जलवायु संकट: बढ़ रहा दिन और रात के बीच तापमान का अंतर, फसल व स्वास्थ्य पर पड़ेगा असर

शोधकर्ताओं का मानना है कि दिन और रात के बीच बढ़ते तापमान का यह अंतर फसलों की पैदावार और पौधों के विकास के साथ-साथ इंसानों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है।

By Lalit Maurya

On: Wednesday 07 February 2024
 
बढ़ते तापमान से बदल रहे हैं समीकरण; फोटो: आईस्टॉक

यह तो सभी जानते हैं कि दिन और रात में तापमान कभी एक जैसा नहीं होता। जहां दिन में तापमान ज्यादा होता है, वहीं रातें तुलनात्मक रूप से ठंडी होती है। हालांकि इसके बावजूद इस तापमान के बीच एक संतुलन रहता है। जो जीवन के लिए बेहद मायने रखता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन इस संतुलन को बिगाड़ रहा है।

यह विदित है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते वैश्विक स्तर पर सतह के औसत तापमान में वृद्धि हो रही है। लेकिन तापमान में यह वृद्धि दिन और रात में समान रूप से नहीं हो रही है। इस बारे में की गई एक नई रिसर्च से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर दिन और रात के तापमान में जो अंतर है, वो बढ़ रहा है और इसका खामियाजा दुनिया के सभी जीवों को भुगतना पड़ सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग के इस पैटर्न के बारे में वैज्ञानिक पहले से जानते हैं लेकिन व्यापक रूप से यह माना जाता रहा है कि वैश्विक स्तर पर बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से दिन की तुलना में रात का तापमान कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ा है। लेकिन स्वीडन की चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किया यह नया अध्ययन इस पैटर्न में बदलाव का संकेत देता है।

इस अध्ययन के मुताबिक 1990 के दशक के बाद से दिन के समय कहीं ज्यादा गर्मी पड़ रही है। ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बदलाव दिन और रात के बीच तापमान के अंतर को कहीं ज्यादा बढ़ा सकता है, जिससे पृथ्वी पर जीवन प्रभावित हो सकता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक दिन और रात के बीच बढ़ते तापमान में भिन्नता के इस पैटर्न को "असममित तापन" के रूप में जाना जाता है। जो इंसानी गतिविधियों और प्राकृतिक कारकों दोनों की वजह से हो सकता है। अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इसी पैटर्न की दोबारा जांच की है, जिससे पता चला है कि यह पैटर्न बदल गया है।

कौन है इन बदलावों के लिए जिम्मेवार

शोधकर्ताओं के अनुसार 1961 से 2020 के बीच जहां वैश्विक स्तर पर दिन के बढ़ते तापमान में वृद्धि हुई है, वहीं रात के बढ़ते तापमान की दर अपेक्षाकृत रूप से स्थिर बनी हुई है। अब शोधकर्ताओं के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि ऐसा क्यों हो रहा है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बदलाव का एक संभावित कारक 'ग्लोबल ब्राइटनिंग' नामक घटना है, जो अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में देखी गई। यह बादलों के आवरण के कम होने का परिणाम है, जिसकी वजह से कहीं ज्यादा मात्रा में सूर्य की रोशनी पृथ्वी की सतह तक पहुंच पाती है। इसकी वजह से दिन का तापमान बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी वजह से हाल के दशकों में दिन और रात के तापमान के बीच अंतर बढ़ गया है। हालांकि बादलों के आवरण में यह बदलाव क्यों हुआ है, इसके कारणों को लेकर काफी अनिश्चितता है।

वहीं वैश्विक चमक बादल और साफ आसमान के साथ एरोसोल नामक छोटे वायुमंडलीय कणों के बीच एक जटिल प्रतिक्रिया से प्रभावित हो सकती है। इन एरोसोल के बारे में बता दें कि यह महीन कण प्राकृतिक तौर पर जंगल में लगने वाली आग जैसी घटनाओं के कारण उत्पन्न हो सकते हैं।

साथ ही इनकी उत्पत्ति के लिए जीवाश्म ईंधन को जलाना जैसी इंसानी गतिविधियां भी जिम्मेवार हैं। बता दें कि यह एरोसोल पर्यावरण के कई पहलुओं पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं।

इसके अलावा "असममित तापन" के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ क्षेत्रों में बढ़ती सूखे और लू की घटनों को भी जिम्मेवार माना है। इनकी वजह से वाष्पीकरण के चलते तापमान में आने वाली कमी का प्रभाव घट गया है जो, दिन के समय तापमान में होती वृद्धि की वजह बन रहा है।

पैदावार में गिरावट के साथ-साथ बढ़ सकता है बीमारियों का खतरा

रिसर्च से पता चला है कि 1961 से 1990 के बीच दुनिया के करीब 81 फीसदी हिस्से में रात के समय तापमान में वृद्धि दर्ज की गई थी। वहीं इसके विपरीत 1991 से 2020 के बीच बदलाव देखने को मिला है, इस दौरान दुनिया के करीब 70 फीसदी भूभाग में दिन के समय तापमान में वृद्धि का अनुभव किया गया।

शोधकर्ताओं का मानना है कि दिन और रात के बीच बढ़ते तापमान का यह अंतर फसल उत्पादन के साथ-साथ पौधों के विकास, पशु स्वास्थ्य और मानव कल्याण को भी प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए, दिन और रात के दौरान तापमान में बड़ा अंतर हृदय गति और रक्तचाप को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, जिसकी वजह से हृदय और सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जिकियान झोंग के मुताबिक इससे पता चलता है कि हमें जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए कृषि, स्वास्थ्य देखभाल और वानिकी जैसे क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत है जो दिन और रात के तापमान में आए बदलावों से कहीं ज्यादा प्रभावित होते हैं।

इतना ही नहीं अध्य्यन के मुताबिक यह बदलाव नम क्षेत्रों में पेड़ों की कुछ प्रजातियों द्वारा कहीं ज्यादा कार्बन अवशोषित करने में मददगार हो सकता है। वहीं शुष्क क्षेत्रों में, तापमान में आया यह अंतर पेड़ों के विकास को अवरुद्ध कर सकता है, क्योंकि इन क्षेत्रों में दिन के समय बढ़ते तापमान से वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है। नतीजन मिट्टी में शुष्कता बढ़ जाती है, जो पेड़ों की सेहत के लिए ठीक नहीं है।

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