जलवायु परिवर्तन का असर: मुंबई में औसतन 5.18 मिलीमीटर की दर से हर साल बढ़ रही है बारिश
मुंबई के इन इलाकों में सिर्फ बारिश ही नहीं बढ़ रही है। साथ ही भारी और अत्यधिक भारी बारिश की घटनाओं में भी वृद्धि दर्ज की गई है, जोकि चिंता का विषय है
On: Thursday 09 March 2023
बढ़ते उत्सर्जन और जलवायु में बाते बदलावों के चलते ग्रेटर मुंबई में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बारिश हो रही है। इस बारे में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि इस क्षेत्र में हो रही बारिश हर वर्ष 5.18 मिलीमीटर की दर से बढ़ रही है।
इस अध्ययन के नतीजे इंटरनेशनल जर्नल थ्योरेटिकल एंड एप्लाइड क्लाइमेटोलॉजी के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुए हैं। पता चला है कि अध्ययन के दौरान इन क्षेत्रों की औसत वार्षिक वर्षा 2,208.82 मिलीमीटर दर्ज की गई थी। जो 1985 से 2020 के बीच सांताक्रूज में सबसे ज्यादा 2,306.55 मिलीमीटर दर्ज की गई थी, जबकि इसी अवधि के लिए कोलाबा के लिए यह आंकड़ा 2,111.09 मिलीमीटर प्रति वर्ष दर्ज किया गया।
यह अध्ययन मुंबई के 25 स्टेशनों से प्राप्त बारिश के आंकड़ों पर आधारित है। जिसमें दो स्टेशनों सांताक्रूज और कोलाबा के 1985 से लेकर 2020 तक के आंकड़े और अन्य 23 स्टेशनों के 2006 से 2020 के आंकड़ें शामिल थे। इनमें अंधेरी, बांद्रा, बोरीवली, चेंबूर, दादर, देवनार, धारावी, कुर्ला, मलाड, मुलुंड, विक्रोली, विले-पार्ले, वर्ली, तुलसी, गोरेगांव, कांदिवली, बीएमसी आदि क्षेत्र शामिल थे।
रिसर्च से पता चला है कि इन 25 इलाकों में सांताक्रुज शहर में सबसे अधिक बारिश वाला स्थान है। जहां 2020 में अधिकतम 3721.99 मिलीमीटर बारिश हुई थी। गोवालिया में सबसे कम औसतन 1,717.55 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी।
समस्या बन रहा बदलता बारिश का पैटर्न
अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक मुंबई के इन इलाकों में सिर्फ बारिश ही नहीं बढ़ रही है। साथ ही भारी और अत्यधिक भारी बारिश की घटनाओं में भी वृद्धि दर्ज की गई है जोकि एक चिंता का विषय है।
पता चला है कि जहां 1994 के बाद से सांताक्रूज में भारी (120 मिमी प्रति दिन से ज्यादा) और अत्यधिक भारी (250 मिलीमीटर प्रति दिन से ज्यादा) बारिश की घटनाओं में वृद्धि हुई है। वहीं कोलाबा के मामले में यह वृद्धि 2005 के बाद से दर्ज की गई है। वहीं इसके बाद बारिश की घटनाओं का यह पैटर्न कहीं ज्यादा अनियमित होता गया जबकि बारिश की घटनाएं कहीं ज्यादा गंभीर हो गई हैं।
रिसर्च के मुताबिक बारिश और तापमान के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि 2001 से 2005 के बीच यह बदलाव कहीं ज्यादा स्पष्ट थे। गौरतलब है कि यह वही वर्ष था जब मुंबई में भारी बारिश के चलते भीषण बाढ़ आई थी, जो बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान की वजह बनी थी। उस वर्ष में वहां एक ही दिन में 944 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई थी।
पता चला है कि इस भारी बारिश और बाढ़ से 700 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 244,110 घरों क्षतिग्रस्त हो गए थे। इसी तरह इस बाढ़ में 97 स्कूलों को नुकसान पहुंचा था। इतना ही नहीं इस बाढ़ से व्यापार और वाणिज्य को 5,000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ था।
इसी तरह 2011 में कोलाबा में एक ही दिन में 1,058 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार बारिश में यह बदलाव इकोसिस्टम और प्राकृतिक संसाधनों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकते हैं।
देखा जाए तो इस अध्ययन के नतीजे कहीं न कहीं उन नतीजों से मेल खाते हैं जिन्हें बीएमसी द्वारा मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान (एमसीएपी) में हाईलाइट किया गया है। मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान (एमसीएपी) में भी शहर में बारिश के पैटर्न में लेकर आते बदलावों को लेकर चेताया गया है और इससे बचाव की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है। गौरतलब है कि मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शहर के लिए 30 साल का रोडमैप तैयार किया गया है।