जलवायु परिवर्तन के कारण अल-नीनो और ला-नीना का पूर्वानुमान लगाना कठिन

भविष्य में सूखे, बाढ़ और मौसम में बदलाव की घटनाओं के बारे में पहले पता करना कठिन हो सकता है

By Dayanidhi

On: Thursday 22 August 2019
 
Photo: Creative commons

'साइंस एडवांसेस' में प्रकाशित एक नए शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन से प्रशांत महासागर में अल-नीनो और ला-नीना मौसम की गड़बड़ी की भविष्यवाणी करना कठिन हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दुनिया भर में होने वाली घटनाओं में से अकेले अटलांटिक में आधीे घटनाएं हो रही हैं। 

आज की जलवायु में भूमध्य अटलांटिक के पानी का ठंडा होना, जिसे अटलांटिक नीना कहा जाता है, भूमध्यरेखीय प्रशांत या अल-नीनो विशेष रूप से गर्म पानी के कारण बन सकता है। इस बीच, गर्म अटलांटिक नीनो पानी प्रशांत क्षेत्र में ला-नीना ठंडे पानी को जन्म देता है।

आसान शब्दों में कहें तो अल-नीनो - समुद्र में होने वाली उथलपुथल है और इससे समुद्र के सतही जल का तापमान बढ़ जाता है। वही ला-नीना में समुद्री सतह का तापमान बहुत कम हो जाता है। अल-नीनो का एक प्रभाव यह भी हो सकता है कि इसके कारण विश्व के ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा वर्षा होने लगती है। 

भारत में आमतौर पर अल-नीनो का असर मानसून सीजन में ही दिखाता है, लेकिन इसकी सक्रियता की अवधि 9 महीने तक हो सकती है। अकसर 2 से 7 साल के अन्तराल में इसे सक्रिय होते हुए देखा गया है। बीते दशकों के दौरान 1991, 1994, 1997 के वर्षों में इसका प्रभाव दर्ज किया गया जिसमें वर्ष 1997-98 में अल-नीनो का प्रभाव सबसे ज्यादा हुआ।  

वह कॉल-एंड-रिस्पांस रिलेशनशिप है, जिसमें एटलांटिक के ऊपर से हवा का वायुमंडल में बहना और प्रशान्त महासागर के ऊपर ठहरना शामिल है, लगातार बहने वाली इन हवाओं को ‘व्यापारिक पवन’ कहा जाता है। जो पूर्वानुमानकर्ताओं को विनाशकारी अल-नीनो और ला-नीना की घटनाओं का अनुमान लगाने में मदद करता है।

लेकिन जब वातावरण गर्म हो जाता है तो हवाओं के दिशा बदलने की गति कम होने की संभावना होती है, जिससे प्रशांत पर अटलांटिक का प्रभाव कम हो जाता है। भविष्य में अल-नीनो और ला-नीना अटलांटिक में होने वाली घटनाओं का पालन नहीं करेंगे जैसा कि अतीत में भी हो चुका है। यह विशेष रूप से हानिकारक अल-नीनो और ला-नीना की घटनाओं से निपटने की पूर्व तैयारी कठिन हो सकती है, जो कुछ क्षेत्रों में बाढ़ की विभीषिका को बढ़ा सकता है, जबकि दूसरी जगहों को सूखे में तब्दील कर सकता है तथा भयानक तूफान आ सकते है।

शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाने के लिए पिछले कई दशकों में हुई इन घटनाओं के पैटर्न की तुलना करके यह जानने की कोशिश की, कि अटलांटिक के नीना और नीनो, अल-नीनो और ला-नीना के लिए कितने विश्वसनीय हैं। टीम ने पाया कि 1998 के ला-नीना सहित सबसे मजबूत अल-नीनो और ला-नीना जिसके कारण चीन में बाढ़ और कैरिबियाई क्षेत्र में तूफान आया जिसने हजारों लोगों की जान ले ली - यह सब लगभग हमेशा अटलांटिक की घटनाओं के पहले हुआ था अथवा जिसका पूर्वानुमान लगाना कठिन था।  

कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चला कि अगर 21 वीं सदी में जलवायु-गर्म होती है, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहती है तो अटलांटिक-प्रशांत के संबंध बदल सकते हैं। सिमुलेशन के सुझाव के अनुसार भविष्य में अल-नीनो और ला-नीना की चरम घटनाओं के अधिक बार होने की उम्मीद है, इनमें से केवल आधी घटनाओं को ही अटलांटिक की घटनाओं द्वारा पहले संकेत दिया जा सकता है, अथवा जिसका हम पूर्वानुमान लगा सकते हैं।

ऑस्ट्रेलिया के एस्पेंडेले में कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन के जलवायु वैज्ञानिक कोथोर वेन्जु काह कहते हैं  "प्रशांत में चरम अल-नीनो और ला-नीना की भविष्यवाणी करना कठिन होने जा रहा है।"

जलवायु वैज्ञानिक मारिया बेलेन रोड्रिगेज-फोंसेका ने मैड्रिड के कॉम्प्ल्यूटेंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक ये निष्कर्ष प्रशंसनीय है, इनकी कुछ सावधानी के साथ व्याख्या की जानी चाहिए, क्योंकि कंप्यूटर सिमुलेशन समुद्र-वातावरण का पूरी तरह से अनुकरण नहीं करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यदि भविष्य में अटलांटिक नीनो और नीन प्रशांत गतिविधि की भविष्यवाणी करने के लिए उपयोगी नहीं हैं, तो इससे डरने की आवश्यकता नहीं है।

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