उत्तराखंड: औली पर दिख रहा है जलवायु परिवर्तन का असर?

अभी तक औली में ढंग से बर्फबारी नहीं हुई है, जिसके चलते यहां विंटर गेम्स को लेकर संशय बना हुआ है

On: Wednesday 08 December 2021
 
उत्तराखंड का औली विंटर गेम्स के लिए जाना जाता है। फोटो: दिनेश भट्ट

राजेश डोबरियाल

उत्तराखंड में विंटर खेलों के लिए प्रसिद्ध स्थल औली में दो दिन पहले गिरी लगभग पिघल चुकी है। ऐसे में एक बार फिर से नेशनल स्कीइंग चैंपियनशिप के आयोजन को लेकर संशय बन गया है। पिछले कुछ सालों से ऐसा ही हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन का असर ज़्यादा साफ दिख रहा है, इसलिए औली जैसे पर्यटकों में लोकप्रिय स्थलों पर इनके असर को लेकर अभी विशिष्ट अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

औली के रहने वाले विवेक पंवार स्कीइंग के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे हैं और अब प्रदेश की स्की एंड स्नो बोर्ड एसोसिएशन के सदस्य और चमोली के जिलाध्यक्ष हैं। वह स्कीइंग पर्यटन से भी जुड़े रहे हैं। विवेक के अनुसार 18-19 में अच्छी बर्फबारी से पहले के चार-पांच साल बर्फबारी बहुत कम हुई। इतनी कम कि नेशनल विंटर गेम्स का आयोजन हो ही नहीं सका।

औली के अलावा दूसरे विंटर गेम्स डेस्टिनेशन हिमाचल के सोलंग वैली पर भी अनियमित बर्फबारी का असर हुआ है। वहां भी कई बार नेशनल विंटर गेम्स के इवेंट कैंसिल करने पड़े हैं। देश के तीसरे विंटर डेस्टिनेशन, कश्मीर के गुलमर्ग में चूंकि बर्फबारी काफी होती है, इसलिए अब तक उस पर इसका असर नहीं दिखा है। हालांकि भविष्य का कुछ पता नहीं। 

विवेक कहते हैं कि अनियमित बर्फबारी की वजह से स्कीइंग से जुड़े पर्यटन पर ही खतरा पैदा हो गया है। उत्तराखंड ही नहीं, दुनिया भर में विंटर गेम्स पर खतरा है और इंटरनेशनल स्की फेडरेशन यह बात बार-बार कह रहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर सभी विंटर गेम्स पर पड़ रहा है और यह आशंका है कि दुनिया भर में विंटर गेम्स करवाना संभव न हो सके।

विवेक जैसे कई लोग पहले स्कीइंग से जुड़े पर्यटन के क्षेत्र में सक्रिय थे, लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि इस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, इसलिए वह बर्फ में मस्ती करने वाले पर्यटकों की ओर भी देखने लगे हैं। विवेक भी अब कॉटेज बनाकर एक तरह से होटल इंडस्ट्री से जुड़ गए हैं।

हालांकि पर्यटन विभाग के लिए स्कीइंग की चिंता उतना बड़ा विषय नहीं है। चमोली के जिला पर्यटन अधिकारी बृजेंद्र पांडे कहते हैं कि देखिए टूरिस्ट के लिए जितनी बर्फ़ पड़नी चाहिए उतनी बर्फ यहां पड़ रही है। दो-चार फ़ीट की बर्फ टूरिस्ट के लिए बहुत होती है।

गेम्स के लिए ज्यादा बर्फबारी की जरूरत पड़ती है। कम से कम 8-10 फुट बर्फ चाहिए। बर्फ को जमने का समय भी मिलना चाहिए, ताकि गेम्स हो सकें। नई बर्फबारी या भुरभुरी बर्फ में विंटर गेम्स नहीं हो सकते।

औली में कम होती बर्फबारी को जलवायु परिवर्तन का असर माना जा रहा है। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के असर से धरती का तापमान बढ़ रहा है यह बात तो कई अध्ययनों में सामने आ चुकी है। उसकी वजह से चरम मौसमी घटनाएं (बादल फटना, सूखा, बाढ़ आदि) बढ़े हैं। उत्तराखंड में अगर आप मौसम की बात करें तो पिछले कुछ सालों में सर्दियों में तापमान सामान्य से ज़्यादा ही रहा है। बारिश गर्मियों में तो अपने औसत स्तर को छू रही है लेकिन सर्दियों में कम ही हैं।

इस साल भी सर्दियों में नवंबर में बारिश कम ही हुई है। छह एवं सात दिसंबर 2021 को छोड़ दें तो अगले 8-9 दिन ऐसा कोई सिस्टम (मौसम का) बनता नहीं दिख रहा है कि बारिश या बर्फ़बारी होगी। मौसम विभाग पूरे मौसम के लिए भी एक प्रोजेक्शन देता है। विक्रम सिंह कहते हैं कि यह प्रोजेक्शन भी इस बार बारिश-बर्फबारी औसत से कम और तापमान औसत के ज़्यादा दिखा रहा है।

बारिश या बर्फबारी की अनियमितता भले ही अभी पर्यटन को सीधे तौर पर प्रभावित न कर रही हो, लेकिन जलवायु परिवर्तन के लक्षणों को परिलक्षित तो कर ही रही है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यू-सेक) के निदेशक प्रोफ़ेसर एमपीएस बिष्ट कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का असर तो स्पष्ट दिख रहा है। हमारी वनस्पतियों में, ग्लेशियर्स पर उसका असर साफ नजर आ रहा है। हालांकि औली जैसी किसी भी जगह पर खास असर के लिए विस्तृत अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

लेकिन औली के निवासी विवेक पंवार जैसे लोगों को जलवायु परिवर्तन के असर की बात किसी वैज्ञानिक से सुने जाने का इंतज़ार नहीं है। वह कहते हैं कि पिछले सात-आठ सालों से बर्फबारी में परिवर्तन साफ दिख रहा है। उनके घर के सामने, फूलों के घाटी के ऊपर वाली चोटियों पर पहले पूरे साल बर्फ जमी रहती थी, लेकिन अब सर्दियों के चार-पांच महीने तो बर्फ रहती है, लेकिन उसके बाद पत्थर और मोरेन ही नजर आते हैं।

यह परिवर्तन उनके देखते-देखते हो गया है। औली में बर्फ में खेलते-खेलते नेशनल स्कीइंग खिलाड़ी बनने वाले विवेक पंवार की बातों में जो डर और निराशा है उसकी पुष्टि वैज्ञानिक जब तक करेंगे तब तक पता नहीं तब तक औली विंटर गेम्स के आयोजन के लायक भी रहेगा या नहीं।

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