पिछले 10 हजार सालों से भारत के बंगाल की उत्तरी खाड़ी में सबसे अधिक हुई बारिश: अध्ययन

वैज्ञानिकों ने बताया कि बंगाल के इलाकों में पिछले 10,200 वर्ष के जलीय, जलवायु इतिहास के इस क्षेत्र में 10,200 से 5,600 वर्ष के दौरान भारतीय ग्रीष्मकालीन मॉनसूनी बारिश में भारी बदलाव देखा गया

By Dayanidhi

On: Friday 20 January 2023
 
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, सौम्याश

एक नए अध्ययन के मुताबिक बंगाल की उत्तरी खाड़ी के आस-पास के इलाकों में पिछले 10,200 वर्षों से भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक बारिश हुई। अध्ययन में 10 हजार सालों के भारतीय ग्रीष्मकालीन मॉनसून की बारिश (आईएसएमआर) की गतिशीलता की जानकारी मिली है।

यह एक ऐसी अवधि है जिसने विश्वभर में कई प्राचीन सभ्यताओं का विकास और पतन देखा, इस अवधि के दौरान जलवायु में कई तरह के बदलाव आए थे

अध्ययनकर्ताओं ने कहा यह अध्ययन पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लंबे समय के रुझानों को समझने में मदद कर सकता है। साथ ही भविष्य में जलवायु की प्रतिकूल चरम सीमाओं को कम करने में भी मदद कर सकता है।

भारत में कृषि भारतीय ग्रीष्मकालीन मॉनसूनी बारिश (आईएसएमआर) पर बहुत अधिक निर्भर है। बंगाल बेसिन आईएसएम की बंगाल की खाड़ी के प्रक्षेपवक्र या ट्रेजेक्टरी पर स्थित होने की वजह से भारत का ग्रीष्मकालीन मॉनसून अपनी शक्ति में बदलाव के प्रति बहुत संवेदनशील होता है।

यहां तक ​​कि आईएसएम की ताकत में कम से कम बदलाव से ही क्षेत्र की कृषि आधारित सामाजिक आर्थिक स्थितियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, इस क्षेत्र में पिछले आईएसएम में आए बदलाव के लिए कोई व्यवस्थित लंबे समय के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं थे।

वैज्ञानिकों ने बताया कि बंगाल के इलाकों में पिछले 10,200 वर्ष के जलीय, जलवायु इतिहास में इस क्षेत्र में 10,200 से 5,600 वर्ष के दौरान आईएसएमआर में भारी बदलाव देखा गया। यह आईएसएम 4,300 सालों में काफी घट गया।

परन्तु आईएसएम 3,700 साल और 2,100 के कालखंड के बीच फिर से मजबूत हो गया। जिसके बाद यह कुछ समय के लिए शुष्क बना रहा। आईएसएम  ने 200 से 100 सालों के दौरान अपनी क्षमता वापस पा ली। कमजोर चरणों में से, लगभग 4,300 सालों तक कमजोर होना सबसे खतरनाक था और उसका पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

वैज्ञानिकों ने बंगाल बेसिन के उत्तरी भाग से एक सूखी झील के तल से तलछट के नमूने एकत्र किए और तलछटी अनुक्रम के आयु आधारित गहराई मॉडल के निर्माण और पहले की अलग-अलग जलवायु संबंधी मापदंडों को मापने के लिए मानक तकनीकों का पालन किया।

उन्होंने इस अध्ययन के परिणामों को सही साबित  करने के लिए अलग-अलग समय अवधि के लिए पैलियो मॉडलिंग प्रयोगों से कुछ पैलियो-मॉडल परिणाम के साथ प्रॉक्सी-आधारित परिणामों की तुलना की।

संख्यात्मक मॉडल ने जलवायु परिवर्तन के स्थानीय अस्थायी आयामों की जानकारी प्रदान की, जोकि विशिष्ट सीमा स्थितियों के अंतर्गत विभिन्न तरह की जलवायु के बीच गतिशील संबंधों का विश्लेषण करने में सहायक बना।

इन डेटासेट को मिलाकर फिर अध्ययनकर्ताओं ने बंगाल क्षेत्र में होलोसीन आईएसएम परिवर्तनशीलता के समय, क्षेत्रीय आधार पर कारणों की जांच की।

उन्होंने बंगाल बेसिन के भारतीय हिस्से में मॉनसून में बदलाव को प्रभावित करने वाले कारणों की खोज की और पाया कि जहां एक ओर आईएसएम  वर्षा में सहस्राब्दी-पैमाने पर बदलाव बड़े पैमाने पर अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजेड) के सौर अलगाव और गतिशीलता में बदलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

वह क्षेत्र जहां उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व ट्रेड विंड या हवाएं चलती हैं। सौ सालों में बदलाव सामूहिक रूप से उत्तरी अटलांटिक दोलन, एल नीनो दक्षिणी दोलन और हिंद महासागर द्विध्रुव जैसी घटनाओं से शुरू हो सकते हैं।

बंगाल बेसिन के भारतीय हिस्से में मॉनसूनी बदलावों को ध्यान में रखते हुए, वैज्ञानिकों ने जैविक बायोटिक, प्राथमिक उत्पादकता (नेट प्राइमरी प्रोडक्टिविटी– एनपीपीएस ) और स्थिर कार्बन समस्थानिक (स्टेबल कार्बन आइसोटोप) तथा अजैविक (पर्यावरणीय चुंबकीय पैरामीटर (एनवार्नमेंटल मैग्नेटिक पैरामीटर्स) और कण आकार (ग्रेन साईंज) आंकड़ों वाले दोनों प्रॉक्सी आंकड़ों को पिछले हाइड्रोक्लाईमैटिक बदलावों के पारिस्थितिकी तंत्र की प्रतिक्रिया को समझने के लिए जोड़ा।

उन्होंने अनुमान लगाया कि झील के पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव भारतीय ग्रीष्मकालीन वर्षा (आईएसएम) से अत्यधिक प्रभावित पाए गए। यह अध्ययन पैलियो-जियोग्राफी, पेलियोक्लिमेटोलॉजी, पैलेओकोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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