जलवायु संकट: हिमाचल की नदियां सूखी, अभी से शुरू हुई पानी की राशनिंग

हिमाचल में बर्फ और बारिश न होने के कारण हालात बिगड़ते जा रहे हैं। गर्मियों में संकट और गहरा सकता है

By Rohit Prashar

On: Monday 22 January 2024
 
3650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित शीत मरुस्थल स्पीति वैली का काजा शहर; फोटो: रोहित पराशर

हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन महीनों से सूखे की स्थिति बनी हुई है। हिमाचल से निकलने वाली उत्तर भारत की कई प्रमुख नदियों सतलुज, ब्यास, यमुना, रावी और चिनाब में पानी का स्तर कम हो गया है। पीने के पानी के स्रोत तक सूखने लगे हैं। कई इलाकों में पानी की आपूर्ति बाधित हो गई है और प्रशासन को पानी की राशनिंग करनी पड़ रही है।

मौसम विभाग के अनुसार अभी 24 जनवरी तक बारिश और बर्फबारी न होने की बात कही जा रही है जिससे क्षेत्र के लोगों की चिंताएं और अधिक बढ़ने लगी हैं।

पर्यावरण एवं ग्लेशियर विशेषज्ञ और हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद में प्रधान वैज्ञानिक एसएस रंधावा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सर्दियों के दिनों में दिसंबर और जनवरी माह में पड़ी बर्फ लंबे समय तक जमी रहती है। इससे ग्लेशियर को संजीवनी मिलती है। लंबे समय तक बर्फ होने से नदियों और नालों को पानी मिलता रहता है। लेकिन वर्तमान सीजन में लंबे सूखे का असर गर्मियों के दिनों में पानी की किल्लत पैदा कर सकता है। अभी जो सूखा पड़ा है उसके असर को लेकर स्टडी की जा रही है।

केंद्रीय जल आयोग के डाटा के अनुसार उत्तर भारत के जलाशयों में पानी के भंडारण को लेकर दिए गए आंकड़ों के अनुसार 18 जनवरी तक हिमाचल, पंजाब और राजस्थान के जलाशयों में पानी की मात्रा उनकी क्षमता के आधे तक पहुंच गई है। हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े जलाशय गोबिंद सागर बांध की 6.229 बिलियन क्यूसिक मीटर (बीसीएम) क्षमता है, जिसमें अभी 3.115 बीसीएम पानी का भंडार है। इसके अलावा 6.157 बीसीएम क्षमता वाले पौंग डैम में 3.457 बीसीएम पानी मौजूद है। वहीं पंजाब के थीन बांध जिसकी क्षमता 2.344 बीसीएम है उसमें 18 जनवरी को 0.567 बिलियन क्यूसिक मीटर पानी ही बचा हुआ है।

लंबे सूखे को असर सबसे अधिक उंचाई वाले कबाईली क्षेत्रों के साथ शहरी क्षेत्रों में पानी की कमी के रूप में देखने को मिलेगा। वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरर्णीय मामलों की जानकार अर्चना फुल्ल ने डाउन टू अर्थ से कहा कि पिछले कुछ समय में हिमालय की तलहटी में बसे राज्यों में बड़ी तेजी से पर्यावरर्णीय बदलावों को देखा जा रहा है। हिमाचल में भी पर्यावरण में आ रहे बदलावों के चलते बाढ़ और सूखे की स्थिति देखने को मिल रही है।

उन्होंने कहा कि इस बार बरसातों में बहुत अधिक बारिश हुई थी और तेज बारिश के दौरान पानी स्रोतों को रिचार्ज करने के बजाए तेज बहाव के कारण बह गया था। इससे स्रोत अच्छे से रिचार्ज नहीं हो सके। अब पिछले तीन माह के सूखे से पानी के स्रोतों खासकर पेयजल स्त्रोतों में पानी की कमी होना शुरू हो गई है। वे बताती हैं कि यदि स्थिति ऐसी ही बनी रहती है तो आने वाले समय में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की भारी किल्लत देखने को मिलेगी। साथ ही इसका असर कृषि और बागवानी क्षेत्र में भी देखने को मिलेगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि अभी जो लंबे समय से सूखा चल रहा है उसका सबसे अधिक असर अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों किन्नौर, लाहौल स्पीति में देखने को मिलेगा। शीत मरुस्थल स्पीति घाटी में कृषि विभाग में खंड तकनीकी प्रबंधक के तौर पर कार्यरत डॉ. सुजाता नेगी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हमारे यहां इस बार बिल्कुल भी बर्फबारी नहीं हुई है।

पिछले साल इस समय तक अच्छी बर्फबारी हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि हमारे यहां केवल एक ही सीजन में खेती होती है और खेती के लिए लोग पूरी तरह ग्लेशियर और बर्फबारी के ऊपर निर्भर रहते हैं। इस बार बर्फबारी न होने की वजह से गर्मियों के दिनों में लोगों को खेती के लिए पानी के साथ पीने के पानी की भी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

वाटर एक्सपर्ट प्रतीक कुमार ने डाउन टू अर्थ से कहा कि लंबे सूखे के चलते भविष्य में पानी को लेकर आने वाली चुनौतियों को देखते हुए सरकार और ग्रामीण स्तर पर लोगों को अपने स्तर पर तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। हिमाचल वैसे भी पर्यटन स्थल है और शिमला जैसे शहरों में पानी की किल्लत वैसे भी देखी जाती रही है और इस बार जो ये सूखा पड़ा है इसका असर देखने को मिल सकता है इसलिए अभी से ही पानी को बचाने की दिशा में काम शुरू कर देना चाहिए।

Subscribe to our daily hindi newsletter