भारत सहित दुनियाभर में इंटरनेट और डिजिटल आंकड़ों पर मंडराता जलवायु परिवर्तन का साया

शोध से पता चला है कि अगले 100 वर्षों में 97 फीसदी क्षेत्र जहां इन केबलों का जाल बिछा है वो समुद्र के जलस्तर में 500 मिलीमीटर से ज्यादा की वृद्धि का अनुभव करेंगें

By Lalit Maurya

On: Friday 17 February 2023
 
दुनिया भर में बिछा टेलीकम्यूनिकेशन नेटवर्क केबल्स का जाल; फोटो: यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा/ नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर (एनओसी), यूके

समुद्रतल पर तारों का जाल बिछा है, जो पूरी दुनिया में इंटरनेट और करीब 95 फीसदी डिजिटल आंकड़ों को नियंत्रित करता है। इसमें हर दिन होने वाली ट्रिलियन डॉलर की वित्तीय ट्रेडिंग की जानकारी से लेकर सोशल मीडिया संचार तक सभी कुछ शामिल है।

गौरतलब है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था इन 400 से ज्यादा फाइबर-ऑप्टिक केबल सिस्टम के समुद्र तल पर बिछे नेटवर्क पर निर्भर करती है, जो वैश्विक महासागर में 18 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैले हुए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सीफ्लोर केबल के इस जाल पर भी जलवायु में आते बदलावों का खतरा मंडराने लगा है।

यूके के नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर (एनओसी) के नेतृत्व में अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक दल ने इस समस्या को उजागर करने का काम किया है और पता लगाया है कि कैसे और कहां पर भविष्य में जलवायु में आने बदलावों के चलते इन सीफ्लोर केबल और तट पर मौजूद उनके बुनियादी ढांचे के प्रभावित होने की सम्भावना सबसे ज्यादा है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल अर्थ-साइंस रिव्यु में प्रकाशित हुए हैं।

शोध से पता चला है कि अगले 100 वर्षों में 97 फीसदी क्षेत्र जहां इन केबल का जाल बिछा है वो समुद्र के जलस्तर में 500 मिलीमीटर से ज्यादा की वृद्धि का अनुभव करेंगें। अनुमान है कि हर साल इंसानी गतिविधियां जैसे समुद्र में मछली पकड़ने के जहाजों की वजह से इन केबलों में हर साल 200 से 300 फाल्ट मिलते हैं। इसी तरह प्राकृतिक आपदाएं जैसे तूफान, भूकंप, भूस्खलन और अन्य इनकों होने वाले 20 फीसदी नुकसान के लिए जिम्मेवार हैं।

इस बारे में प्रकाशित डेटासेट का विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ताओं ने उन 'हॉटस्पॉट' की पहचान की है जहां क्षेत्रीय जलवायु में आने वाले बदलावों से समुद्र में बिछे इन तारों पर सबसे ज्यादा खतरा हो सकता है। इनमें ताइवान के वो क्षेत्र शामिल हैं जहां उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की शक्ति और आवृत्ति में हुए बदलावों ने पहले ही इन केबलों को होने वाले क्षति में वृद्धि की है।

साथ ही इसमें ध्रुवीय अक्षांशों के वो क्षेत्र शामिल हैं जहां पिघलते ग्लेशियर और समुद्री बर्फ दुनिया के किसी और कोने की तुलना में समुद्र में सबसे ज्यादा बदलावों का कारण बन रहे हैं।

भले ही देखा जाए तो इंसानी नुकसान की तुलना में प्राकृतिक आपदाओं से इन केबल्स को होने वाला नुकसान की घटनाएं उतनी ज्यादा नहीं हैं लेकिन उसके बावजूद वो भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं क्योंकि इनका प्रभाव काफी व्यापक होता है और वो बड़े क्षेत्र में कई केबल प्रणालियों को प्रभावित करती हैं।

ऐसा ही एक उदाहरण कांगो का है जो समुद्री घाटी में आए भारी तलछट के प्रवाह से जुड़ा था। इस प्रवाह नदी में आई भीषण बाढ़ की घटना जिम्मेवार थी। यह 50 वर्षों में आई सबसे शक्तिशाली बाढ़ की घटना थी। इस शक्तिशाली प्रवाह ने पश्चिम और दक्षिण अफ्रीका को जोड़ने वाले केबलों को तोड़ दिया था। इसकी वजह से पहले कोविड-19 लॉकडाउन के शुरुआती चरणों के दौरान इंटरनेट कनेक्शन सीमित हो गया था।

ऐसी ही एक घटना 2009 में सामने आई थी जब उष्णकटिबंधीय चक्रवातों ने ताइवान के लिए उप-केबल लिंक को तोड़ दिया था। इसी तरह 2015 में आए तूफानों ने कैरिबियन में केबल और लैंडिंग स्टेशनों को व्यापक नुकसान पहुंचाया था।

सुदूर क्षेत्रों को विशेष रूप से प्रभावित करेंगी यह घटनाएं

केबल को नुकसान से जुड़ी यह घटनाएं सुदूर बसे द्वीपों को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां सीमित कनेक्टिविटी है। ऐसे में वो सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। ऐसी ही एक हालिया घटना जनवरी 2022 में घटी थी। जब हंगा टोंगा-हंगा हा-आपाई ज्वालामुखी में हुए विस्फोट के बाद टोंगा साम्राज्य को बाकी दुनिया से जोड़ने वाला एकमात्र केबल टूट गया था, इससे आपदा के ऐसे कठिन समय में टोंगा से बाकी दुनिया के बीच अंतर्राष्ट्रीय संचार कट गया था।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा में एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता थॉमस वहल का कहना है कि हमने दुनिया भर में सीफ्लोर केबलों और उनके लैंडिंग स्टेशनों के लिए जलवायु संबंधी खतरों की एक श्रृंखला का पहला व्यापक मूल्यांकन किया है।"

"हमारा विश्लेषण स्पष्ट रूप से केबल मार्गों और कहां यह लैंडिंग स्टेशन स्थापित किए जाएं उनके बारे में सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता पर जोर देता है, जो स्थानीय खतरों के साथ-साथ जलवायु में आते बदलावों से प्रभावित हो रहे हैं।“

ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाले तात्कालिक घटनाओं जैसे भूस्खलन और उष्णकटिबंधीय चक्रवात के साथ-साथ उसके दीर्घकालिक प्रभावों जैसे समुद्र के स्तर में होती वृद्धि और समुद्र के बदलते प्रवाह, जिनका प्रभाव गहरे पानी पर भी पड़ता है, उन दोनों पर विचार किया जाना चाहिए।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यदि हम फ्लोरिडा को देखते हैं, तो वहां कम से कम 21 उप-दूरसंचार केबल हैं जो फ्लोरिडा के तट से जुड़ते हैं। इसका अर्थ है कि यदि इनमें से कोई केबल क्षतिग्रस्त हो जाता है तो उसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा। यह राज्य ग्लोबल नेटवर्क में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो उत्तर और दक्षिण अमेरिका के साथ कैरिबियन को भी जोड़ता है।

शोध के मुताबिक यह अध्ययन बदलती परिस्थितियों का आकलन करने के महत्व की पहचान करता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां कई केबल सिस्टम एक लैंडिंग बिंदु को साझा करते हैं, क्योंकि वो इन खतरों के संयोजन से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए फ्लोरिडा की तटरेखा जहां समुद्र के स्तर में होने वाली वृद्धि, तूफान में बदलाव और रेतीले समुद्री तटों का होता अपरदन बड़ी समस्या है।

इस बारे में एनओसी और इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता माइक क्लेयर का कहना है कि इन केबलों पर जो हमारे बगीचे के पाइपों से ज्यादा मोटे नहीं हैं उनपर हमारी निर्भरता कई लोगों को हैरान कर सकती है। लोग उपग्रहों को संचार का प्रमुख साधन मानते हैं।

लेकिन उपग्रहों के पास आधुनिक डिजिटल सिस्टम का समर्थन करने के लिए पर्याप्त बैंडविड्थ नहीं है। ऐसे में  उनका कहना है कि यह जरूरी है कि शोधकर्ता भविष्य में होने वाले उन संभावित व्यवधानों का आकलन करें जो जलवायु में आते बदलावों के चलते पैदा हो सकते हैं।

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