जलवायु में बदलाव के कारण अनियमित मौसम से बढ़ेगा टिड्डियों का प्रकोप

अध्ययन के मुताबिक, 1985 के बाद से टिड्डियों के निवास स्थान का विस्तार हुआ है, 21वीं सदी के अंत तक पश्चिम भारत और पश्चिम मध्य एशिया में कम से कम पांच फीसदी की वृद्धि हो सकती है

By Dayanidhi

On: Tuesday 20 February 2024
 
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने टिड्डियों को दुनिया में सबसे विनाशकारी प्रवासी कीट के रूप में वर्णित किया है। फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि मौसम में बदलाव जैसे - तेज हवा और अत्यधिक बारिश के कारण रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रकोप का खतरा बढ़ सकता है। मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव आ सकता है जिसके कारण टिड्डियों का प्रकोप बदतर होने की आशंका है।

रेगिस्तानी टिड्डी - उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के कुछ शुष्क क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक छोटी सींग वाली प्रजाति,एक प्रवासी कीट है। ये लाखों के झुंड में लंबी दूरी तक यात्रा करती हैं  और फसलों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे अकाल और खाद्य असुरक्षा होती है।

अध्ययन के मुताबिक, एक वर्ग किलोमीटर के झुंड में आठ करोड़ टिड्डियां शामिल होती हैं जो एक दिन में 35,000 लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त फसल खा सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने इसे दुनिया में सबसे विनाशकारी प्रवासी कीट के रूप में वर्णित किया है।

साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि गर्म होती जलवायु में टिड्डियों के इन प्रकोपों को रोकना और नियंत्रित करना बहुत कठिन होगा।

अध्ययनकर्ता और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में सहायक प्रोफेसर जियाओगांग हे ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक लगातार और गंभीर चरम मौसम की घटनाएं टिड्डियों के प्रकोप में अप्रत्याशितता बढ़ोतरी कर सकती हैं।

प्रोफेसर जियाओगांग हे ने आशा जताई है कि अध्ययन से देशों को टिड्डियों की गतिविधि पर जलवायु में बदलाव के प्रभावों को समझने और इनसे निपटने में मदद मिल सकती है। जिससे कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा पर इसके प्रभावों को कम किया जा सकता है। उन्होंने प्रतिक्रिया देने के लिए देशों और नियंत्रण करने वाले संगठनों के बीच बेहतर क्षेत्रीय और महाद्वीपीय सहयोग का आग्रह किया है, ताकि जल्दी से पूर्व चेतावनी प्रणाली का निर्माण किया जा सके।

अफ्रीका और मध्य पूर्व में टिड्डियों के प्रकोप के खतरे और जलवायु परिवर्तन से संबंध का आकलन करने के लिए, वैज्ञानिकों ने खाद्य और कृषि संगठन के लोकस्ट हब डेटा टूल का उपयोग करके 1985 से 2020 तक रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रकोप की घटनाओं का विश्लेषण किया। उन्होंने कीड़ों के पैटर्न की जांच करने के लिए आंकड़े आधारित ढांचे का निर्माण और उपयोग किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि लंबी दूरी तक फैलने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि केन्या, मोरक्को, नाइजर, यमन और पाकिस्तान सहित अधिकांश देशों में टिड्डियों का प्रकोप रहा।

25 वर्षों में रेगिस्तानी टिड्डियों का सबसे बुरा प्रकोप 2019 और 2020 में पूर्वी अफ्रीका में हुआ, जब कीड़ों ने सैकड़ों हजारों एकड़ खेतों को तबाह कर दिया और फसलों, पेड़ों और अन्य वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाया, जिससे खाद्य सुरक्षा और आजीविका प्रभावित हुई।

इंटरनेशनल सेंटर ऑफ इंसेक्ट फिजियोलॉजी एंड इकोलॉजी के वैज्ञानिक एलफतिह अब्देल-रहमान ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण बड़े पैमाने पर रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रकोप से खाद्य उत्पादन में कमी और भोजन की कीमतों में वृद्धि के कारण प्रभावित क्षेत्रों में आजीविका को काफी खतरा होगा।

शोधकर्ताओं ने रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रकोप की भयावहता और मौसम और भूमि की स्थितियों जैसे हवा के तापमान, वर्षा, मिट्टी की नमी और हवा के बीच एक मजबूत संबंध भी पाया। रेगिस्तानी टिड्डियों के उन शुष्क क्षेत्रों पर आक्रमण करने की अधिक आशंका होती है जहां अचानक अत्यधिक वर्षा होती है और प्रकोप में कीड़ों की संख्या मौसम की स्थिति से काफी प्रभावित होती है।

अल नीनो, एक प्राकृतिक जलवायु घटना जो दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करती है, बड़े और बदतर रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रकोप से भी गंभीरता से जुड़ी हुई पाई गई।

डेलावेयर विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान के प्रोफेसर डगलस टैलामी, ने कहा कि अनियमित मौसम और वर्षा से वनस्पति में तेजी आती है इसलिए टिड्डियों की आबादी में भारी वृद्धि होती है।

टैलामी ने कहा, जैसे-जैसे इस तरह बदलाव होते है, इस बात का पूर्वानुमान लगाना सही है कि टिड्डियों का प्रकोप भी बढ़ेगा।

शोधकर्ता ने कहा, यह अध्ययन इस बात का एक और उदाहरण है कि दुनिया भर के लोगों को जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों को कम करने के लिए एक साथ आने की आवश्यकता  पर जोर देता है, साथ ही रेगिस्तान के बढ़ते खतरों जैसी वैश्विक घटनाओं के जवाब में रणनीतियों को लागू करने की भी जरूरत को उजागर करता है।  

अध्ययन में पाया गया कि विशेष रूप से मोरक्को और केन्या जैसे संवेदनशील सबसे अधिक खतरे वाले स्थान बने हुए हैं, 1985 के बाद से टिड्डियों के निवास स्थान का विस्तार हुआ है और अनुमान है कि 21वीं सदी के अंत तक वे पश्चिम भारत और पश्चिम मध्य एशिया में कम से कम पांच फीसदी की वृद्धि जारी रखेंगे।

अध्ययन में रुब अल खली, या खाली क्वार्टर, दक्षिणी अरब प्रायद्वीप के एक रेगिस्तान का उदाहरण दिया गया है, एक ऐसी जगह के रूप में जो ऐतिहासिक रूप से रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रकोप के लिए असामान्य थी लेकिन फिर एक हॉटस्पॉट बन गई। रेगिस्तान में 2019 में चक्रवातों के बाद अनियंत्रित प्रजनन के बाद टिड्डियों का प्रकोप हुआ, जिसने रेगिस्तान को मीठे पानी की झीलों से भर दिया।

टिड्डियों के प्रकोप से भारी वित्तीय प्रभाव पड़ सकता है। विश्व बैंक के अनुसार, 2003 से 2005 तक पश्चिम अफ्रीका में हुए टिड्डियों के प्रकोप से निपटने में 45 करोड़ डॉलर से अधिक की लागत आई। इसमें कहा गया है कि इस प्रकोप के कारण लगभग 2.5 अरब डॉलर की फसल का नुकसान हुआ।

शोधकर्ता जियाओगांग ने कहा कि रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रकोप से प्रभावित देश पहले से ही सूखे, बाढ़ और लू जैसी जलवायु से उत्पन्न चरम मौसम से जूझ रहे हैं और इन क्षेत्रों में टिड्डियों के खतरे में होने वाली वृद्धि मौजूदा चुनौतियों को बढ़ा सकती है।

उन्होंने कहा, इन खतरों से निपटने में विफलता खाद्य उत्पादन प्रणालियों पर और दबाव डाल सकती है और वैश्विक खाद्य असुरक्षा की गंभीरता को बढ़ा सकती है।

Subscribe to our daily hindi newsletter