अल नीनो और ला नीना को कैसे प्रभावित कर रहा है जलवायु परिवर्तन, अध्ययन से चला पता

विश्लेषण से पता चलता है कि 1960 के बाद एल नीनो-दक्षिणी दोलन में बहुत बड़े बदलाव आए, शोध में यह भी माना गया है कि मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन इसके लिए जिम्मेवार है

By Dayanidhi

On: Friday 26 May 2023
 
फोटो साभार :आई-स्टॉक

एक नए शोध के अनुसार, मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मतलब अल नीनो और ला नीना की बड़ी घटनाओं का अधिक बार होना है। यह पृथ्वी की जलवायु पर मानव हस्तक्षेप के अहम और नए सबूतों को सामने लाता है।

शोध में 30 से अधिक वर्षों के लिए, जलवायु शोधकर्ताओं ने मानवजनित जलवायु परिवर्तन और अल नीनो और ला नीना की घटनाओं के बीच की कड़ी पर विचार किया है।  

जलवायु वैज्ञानिकों ने लंबे समय से हमारे महासागरों और वायुमंडल पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और मानव गतिविधि से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि के बीच संबंध पाया है।

शोधकर्ताओं ने कहा उन्होंने शोध में इस बात का पता लगाया कि, कब इस गतिविधि ने एल नीनो और ला नीना की घटनाओं को और अधिक चरम बनाना शुरू किया होगा। उन्होंने कहा हमारे गहन विश्लेषण में मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और अल नीनो और ला नीना में बदलाव  के बीच संबंध पाया गया है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि, हमें निष्कर्ष तक पहुंचने में पांच साल लगे। वे हमें यह समझने में मदद करते हैं कि अल नीनो और ला नीना भविष्य में दुनिया के गर्म होने पर कैसे बदलेंगे।

एल नीनो और ला नीना क्या हैं?

ला नीना आमतौर पर नमी वाली, ठंडी स्थिति लाता है। हर कुछ वर्षों में यह अल नीनो के साथ वैकल्पिक होता है, जो आमतौर पर शुष्क, गर्म स्थिति लाता है। साथ में, दो चरणों को अल नीनो-दक्षिणी दोलन के रूप में जाना जाता है।

घटनाएं उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव से पैदा होते हैं । अल नीनो के दौरान, सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म होता है। ला नीना के दौरान, यह सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता  है।

समुद्र की सतह के तापमान में छोटे बदलाव से वातावरण में बड़े बदलाव हो सकते हैं। इस तरह एल नीनो और ला नीना की घटनाएं दुनिया भर के मौसम के मिजाज को नाटकीय रूप से बदल सकती हैं।

अल नीनो-दक्षिणी दोलन स्वाभाविक रूप से होता है। लेकिन पिछले लगभग 50 वर्षों में, अल नीनो और ला नीना की बड़ी घटनाएं अधिक बार हुई हैं। क्या जलवायु परिवर्तन इसमें एक अहम भूमिका निभा रहा था? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमारा शोध निर्धारित किया गया है।

जलवायु 'परिवर्तनशीलता' को चुनना

जलवायु परिवर्तन अल नीनो और ला नीना के विकास को कैसे प्रभावित कर सकता है?

जलवायु परिवर्तन के दशकों के अवलोकन से पता चलता है कि समुद्र की सतह का तापमान गर्म हो रहा है। प्रशांत सहित दुनिया भर के कई महासागरों में, इसने समुद्र की सतह को नीचे के पानी की तुलना में तेजी से गर्म करने का कारण बना दिया है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि हमने यह समझने की कोशिश की, कि पिछली शताब्दी में एल नीनो-दक्षिणी दोलन पर इस बढ़ते तापमान का क्या प्रभाव पड़ा। हमारे शोध ने 43 "जलवायु मॉडल," या पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के कंप्यूटर सिमुलेशन द्वारा निर्मित कई सिमुलेशनों का विश्लेषण किया।

सबसे पहले, हमने 1901 से 1960 के बीच 1961 से 2020 के सिमुलेशन की तुलना की। अधिकांश परिणामों ने 1960 के बाद से अल नीनो-दक्षिणी दोलन के बदलाव में लगातार वृद्धि देखी।

इस मामले में, हमारे परिणाम अल नीनो और ला नीना की भारी घटनाओं को दिखाते हैं जो 1960 के बाद से औसत से अधिक बार घटित हुए हैं। यह खोज समान अवधियों के अवलोकन के अनुरूप है।

इसके बाद हमने सैकड़ों वर्षों में जलवायु सिमुलेशन की जांच की, इससे पहले कि मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना शुरू किया और इनकी तुलना 1960 के बाद के सिमुलेशन से की।

इस विश्लेषण ने और भी स्पष्ट रूप से 1960 के बाद एल नीनो-दक्षिणी दोलन में बहुत बड़े बदलाव हुए, शोध इस बात का समर्थन करता है कि मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन इसके लिए जिम्मेवार है।

भारी बदलावों ने दुनिया भर में अधिक चरम और लगातार सूखे, बाढ़, लू और तूफानों को बढ़ाया है।

अब आगे क्या होगा?

पिछला शोध बताता है कि अल नीनो-दक्षिणी दोलन इस सदी में बदलाव जारी रखेगा। विशेष रूप से, हम अल नीनो और ला नीना की अधिक तीव्र और लगातार होने वाली घटनाओं की आशंका जता सकते हैं। अगले साल एक भारी अल नीनो से एक भारी  ला नीना तक लगातार अधिक उतार-चढ़ाव के आसार हैं।

ये पूर्वानुमान विभिन्न उत्सर्जन परिदृश्यों पर लागू होती हैं। भले ही पेरिस समझौते के लक्ष्य के अनुसार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी की गई हो और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखा गया, हम एक और सदी के लिए लगातार भारी एल नीनो घटनाओं के आसार जता सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रशांत महासागर में बहुत अधिक गर्मी होती है, जिसे खत्म होने में कई दशक लग जाएंगे।

बेशक, अल नीनो-दक्षिणी दोलन में बदलाव पहले से ही महसूस हो रहा है। 2015 के चरम अल नीनो के बारे में सोचें, जिसके कारण दुनिया भर के अधिकांश हिस्सों में सूखा पड़ा। वहीं 2020 से 2022 तक एक दुर्लभ "ट्रिपल" ला-नीना के कारण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में खतरनाक बाढ़ आई।

इस साल के अंत में अल नीनो विकसित हो सकता है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन बढ़ रहा है, हमें इन हानिकारक जलवायु घटनाओं में से कई के लिए तैयार रहना चाहिए। यह अध्ययन नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।

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