हिमालयी इलाके में बनी 77 से अधिक ग्लेशियर वाली झीलें, बाढ़ का खतरा बढ़ा

अध्ययन के मुताबिक गोरी गंगा वाटरशेड वाले इलाके में पिछले 10 वर्षों में भयंकर बाढ़ की घटनाएं देखी, जिससे संपत्ति और खेती को भारी नुकसान हुआ

By Dayanidhi

On: Thursday 02 March 2023
 
फोटो साभार: कैलास98

एक अध्ययन में कुमाऊं के हिमालयी क्षेत्र के गोरी गंगा वाले इलाके में 77 नई ग्लेशियर से बनी झीलों का पता चला है। 3,500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित जल निकाय, तीन दशकों में, 1990 से 2020 के बीच बर्फ से ढके क्षेत्रों के सिकुड़ने के कारण बने।

अध्ययन का शीर्षक "उत्तराखंड के कुमाऊं के हिमालयी इलाके में, गोरी गंगा वाटरशेड, में जीआईएस और आरएस का उपयोग करते हुए स्थानीय-अस्थायी बदलावों के कारण टिम्बरलाइन की गतिविधि में बदलाव" है।

गोरी गंगा क्षेत्र में मुख्य रूप से मिलम, गोन्खा, रालम, लवन और मार्तोली ग्लेशियर शामिल हैं। गोन्खा में 2.7 किमी व्यास वाली सबसे बड़ी ग्लेशियर से बनी झील पाई गई। अध्ययन में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि, भविष्य की किसी भी भूगर्भीय गतिविधि के कारण झील फट सकती है, जिससे अचानक बाढ़ आ सकती है

शोध में पाया गया कि वर्ष 2020 तक, कुल 77 ग्लेशियर वाली  झीलें जो 50 मीटर से अधिक व्यास वाली, बन गई थीं। इनमें से सर्वाधिक 36 झीलें मिलम में, सात झीलें गोन्खा में, 25 रालम में, तीन झील लवान में और छह झीलें मर्तोली ग्लेशियर में मौजूद हैं। परिहार ने कहा, सभी ग्लेशियर वाले इलाकों में ग्लेशियर वाली झीलों का व्यास और नई झीलों का निर्माण तेजी से बढ़ रहा है।

जिस गोरी गंगा वाटरशेड क्षेत्र में अध्ययन किया गया, वहां पिछले 10 वर्षों में भयंकर बाढ़ आ चुकी हैं, जिससे संपत्ति और खेती को भारी नुकसान हुआ। अध्ययन जीआईएस या भौगोलिक सूचना प्रणाली, रिमोट सेंसिंग और उपग्रह तस्वीरों का उपयोग करके आयोजित किया गया था, जिसके बाद इलाके की यात्राओं के बाद आंकड़े जमा किए गए। कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के भूगोल के प्रोफेसर देवेंद्र परिहार ने मिलम और गोन्खा ग्लेशियरों का भी दौरा किया।

बार-बार बाढ़ आने के कारण गोरी गंगा घाटी क्षेत्र के कई गांव, जिनमें टोली, लुमटी, मवानी, डोबरी, बाराम, सना, भदेली, दानी बगड़, सेरा, रोपड़, सेराघाट, बागीचबगढ़, उमादगढ़, बंगापानी, देवीबगड़, छोड़ीबगड़, घट्टाबाग, जिला प्रशासन द्वारा मदकोट और तल्ला मोरी को आपदा संभावित घोषित किया गया है।

2021 के नवंबर माह में, चमोली में अचानक आई बाढ़ ने लगभग 200 लोगों की जान ले ली थी, उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्लेशियल झीलों, ग्लेशियरों की निगरानी सहित एक उपग्रह-आधारित पर्वतीय खतरे का आकलन करने के लिए भारतीय रिमोट सेंसिंग संस्थान के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।

उत्तराखंड में भूस्खलन क्षेत्र और हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्र को लेकर यह किया गया था। आपदा प्रबंधन विभाग के अनुमान के अनुसार, उत्तराखंड के ऊंचे  पर्वतीय क्षेत्र में 1,000 से अधिक ग्लेशियर और 1,200 से अधिक छोटी और बड़ी ग्लेशियर वाली झीलें हैं।

जब ग्लेशियर वाली झीलें फटती हैं, तो वे एक विस्फोटक बाढ़ का निर्माण करती हैं, जो तेजी से बहने वाली बर्फ, पानी और मलबे की एक धारा है जो नीचे की ओर बस्तियों को तेजी से नष्ट कर सकती है। ऐसा माना जाता है कि चमोली में अचानक आई बाढ़ इसी तरह के एक ग्लेशियर में विस्फोट से शुरू हुई थी।

 वास्तव में, चमोली में बाढ़ के बाद एक अधिक ऊंचाई वाली कृत्रिम झील का निर्माण हुआ था, हो सकता है यह ग्लेशियर के फटने के बाद यह अलकनंदा नदी में जल स्तर बढ़ गया था।

अध्ययन के मुताबिक, पिछले 26 वर्षों, 1990 से 2016 के दौरान, बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण, गोरी गंगा वाटरशेड के 661.53 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 25.44 वर्ग किलोमीटर प्रति वर्ष की औसत दर से जंगल वाले इलाकों का सफाया हो गया।

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