मौसम की प्रचंडता का शिकार हो रहा है केरल : पालावत

पिछले नौ माह के दौरान केरल ने कई आपदाओं का सामना किया है। डाउन टू अर्थ ने इसकी पड़ताल की है।  पढ़ें, इस कड़ी का दूसरा भाग 

By Anil Ashwani Sharma

On: Monday 06 May 2019
 
File Photo : Varghese Thomas

केरल संकट-दो

केरल ने पिछले आठ से नौ माह के दौरान मौसम के कई उतार-चढ़ाव देखें हैं । गत वर्ष अगस्त में केरल विनाशकारी बाढ़ का गवाह बना। ऐसी बाढ़ राज्य ने लगभग सौ साल बाद देखी। इसके बाद सूखा, फिर लू और अब वहां पानी संकट गहराया हुआ है। केरल की इन अतिशय मौसमी घटनाओं के कारणों की डाउन टू अर्थ ने विस्तृत पड़ताल की है। उसी पड़ताल के दूसरे भाग में स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पालावत से बातचीत का शेष अंश - 

क्या पश्चिमी घाट भी केरल में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करता है? 
जवाब : पश्चिमी घाट की भूमिका यह है कि जब मानसून आता है तो पश्चिमी घाट में उसी दिशा में ज्यादा बारिश होती है। हवा के रुख के कारण उधर तेज गतिविधि होती है और पूरी-पूरी नमी उधर ही चली जाती है। तमिलनाडु और कर्नाटक के अंदरुनी हिस्से में ज्यादातर सूखी हवा आती है तो वहां बारिश कम होती है। वहीं मानसून आने के बाद केरल में भारी बारिश शुरू हो जाती है जो आगे भी जारी रहती है। अभी देखा जा रहा है कि जो लगातार भारी बारिश होती थी, उसमें कमी आई है। लगातार बारिश कुछ खास क्षेत्रों जैसे कोझिकोड या कोच्ची में हो गई, लेकिन तिरुअनंतपुरम और उसके नीचे के इलाके में नहीं हुई। यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि संपूर्ण केरल के इलाके को छोड़ कुछ टुकड़ों में मानसून की गतिविधियां हो रही हैं। 

पहले जब मानसून आता था अल्टोस्टेटस क्लाउड बनते थे, इसके बनने के क्या कारण हैं?

जवाब- पहले क्या होता था कि जो मानसून आता था तो अल्टोस्टेटस क्लाउड बनते थे जिन्हें सुरक्षित बादल कहा जाता है। ये बादल तीन से चार दिन तक लगातार बरसते थे। अब क्या हो रहा है कि दो-चार घंटे के लिए अच्छी बारिश होती है। उसके बाद बारिश रुक जाती है। यानी कि मानसून के दौरान भी मानसून पूर्व की गतिविधियां जारी रहती हैं। और यह सिर्फ केरल में नहीं, पूरे देश में हो रहा है। आम तौर पर अप्रैल और मई में बिजली कड़कने और बारिश होने जैसी गतिविधियां होती हैं। इसके बाद अक्तूबर में मानसून बाद के सीजन में होता है। लेकिन अब जुलाई से लेकर सितंबर तक पूरे मानसून काल में ये गतिविधियां सक्रिय रहती हैं। केरल में हरित आवरण के घटने और तापमान के बढ़ने के कारण नमी वाली हवा को जकड़ने की शक्ति बढ़ रही है। इसलिए थोड़ी अवधि में ज्यादा बारिश जैसे मामले सामने आ रहे हैं। इन चीजों को हम जलवायु परिवर्तन कह सकते हैं।

इसे मौसम का प्रचंड रुख कह सकते हैं?
जवाब : प्रचंड मौसम अपनी रफ्तार में है। तूफान की प्रचंडता और बारंबारता बढ़ रही है। पश्चिमी विक्षोभ अक्तूबर से शुरू होकर फरवरी तक चलते थे अब मार्च और अप्रैल में भी जारी हैं। अब ये कम अंतराल पर आ रहे हैं। आम तौर पर एक महीने में दो से तीन पश्चिमी विक्षोभ आते थे। लेकिन इस साल जनवरी में सात बार ऐसा हुआ। फरवरी में भी सात बार और मार्च में छह बार पश्चिमी विक्षोभ से आया।

क्या मौसम की प्रचंडता तेजी से बढ़ रही है?

जवाब- हां, कहने का मतलब यह है कि मौसम की प्रचंडता तेजी से बढ़ रही है। इस कारण बाढ़ग्रस्त इलाकों की संख्या बढ़ रही है। जैसे गुजरात में, दक्षिणी मध्य प्रदेश में बाढ़ आई थी। दक्षिणी राजस्थान, उदयपुर जैसे इलाकों में 700 मिलीमीटर बारिश एक ही दिन में हो गई। उदयपुर और आसपास के इलाके में अगले दिन फिर 700मिलीमीटर के आसपास बारिश हुई। एक ही दिन में इतनी भारी बारिश अनोखी बात थी। वहीं बारिश 700 मिलीमीटर या 600 मिलीमीटर पहले तीन से चार दिन में बंट जाती तो पानी को निकलने का समय भी मिलता और संरक्षित भी होता। लेकिन अब वो बाढ़ की तरह निकल जाता है तो ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इस तरह की गतिविधियां हर तरफ बढ़ रही हैं। राज्य में मानसून का कैलेंडर अब बदल गया है।

भारी बारिश के बाद लू का चलना। क्या यह केरल में पहली बार हो रहा है?
जवाब : हां, दो साल में तो अभी यही देखा, ऐसा पहले नहीं होता था।

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