प्रसार में तेजी लाने के लिए पांच महत्वपूर्ण कार्यों को प्रस्तावित किया है।

डब्लूएमओ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “इसमें अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी और आपूर्ति तक अधिक पहुंच, नवीकरणीय ऊर्जा में निजी और सार्वजनिक निवेश का तिगुना करना और जीवाश्म ईंधन को दी जा रही सब्सिडी का अंत करना शामिल है, जो करीब 1.1 करोड़ डॉलर प्रति मिनट है।“

देखा जाए तो डब्लूएमओ द्वारा जारी यह रिपोर्ट, नवंबर 2022 में मिस्र में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) सम्मलेन (कॉप-27) में जलवायु परिवर्तन वार्ता का आधार तैयार करती है।

 

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