नजरअंदाज किए गए उष्णकटिबंधीय रोगों और मलेरिया पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का शोध बेहद जरूरी

मलेरिया और एनटीडी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए, जनवरी 2010 से अक्टूबर 2023 के बीच प्रकाशित सहकर्मी-समीक्षित पत्रों और साहित्य का विश्लेषण किया गया

By Dayanidhi

On: Thursday 23 May 2024
 
बढ़ता तापमान, चरम मौसम की घटनाएं जैसे बाढ़ आदि के कारण मलेरिया के दुनिया के उन इलाकों में भी फैलने के आसार हैं, जहां इसका प्रकोप पहले नहीं था। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, नासा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अगुवाई में जलवायु परिवर्तन, नजरअंदाज किए गए उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी) और मलेरिया को लेकर समीक्षा की गई है। यह समीक्षा डब्ल्यूएचओ की टास्क टीम ने रीचिंग द लास्ट माइल (आरएलएम) के साथ साझेदारी में रॉयल सोसाइटी ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन में जारी की है। 42,693 लेखों की समीक्षा से पता चलता है कि मलेरिया और एनटीडी पर जलवायु पैटर्न में मानवजनित बदलावों के वास्तविक और होने वाले प्रभावों की अभी तक जरूरी समझ नहीं है।

बढ़ते तापमान और बदलते मौसम के पैटर्न के कारण वेक्टर-जनित बीमारियों के प्रसार में बदलाव आ रहा है, जिसका मानव स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। जैसे-जैसे मच्छरों जैसे रोग फैलाने वालों की भौगोलिक सीमा का विस्तार होता है, वैसे-वैसे इन बीमारियों के नए क्षेत्रों में फैलने के खतरे भी बढ़ते हैं। समीक्षा के निष्कर्षों से पता चलता है कि मलेरिया और कई एनटीडी का बढ़ता प्रकोप, घटना, सीमा और तीव्रता में इन बदलावों को उन समुदायों के लिए चोट पहुंचाने वाला हो सकता है जो इन बिमारियों से पहले से पीड़ित हैं।

अध्ययन की अगुवाई करने वाले और डब्ल्यूएचओ के ग्लोबल एनटीडी प्रोग्राम के निदेशक डॉ. इब्राहिमा सोसे फॉल ने कहा, इस समीक्षा के निष्कर्ष अधिक व्यापक और मानकीकृत मॉडलिंग की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं, ताकि हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मलेरिया और एनटीडी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझ सकें और पूर्वानुमान लगा सकें।

यह जरूरी और खतरनाक रुझानों को सामने लाती है और तत्काल कार्रवाई पर जोर देती है। मलेरिया के दुनिया के उन इलाकों में भी फैलने के आसार हैं, जहां इसका प्रकोप पहले नहीं था। वहीं, डेंगू और चिकनगुनिया के संचरण के लिए जिम्मेदार मच्छर की अपनी सीमा का विस्तार जारी रखने की भी भविष्यवाणी की गई है।

शोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि प्रकाशित शोध अक्सर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक बहुत अधिक पहुंच वाले कम बीमारी वाले देशों पर केंद्रित होते हैं। यह देखते हुए कि मलेरिया और एनटीडी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बीमारी स्थान के अनुसार काफी अलग-अलग होंगे। 

शोध के हवाले से रीचिंग द लास्ट माइल के मुख्य रणनीतिकार ने कहा, जलवायु संकट वैश्विक स्वास्थ्य और विकास में दशकों की प्रगति को पीछे धकेलने की क्षमता रखता है। समय पर और साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों के विकास का समर्थन करने और हमें मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे परिणामों का अनुमान लगाने और उन्हें कम करने के लिए शोध में अधिक निवेश की जरूरत है।

शोध में कहा गया है कि 174 अध्ययनों में से केवल 34 फीसदी अध्ययनों की समीक्षा की गई कम करने की रणनीतियों को हल किया गया और 24 अध्ययनों में  से पांच फीसदी अनुकूलन विधियों को देखते हुए, यह समीक्षा हाल के दशकों में मलेरिया और एनटीडी के खिलाफ किए गए आवश्यक साक्ष्य की कमी पर प्रकाश डालती है। हमारी सामूहिक प्रगति संकटग्रस्त जलवायु के कारण खराब हो सकती है।

हाल ही में मलेरिया पर चरम मौसम की घटनाओं के परिणाम देखे गए और उनके अब और अधिक सामान्य होने की भविष्यवाणी की गई है। यह शोध जलवायु परिवर्तन को कम करने और अनुकूलन के लिए एक स्पष्ट आधार प्रदान करता है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव गरीब लोगों पर सबसे अधिक पड़ने के आसार हैं, जो मलेरिया और एनटीडी से भी असमान रूप से प्रभावित हैं, इसलिए अधिक न्यायसंगत, व्यापक और टिकाऊ संकल्प की आवश्यकता है।

मलेरिया और एनटीडी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए, इस अत्याधुनिक समीक्षा ने जनवरी 2010 से अक्टूबर 2023 के बीच प्रकाशित सहकर्मी-समीक्षित पत्रों और साहित्य का विश्लेषण किया, जिसमें जांचकर्ताओं ने पहचाने गए आंकड़ों का सारांश दिया और विश्लेषण किया।

कुल मिलाकर, 42,693 रिकॉर्ड फिर से हासिल किए गए, जिनमें से 1543 पत्रों की जांच की गई। शोधकर्ताओं ने प्रकाशनों की संख्या को राष्ट्रीय स्तर पर बीमारी के मामलों, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और गुणवत्ता सूचकांक (एचएक्यूआई) और जलवायु भेद्यता या वल्नेरेबिलिटी स्कोर के साथ जोड़ा गया।

सभी तरह के मानदंडों को पूरा करने वाले 511 पत्रों में से, 185 पत्रों ने मलेरिया का जिक्र किया था, 181 ने डेंगू और चिकनगुनिया पर ध्यान केंद्रित किया और 53 ने लीशमनियासिस को लेकर जानकारी दी। हालांकि, अन्य एनटीडी का हिस्सा काफी कम था, उनका पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया।

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